वन संरक्षण एवं संवर्धन जन भागीदारी से संभव- जयराज, प्रमुख मुख्य वन संरक्षक उत्तराखण्ड - TOURIST SANDESH

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शुक्रवार, 21 अगस्त 2020

वन संरक्षण एवं संवर्धन जन भागीदारी से संभव- जयराज, प्रमुख मुख्य वन संरक्षक उत्तराखण्ड

 वन संरक्षण एवं संवर्धन जन भागीदारी से संभव-जयराज
 शीघ्र होगा लालढांग-चिलरखाल मार्ग का निर्माण 

जयराज, प्रमुख मुख्य वन संरक्षक उत्तराखण्ड

उत्तराखण्ड के प्रमुख वन संरक्षक जयराज का मानना है कि वन संरक्षण एवं संवर्धन के लिए जन भागीदारी आवश्यक है । 71 फीसद वनीय भू-भाग वाला राज्य उत्तराखण्ड जैव विविधता के मामले में धनी प्रदेश है। मध्य हिमालयी क्षेत्र में बसा यह छोटा सा सुंदर प्रदेश उत्तराखण्ड की जैव विविधता सम्पूर्ण विश्व में अद्वितीय है। बाघों के घनत्व की बात की जाये तो हमारा प्रदेश देश में तीसरे नम्बर पर है, पक्षियों की 1350 प्रजातियों में से 700 प्रजातियां अकेले हमारे प्रदेश में पाई जाती है। प्रदेश की अद्वितीय जैव विविधता हम सबके लिए गौरव की बात है इन सबका संरक्षण करना हम सबका प्रमुख कर्त्तव्य है। टूरिस्ट संदेश के सम्पादक सुभाष चन्द्र नौटियान ने प्रदेश के वन विभाग के प्रमुख मुख्य वन संरक्षक जयराज से इस सम्बन्ध विस्तृत वार्ता की प्रस्तुत है वार्ता के संक्षिप्त अंश ....

प्रश्न- स्थानीय जैव विविधता को बचाने के लिए वन विभाग क्या कर रहा है?

जयराज- वनों को सुरक्षा प्रदान करना ही विभाग का प्रमुख कर्त्तव्य है, इस कर्त्तव्य को निभाने के लिए विभाग के प्रत्येक कर्मचारी/ अधिकारी को अपने कर्त्तव्य का बोध है। स्थानीय जैव विविधता भी इसी कर्त्तव्य में समाहित है। वैसे तो जैव विविधता के संरक्षण के लिए प्रदेश में जैव विविधता बोर्ड भी है परन्तु स्थानीय जैव विविधता के संरक्षण एवं संवर्धन में वन विभाग सक्रिय है। वन विभाग की प्रत्येक नर्सरी में स्थानीय जैव विविधता से सम्बन्धित पौध उपलब्ध है। वन विभाग स्वयं भी स्थानीय जैव विविधता के संरक्षण के लिए हर साल बड़ी मात्रा में पौध रोपण का कार्य करता है। 

प्रश्न - चीड़ को आमतौर पर एकल प्रजाति का वृक्ष माना जाता है जिसे स्थानीय जैव विविधता में बाधक माना जा रहा है। क्या चीड़ उन्मूलन के लिए विभाग कार्य कर रहा है?

जयराज- कुछ लोगों द्वारा चीड़ को बिना वजह खलनायक घोषित किया जा रहा है। चीड़ कैश क्रॉप (नगद आय का साधन) है। वह उन स्थानों पर आसानी से हो जाता है, जिन स्थानों पर दूसरी प्रजातियां नहीं हो पाती। चीड़ पर वनों की आग का भी ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ता है। चीड़ का व्यावसायिक उपयोग भी है। पिरूल से बिजली उत्पादन, घरेलू ऊर्जा के टिक्की आदि में इसका उपयोग होता है। पैकिंग में भी चीड़ की लकड़ी का उपयोग किया जाता है। लीसा से तारपिन आदि तेलों का उत्पादन होता है। वैसे वन विभाग 2005 से चीड़ का रोपण नहीं करता है।

प्रश्न- लॉकडाउन के कारण परिस्थितियां बदली है हमारे कई युवाओं ने रोजगार की आस में गांव की ओर रूख किया है। इन युवाओं ने बंजर खेतों को फिर से आबाद करने का बीड़ा उठाया है। परन्तु लम्बे समय से बंजर रहने के कारण खेतों में चीड़ के वृक्ष खड़े हैं।  खेती को दुबारा आबाद करने के लिए क्या विभाग निजी खेतों पर चीड़ के पेड़ काटने की अनुमति प्रदान करेगा?

