लघुकथा
बालक बुद्धि की सीख
सुभाष चन्द्र नौटियाल
एक बार एक गाँव में बच्चों के लिए शहर से आये एक बड़े बाबूजी ने रेस जीतो, ईनाम पायो प्रतियोगिता का आयोजन करवाया। प्रतियोगिता स्थल में प्रतिभागियों से 200 मीटर दूरी पर एक आमों से भरी टोकरी रखी गयी। प्रतियोगिता के अनुसार जो बच्चा दूसरे छोर में रखी आम की टोकरी तक दौड़ लगाकर सबसे पहले पहुँच जायेगा उसे आम की भरी टोकरी के साथ ही ईनाम भी दिया जाना था। जैसे ही प्रतियोगिता आरम्भ होने का संकेत मिला प्रतिभागी सभी बच्चों ने एक दूसरे का हाथ पकड़ कर सामूहिक दौड़ लगाते हुए आम की टोकरी तक पहुँच गये। शहर से आये बाबूजी बच्चों के इस व्यवहार से हैरान थे। उन्होंने बच्चों से पूछा आपने ऐसा क्यों किया? जो जीतता उसकी पूरी आम की टोकरी भी होती और अच्छा ईनाम भी मिलता। बच्चों ने उत्तर दिया सामूहिकता के कारण। जब हमारे सभी सुख-दुःख सामूहिक हैं तो फिर हम में से कोई एक अकेला कैसे खुश रह सकता है? सामूहिकता तो हमारी पहचान है, यही मानवता है। सामूहिकता यानि कि हम सब हैं इसलिए मैं भी हूँ।
बालक बुद्धि की बात तो शहर वाले बाबूजी समझ गये हैं और झोला उठाकर वापिस शहर आ चुके हैं परन्तु बालक बुद्धि की सीख हम लोग समझ पायेंगे?
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