सर्वोदय शून्यता की ओर : पंचतत्व में विलीन हुई सर्वोदय सेविका शशिप्रभा - TOURIST SANDESH

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सोमवार, 7 अक्टूबर 2024

सर्वोदय शून्यता की ओर : पंचतत्व में विलीन हुई सर्वोदय सेविका शशिप्रभा

 स्मृति शेष

सर्वोदय शून्यता की ओर : पंचतत्व में विलीन हुई सर्वोदय सेविका शशिप्रभा

सुभाष चन्द्र नौटियाल





5 अक्टूबर को सर्वोदयी सेविका शशि प्रभा रावत पंचतत्व में विलीन हो गयी। 4 अक्टूबर को अपह्रान सवा दो बजे के आसपास उन्होंने अन्तिम सांस ली। जैसे ही यह खबर आयी क्षेत्र में शोक की लहर दौड़ गयी। उन्हें अन्तिम विदाई देने के लिए लोगों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी। हो भी क्यों न समाज ने एक प्रतिष्ठित वात्सल्य की मूर्ति को खो दिया। 

उनका परिचय मात्र इतना भर नहीं था कि, वह सर्वोदय सेवक स्वर्गीय मानसिंह रावत की पत्नी थी बल्कि इससे भी कहीं अधिक विराट व्यक्तित्व उनमें समाया हुआ था। 

समाज के लिए समर्पित भाव से कार्य करने वाली वात्सल्य की यह मूर्ति समाज में हमेशा अमर रहेगी। उनका जीवन केवल एक पत्नी, एक मां तक ही सीमित नहीं था बल्कि सर्वोदय सेवक मानसिंह रावत को वास्तविक पहचान दिलाने तथा उनके कार्यों को आगे बढ़ाने के लिए समाज के प्रति उनके योगदान के लिए हमेशा याद किया जाएगा। 

शशि प्रभा रावत का जीवन संघर्ष, समर्पण, त्याग तथा समाज हित में रहा है। उन्होंने अपने पति के साथ मिलकर सामाजिक न्याय सशक्तिकरण की दिशा में जोरदार पैरवी की तथा अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। वो हमेशा ही मान सिंह रावत की बामागिंनी बन कर समाज सेवा के लिए मानसिंह रावत को भी प्रेरित करती रही तथा स्वयं स्वप्रेरित भी होती रही। उनकी सहजता, सौम्यता, सरलता तथा मानवीय मूल्यों के प्रति समर्पण भाव ने उन्हें समाज में विशेष स्थान दिलवाया। 


शशि प्रभा रावत का निधन एक ऐसी क्षति है जिसे भरना अब कठिन है। उनकी यादें अमिट बनकर हमेशा हमारे दिलों में जीवित रहेंगी। उनकी शिक्षाएं और नैतिक मूल्यों के साथ उनके योगदान को याद करते हुए हम उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। 

शशि प्रभा रावत सरला बहन की शिष्य थी। सरला बहन के विचारों से प्रेरित होकर शशिप्रभा ने अपने आसपास के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए निरन्तर कार्य किया। सर्वोदय सेवक मानसिंह रावत के मार्गदर्शन में उन्होंने समाज में कई परिवर्तन के प्रयास किए। उनका निधन समाज के लिए एक बहुत बड़ा धक्का है। स्वजीवन से उन्होंने समाज में जिन आदर्शों स्थापित किया, उन मूल्यों और आदर्शों के लिए शशिप्रभा हमेशा याद की जाती रहेगीं। उनका जीवन अंधकार में भी एक प्रज्वलित दीपक की भांति सदैव प्रकाशित रहा तथा उपेक्षित समाज को नई ऊर्जा के साथ प्रकाशित करता रहा है, उनकी यही यादें और कार्य समाज को हमेशा प्रेरित करते रहेंगे तथा सदैव मार्गदर्शन करते रहेंगे। 

सर्वोदय सेवक मानसिंह रावत ने कोटद्वार बावर क्षेत्र के हल्दूखाता में बोक्सा जनजाति के बच्चों के लिए और उनके विकास के लिए एक स्कूल की स्थापना की। उनका जीवन बोक्सा समाज तथा समाज के दबे-कुचले वर्ग के उत्थान के लिए शशिप्रभा ने अपने पूरे जीवन का बलिदान कर दिया। 

यदि सर्वोदय सेवक मानसिंह रावत जमनालाल बजाज पुरस्कार से सम्मानित हुए तो उसमें शशिप्रभा की बराबर की भूमिका रही है। 

 शशि प्रभा रावत का जन्म एक जनवरी 1935 में बागेश्वर के गरुड़ में हुआ था। वह अल्मोड़ा के सरला बहन आश्रम में रहती थी। जहां मानसिंह रावत से उनकी मुलाकात हुई और 1955 में दोनों ने शादी कर ली। अपने पति के साथ सक्रिय भूमिका निभाते हुए वह राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आदर्शों पर चलकर अपना सर्वस्व समाज सेवा में लगा दिया। 

नशाबंदी आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाते हुए उन्होंने समाज को नई दिशा दिखाने का कार्य किया। कोटद्वार बावर में बोक्सा जनजाति के उत्थान में उनकी अहम भूमिका रही। जीवन के अंतिम क्षणों तक बोक्सा जनजाति के स्कूल के संचालन के साथ ही सर्वोदय के कार्यों को देख रही थी। 70 के दशक में गढ़वाल मंडल में चले शराब विरोधी आंदोलन को दिशा देने में आपकी भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। 

शशि प्रभा ने मानसिंह रावत की सामाजिक कार्यों में दिलचस्पी को देखते हुए उन्होंने 1955 में जीवनसाथी चुना था। तब से वह एक साथ सर्वोदय और नशा मुक्ति कार्य को आगे बढ़ा रहे थे। बोक्सा जनजाति के बच्चों को शिक्षा के मुख्य धारा से जुड़ने का कार्य सर्वोदय सेवक मानसिंह तथा शशि प्रभा ने किया, वह किसी मिसाल से कम नहीं है। उन्होंने 57 वर्ष पहले कोटद्वार में बोक्सा जनजाति के बच्चों को निःशुल्क शिक्षा देने के लिए प्राथमिक पाठशाला शुरू की थी जो अब जूनियर हाई स्कूल हो गया है.

वर्तमान में बोक्सा जनजाति विद्यालय में करीब 300 से अधिक बच्चे पढ़ रहे हैं। बावर क्षेत्र में बसे बोक्सा जनजाति के लोगों की जमीनों पर अन्य लोग जब अतिक्रमण कर रहे थे उस समय भी मानसिंह रावत ने उनके संरक्षण के लिए आवाज उठाई तथा उनका संरक्षण किया। वह तब से बोक्सा जनजाति के विकास के लिए निरंतर कार्य कर रहे थे। अब उनके परिजन इस कार्य को आगे बढ़ा रहे हैं। 

शशिप्रभा तथा मानसिंह रावत ने सर्वोदय आन्दोलन को जिस शिखर तक पहुँचाया था अब उनके निधन से सर्वोदय शून्यता की ओर अग्रसर है। इस शून्यता की भरपाई कर पाना असम्भव सा प्रतीत हो रहा है।

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