जयराज- बिलकुल! यदि कोई भी व्यक्ति अपने खेतों को दुबारा आबाद करने के लिए खेत में खड़े चीड़ के पेड़ों का कटान चहाता है तो नियमों के तहत उसे कटान की अनुमति प्रदान की जायेगी। इसके लिए उसे सम्बन्धित क्षेत्र के वनाधिकारी को लिखित रूप में आवेदन प्रस्तुत करना होगा। समीक्षा के उपरान्त वनाधिकारी चीड़ के कटान की अनुमति प्रदान कर सकते हैं। इसमें कोई समस्या नहीं है। 

प्रश्न- जल संरक्षण के लिए वन विभाग क्या कार्य कर रहा है।

जयराज- जल संरक्षण के वन विभाग निरन्तर सक्रिय है। वन विभाग ने जल संरक्षण के लिए एक कन्सर्टियम (संघ) का गठन किया है। विभिन्न स्थानों पर वन विभाग ने सफलता प्राप्त की है। कोई भी व्यक्ति स्वयं उन स्थानों पर भ्रमण कर जल संरक्षण के बारे में जानकारी हासिल कर सकता है। 

प्रश्न- मानव-वन्यजीव संघर्ष को रोकने के लिए वन विभाग क्या कर रहा है?

जयराज- मानव वन्य जीव संघर्ष के स्थान सह-अस्तित्व होना चाहिए संघर्ष शब्द का उपयोग करना ठीक नहीं है वन, वन्य जीवों से ही मानव का अस्तित्व है। यदि वन, वन्य जीव ही नहीं रहेंगे तो क्या धरती पर मानव का अस्तित्व रहेगा। इसलिए सह-अस्तित्व की भावना प्रत्येक मानव में होनी चाहिए तभी मानव, वन, वन्यजीव में सह-अस्तित्व स्थापित हो सकता है। मानव-वन्यजीवों में सह-अस्तित्व स्थापित करना मानव की जिम्मेदारी है ना कि वन्यजीवों की।

प्रश्न- वनों के आस-पास स्थित गांवों में वन्यपशु न सिर्फ खेती-बाड़ी को नुकसान पहुंचा रहे हैं बल्कि किसानों के पालतू जानवरों को भी मार देते हैं परन्तु अनेक बार देखा गया है वन विभाग द्वारा काश्तकार की क्षतिपूर्ति नहीं हो पाती है या बहुत देर से होती है। किसान को तुरन्त मुआवजा मिले इसके लिए वन विभाग क्या उपाय कर रहा है?

जयराज- कई बार देखा गया है कि कई फर्जी केस विभाग में क्षतिपूर्ति के आते हैं जिनका कोई आधार ही नहीं होता है ऐसे कई केसों  के आने के कारण विभाग हर मामले की तहकीकात करता है जिसमें समय लग जाता है। परन्तु विभाग द्वारा सुनिश्चित किया जाता है कि नुकसान की भरपाई की जाये इसके लिए सही जांच करना अनिवार्य है जाकि झूठे मामले पकड़े जा सकें और सही व्यक्ति को उचित क्षतिपूर्ति प्रदान की जा सके। 

प्रश्न- लालढांग-चिलरखाल मार्ग के निर्माण में वन विभाग की बाधक रहा है, क्या लालढांग-चिलरखाल मार्ग का निर्माण होगा?

जयराज- लालढांग-चिलरखाल मार्ग निर्माण में कुछ बाधाएं जरूर थी। जिन्हें अब दूर कर दिया गया है। लालढांग-चिलरखाल मार्ग का निर्माण शीघ्र ही होगा। 

प्रश्न- बाह्य आक्रामक प्रजातियों (लैण्टाना, गाजर घास, हाथी घास आदि) के कारण वनों में स्थानीय जैव विविधता के लिए खतरा उत्पन्न हो रहा है वनों से इन प्रजातियों को हटाने के लिए वन विभाग क्या कर रहा है?

जयराज- लैण्टाना आदि बाह्य आक्रामक प्रजातियों को हटाने के लिए वन विभाग निरन्तर सक्रिय है। परन्तु कई बार बजट की कमी के कारण कार्य में बाधा उत्पन्न होती है। जिसके कारण यह प्रजातियां पूर्ण रूप से रिमूव नहीं हो पा रही हैं। वैसे भी इनका प्रसार बहुत तेजी से होता है, विभाग लैण्टाना सहित सभी आक्रामक प्रजातियों को हटाने के लिए पूर्ण रूप से सचेत एवं सक्रिय है।

प्रश्न- अक्टूबर 2020 में आपका कार्यकाल पूर्ण होने जा रहा है। आपके स्थान पर आने वाले नये अधिकारी को आप क्या संदेश देना चाहेंगे?

जयराज- वनों की सुरक्षा करना विभाग का प्रथम दायित्व है, इस दायित्व का निर्वहन करना ही विभाग के प्रत्येक अधिकारी/कर्मचारी का मूल कर्त्तव्य है। इस कर्त्तव्य को पूर्ण करने के लिए जन-भागीदारी की आवश्यकता होती है। मैं तो यही कहना चाहूंगा कि जन भागीदारी के लिए निरन्तर जन संवाद स्थापित किया जाए ताकि जनता को होने वाली परेशानियों का पता चल सके ताकि उनके निराकरण के लिए उचित रास्ता ढूंढा जा सके। स्थानीय जनता की समस्याओं के निराकरण होने से ही हमारे जंगल सुरक्षित रहेंगे। 

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