प्रकृति की धरोहर : आम का वृक्ष - TOURIST SANDESH

गुरुवार, 10 अप्रैल 2025

प्रकृति की धरोहर : आम का वृक्ष

 हमारी धरोहर, हमारी पहचान 


 प्रकृति की धरोहर : आम का वृक्ष

 

                         सुभाष चन्द्र नौटियाल 

कमन्द गाँव में है 400 साल पुराना आम का पेड 


गाँव की प्राकृतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक तथा आर्थिक धरोहर है यह आम का वृक्ष


पेड़ को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करवाने के लिए गाँव के लोग निरन्तर हैं प्रयासरत़

 

  किसी भी स्थान, क्षेत्र, गाँव, मानव समाज की पहचान सिर्फ मेले, त्यौहार, रीति-रिवाज, परंपरायें, धार्मिक उत्सव, बोली-भाषा ही नहीं बल्कि वहां पर शताब्दियों से खड़े वृक्ष भी होते हैं। ऐसे वृक्ष क्षेत्र की पहचान ही नहीं होते हैं, बल्कि उस स्थान की प्राकृतिक-सांस्कृतिक धरोहर भी होते हैं, जिनसे पूरा गाँव और मानव समाज और उसके सहोदर(जीव-जन्तु, पशु-पक्षी) जुड़े रहते हैं। हर गाँव में एक दो ऐसे वृक्ष अवश्य होते हैं, जिनसे उस गाँव की न सिर्फ पहचान होती है, बल्कि उस गाँव के निवासियों के लिए वह वृक्ष नहीं बल्कि एक सामाजिक एवं संस्कृति से ताने-बाने के साथ यादें जुड़ी होती हैं। ऐसा ही एक आम का वृक्ष हमारे देश भारतवर्ष के उत्तराखण्ड राज्य के कमन्द गाँव में भी है। 

    यह गाँव उत्तराखण्ड राज्य के  जिला- पौड़ी गढ़वाल के विकासखण्ड पौड़ी में स्थित, ग्राम कमन्द के नाम से जाना जाता है। कमन्द गाँव  ग्रामसभा - थली, विकासखण्ड- पौड़ी, जिला - पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखण्ड का एक छोटा सा गाँव है।  इस गाँव  में प्रसिद्ध आम का वृक्ष गाँव की एक महत्वपूर्ण धरोहर ही नहीं बल्कि इस गाँव की सामाजिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, तथा आर्थिकी का आधार स्तम्भ है। यह आम का वृक्ष सिर्फ आम का वृक्ष मात्र ही नहीं है बल्कि यह गाँव के आमजन जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है, कभी इसके बिना गाँव के लोग अपने को अधूरा समझते थे। पूरे गाँव की जीवन धारा यहीं से होकर प्रवाहित होती थी। 

 गर्मियों के दिनों में इस आम के नीचे बैठकर छाया का आनन्द लेना हो, या दिन में सोने के लिए जाना हो, या फिर खेलने के लिए जाना हो, धारे में नहाना हो यह आम का वृक्ष आधार स्तम्भ रहा है। इस आम के वृक्ष से न सिर्फ कमन्द गाँव के लोगों का भावनात्मक लगाव रहा है बल्कि आस-पास के स्थानीय गाँवों सहित दूर-दराज के लोगों से भी इस वृक्ष ने अपने रसीले आमों की मिठास से भावनात्मक सम्बन्ध स्थापित किया है। एक साल खूब आम आते हैं, और दूसरे साल कम ही आम आते हैं, यह आम का पेड़ इतना विशालकाय है कि इस आम के पेड के ऊपर-नीचे चारों ओर लगभग 10 से 15 मीटर का घेरा होगा। इस आम में चार प्रकार के आम आते हैं,  कुछ पीले रंग के, कुछ लालिमा लिए हुए, कुछ लंबे और हरे रंग के और कुछ हल्का हरा और पीला एवं एक हिस्से में पूरा गहरा हरा रंग का आम आता था। आज भी हर साल दो से तीन टहनियों पर आम अवश्य आते हैं। पहले जब आम का मौसम होता था, तो गाँव का हर परिवार सुबह-सुबह रात के टपके हुए आम के कट्टे भर-भर कर ले जाता था, पूरे क्षेत्र में इसमें सबसे रसीले मीठे आम आते थे, स्वादिष्ट आम आते थे, इसका का रसदार आम अन्य सबके सामने फीका ही साबित होता था। इस आम को गाय, सुअर, शौलू (साई) बंदर, लंगूर सभी प्राणी तो खाते ही थे उसके बावजूद भी गाँव एवं अन्य गाँवों के लोग भी इस आम को लेने के लिए आते थे। कभी इस आम के पेड़ के फलों की सुरक्षा पूरे गाँव में प्रत्येक परिवार की बारी लगायी जाती थी तो कभी आम को गाँव वालों की सहमति से ठेके पर भी दिया जाता था। 

