कौन सुनेगा इनकी करुण क्रन्दन?
सुभाष चन्द्र नौटियाल
पत्थर उबालती रही एक माँ रातभर,
बच्चे चटाई में भूखे ही सो गये।
पहाड़ रोते सिसकते रहे,
अपनी ही बदहाली पर।
वो शहरों में बैठे,
पहाड़ की दुर्दशा पर,
योजना पर योजना बनाते रहे।
लाभांश की गणित उलझती रही,
विकास के नाम पर विनाश को,
आमंत्रण देती रही।
पहाड़ अनजान सी स्पर्श से,
बिलखते सिसकते रहे।
कौन है जो सुन पायेगा,
इनका करुण क्रन्दन?
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