     आम बहुत पुराना आम है, कहते हैं कि, हमसे 08 पीढी पूर्व हमारे पूर्वज नौटी से यहां आकर बस गये थे।तब उन्होंने ही यह वृक्ष रोपित किया था, अब 10वीं पीढी चल रही है। यानी कि, लगभग चार सौ साल पुराना है यह आम का वृक्ष। इस पेड़ ने 08 पुस्तों को सिर्फ देखा ही नहीं बल्कि जिया भी है, इस पेड़ ने ना जाने कितने लोगों और जानवरों को आम खिलाया होगा, अपने छांव में बिठाया होगा, ना जाने कितने पशुओं ने इस पेड़ की छांव में शरण ली होगी, इस पेड़ पर ना जाने हम जैसे किशोरावस्था वाले कितने बच्चों ने आम की चाह में पत्थर बरसाये होंगे। इस वृक्ष ने अब तक न जाने कितने अनगिनत पत्थरों की मार सही होगी, फिर भी अपने स्वभाव के अनुरूप निरन्तर फल दे रहा है बिना किसी शिकवा और शिकायत के। शायद कोई देव, दानव, मानव या अन्य कोई होता तो रूष्ट होकर चला जाता या शाप दे देता। लेकिन पिछले 400 सालों से अभी तक यह पेड़ सबको सहते हुए भी गाँव की सांस्कृतिक-सामाजिकता को बरकरार रखते हुए सशक्त होकर खड़ा होकर फल दे रहा है। बरसात में खेत धान और मंडुवे की गुड़ाई करती हमारी दादी, माँ, बहिन ,ताई, चाची, भाभी, बेटी, बहु जो भी गुडाई और निराई करती तो इस आम के टपके हुए आम को अपनी साड़ी की गत्ती बनाकर, उसकी झोली में आम रखती और  निराई गुडाई करते हुए बीच-बीच में आम का स्वाद लेती। बारी के समय में रहने वाले लोग भी सुबह सुबह काम पर जाने से पहले आम के पेड़ के नीचे जाकर टपके हुए आम लेने चले जाते थे। बचपन में प्रातःकाल का समय तो इसी पेड़ के नीचे गुजरता था। आम के पकने के समय में तो कई बार तो आम का ही आमऊणी बनाकर खा लेते थे। गाँव के लोग सुबह-सुबह आम लेने के लिए प्रतियोगिता होती थी, सबसे जल्दी कौन लेकर आता है। आम के मौसम में प्रातः काल उठने की प्रतियोगिता स्वयं ही बन जाती थी ताकि रात में गिरे हुए आम तेजी से समेटे जा सकें। इसके फलों से कभी कई परिवारों का गुजारा भी होता था।

 यह आम हम सबके लिए एवं हमारी पुरानी कई पीढ़ियों को एक दूसरे को जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। साथ ही इस पेड़ के नीचे बैठकर पथिक तथा ग्वैर (चरवाहे ) अपनी थकान मिटाते थे और कई बार इसी पेड़ के नीचे सो जाते थे।  जब भी आम पर भौंर आने का समय होता तो सबकी निगाहें इस आम पर होती थी यह आम कितना आया है, यह सबके लिए चर्चा का विषय बना रहता था।

    आज इस अपनी अमूल्य धरोहर को सहेजने की आवश्यकता महसूस हो रही है, हमारे लिए यह सिर्फ आम का पेड़ नहीं बल्कि हम सबके लिए धरती पर खड़ा जीवन को आधार प्रदान करने वाला देवदूत के समान ही है। जिसने हमारी उधरपूर्ति के साथ ही सुरक्षा भी प्रदान की है। इसके बिना हमारा जीवन अधूरा सा महसूस होता है। पुरानी पीढ़ी तो इस आम से खूब परिचित है परन्तु नई पीढ़ी गाँव से पलायन के कारण अनजान सी है। 

  इस पेड़ ने पीढ़ी  दर पीढ़ी मानव की ना जाने कितनी खुशियाँ, मन मुटाव देखे होगें, कितना वैभव देखा होगा, कितना पतन देखा होगा? अनुमान लगाना कठिन है। ना जाने कितने रिश्तों को बनते-बिगड़ते देखा होगा। ना जाने कितने आपसी मन मुटाव को बढ़ते-खत्म होते देखा होगा। कितने परिवारों को बनते-बिगड़े देखा होगा, न जाने कितने नव जीवन को आते देखा होगा। नववधू को गांव में आते तथा वृद्ध होते देखा होगा।

लोगों के बचपन, बालपन, युवा, प्रौढ़ और बुजुर्ग होते हुए और बुजुर्गो को जाते हुए देखा होगा। ना जाने कितने गम और ना जाने कितनी खुशियों को, ना जाने कितने बंसत, ना जाने कितने पतझ़ड़, तूफान, आंधियों से गुजरा होगा, लेकिन यह  उसके बावजूद भी आज अड़िग खड़ा हमें जीवन जीने की सीख दे रहा है। उत्साह और उमंग के हिलोरे ले रहा है। जीवन की आपाधापी, ऑधी तूफान और कड़कती बिजली, सिकुड़ते जंगल, सूखते हमारे धारे- नौले फिर भी इसकी जीजिविषा ने इस आम के वृक्ष को अमृत्व का वरदान दिया है। यह पेड़ स्वयं में कई ऐतिहासिक दस्तावेज समेटे हुए है। 

  आज अपनी प्राकृतिक-सांस्कृतिक धरोहर को सहज कर रखने तथा आने वाली पीढ़ी तक पहुँचाना हम सब की सामूहिक जिम्मेदारी है। क्योंकि इस पेड़ को हमने वास्तव में जिया है और इससे हमारी की पुरानी यादें जुड़ी हुई हैं। यह पेड़ हमारी ही नहीं बल्कि पूरे मानव समाज की धरोहर है। 

आओ! वृक्ष संरक्षण का संकल्प लेते हैं तथा अपने आस-पास के वृक्षों के संरक्षण में जुट जाते हैं।

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