प्रतिवर्ष 30 जुलाई को मनाया जाए वृक्ष संरक्षण दिवस - TOURIST SANDESH

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गुरुवार, 18 मई 2023

प्रतिवर्ष 30 जुलाई को मनाया जाए वृक्ष संरक्षण दिवस

 प्रतिवर्ष 30 जुलाई को मनाया जाए वृक्ष संरक्षण दिवस

सुभाष चन्द्र नौटियाल


वृक्षों की हमारे जीवन में क्या महत्ता है विश्व का प्रत्येक जागरूक मानव इससे भली-भांति परिचित है। जीवन में इस महत्ता को बनाये रखने के लिए वृक्षों के प्रति कृतज्ञता का भाव प्रकट करना प्रत्येक मानव का प्रथम कर्त्तव्य है। इसी महत्ता को दृष्टिगत रखते हुए हमें प्रत्येक दिवस, प्रतिक्षण वृक्ष संरक्षण के प्रति सजग रहना चाहिए परन्तु वर्ष में एक दिवस ऐसा भी होना चाहिए जब हम पूर्ण समर्पण भाव से वृक्षों के प्रति कृतज्ञता का भाव प्रकट करें तथा उस दिवस को वृक्ष संरक्षण दिवस के रूप में मनाऐं। उस दिवस को वृक्षों की महत्ता पर चर्चा हो, संरक्षण के लिए योजनाएं बनायी जाएं तथा आने वाली पीढ़ी को वृक्षों की महत्ता का ज्ञान कराया जाए ताकि आने वाली पीढ़ी को वृक्ष सरंक्षण के प्रति जागरूक किया जा सके।

कहते हैं भावों में भगवान बसते हैं तथा जब भावों का प्रकटीकरण वास्तविकता के धरातल पर होने लगता है तो वह कार्य रूप में प्रणीत होता है।  जब भावों का स्वरूप सकारात्मक भाव को प्रकट करता है तो कार्य के सकारात्मक परिणाम आते हैं परन्तु जब भाव नकारात्मक स्वरूप में होते हैं तो कार्य के नकारात्मक परिणाम आते हैं। मानव जीवन में भावों का बहुत बड़ा महत्व है, व्यक्ति जीवन में सकारात्मक है या नकारात्मक,  यह उसके द्वारा प्रकट भावों से पता चलता है। वास्तव में दैनिक जीवन में हम जिन भावों को महत्व देते हैं उन्हीं भावों के प्रति सक्रियता दिखाते हैं तथा वही भाव हमारे जीवन में वास्तविकता का रूप धरकर प्रकट होते हैं। हमारे द्वारा प्रकट भावों से ही हमारे आचार, विचार तथा व्यवहार का निर्माण होता है। यही कारण है कि, सनातनी संस्कृति में व्यक्ति के आचार, विचार तथा व्यवहार के शुद्धिकरण के लिए मन के भावों को शुद्ध करने पर अधिक जोर देकर परमावश्यक माना गया है। हमारे मनोभावों में कृतज्ञता का भाव जितना शक्ति धारण करेगा हमारे अन्दर के मानवीय गुण उतने ही प्रबल होगें। एक मानव के लिए मानवीय गुंणों को प्रकट करने के लिए कृतज्ञता का स्थायी भाव होना अनिवार्य तथा पहली शर्त है। कृतज्ञता चाहे प्रकृति के प्रति हो, ईश्वरीय शक्ति के प्रति हो, माता-पिता, गुरूजनों के प्रति हो या अन्य जेष्ठ, श्रेष्ठ तथा वरिष्ठजनों के प्रति हो जितनी बलवती होगी वह मानव मानवीय गुणें से उतना ही ओतप्रोत होगा।


प्रतिवर्ष 30 जुलाई को वृक्ष संरक्षण दिवस मनाने की आवश्यकता


मध्य हिमालयी क्षेत्र भारत का भाल उत्तराखण्ड की संस्कृति में कृतज्ञता का भाव स्थायी रूप से विद्यमान है। यही कारण है कि, यह संस्कृति मानवीय गुणों से ओत-प्रोत होकर सम्पूर्ण विश्व में श्रेष्ठ संस्कृति के रूप मानी जाती है। प्रकृति प्रदत्त वृक्ष हमें जीवन जीने के साधन उपलब्ध कराते हैं, अतः इन वृक्षों के प्रति कृतज्ञता का भाव प्रकट करना हमारा प्रथम नैतिक कर्त्तव्य है। इसी भाव के कारण इस क्षेत्र के लोग मूल रूप से प्रकृति पूजक रहे हैं। संस्कारों से ही संस्कृति का निर्माण होता है, प्रकृति संरक्षण का भाव यहां की संस्कृति में सन्निहित है। यहां की संस्कृति के प्रत्येक संस्कार में प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का भाव प्रकट किया जाता रहा है, इसलिए इस संस्कृति को अरण्यक संस्कृति भी कहा जाता है। मानवीय संस्कारों में जब प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का भाव समाहित हो जाता है तो वे प्रकृति संरक्षक बन जाते हैं। मध्य हिमालयी क्षेत्र के उत्तराखण्ड में रची-बसी यह संस्कृति हमें सदियों से प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का भाव जाग्रत करने के लिए प्रेरित करती रही है। भले ही वर्तमान समय में आधुनिकता के नाम पर दोहनकारी संस्कृति ने कृतज्ञता के भाव को विचलित करने का कुत्सित प्रयास जरूर किया है जिसके कारण ही प्रदूषणरूपी महा दानव ने जन्म लिया। यही दानव इस समय आधुनिकता के नाम पर सम्पूर्ण धरातल पर आच्छादित होने के लिए आतुर दिखायी देता है। अति दोहनकारी इस दानव ने ही मानव मति को भ्रमित कर मानव का असंस्कारी बना दिया है तथा उसके मस्तिष्क पटल से प्रकृति के प्रति कृतज्ञता के भाव को समाप्त करने का कार्य किया है। आज आवश्यकता है कि मानव को पुनः कैसे संस्कारी बनाया जाए ताकि, उसके आन्तरिक गुणों में कृतज्ञता का स्थायी भाव समाहित हो सके।

 आज सम्पूर्ण विश्व में पर्यावरण संरक्षण के नाम पर प्रति वर्ष करोड़ो पौधे लगाये जाते हैं परन्तु उचित संरक्षण के अभाव में अधिकांश पौधे दम तोड़ देते हैं। आज पौध लगाने से कई ज्यादा आवश्यकता वृक्ष संरक्षण की है। इसलिए मानवीय भावनाओं को वृक्ष संरक्षण के प्रति जाग्रत करने के लिए प्रति वर्ष 30 जुलाई को वृक्ष संरक्षण दिवस मनाया जाना चाहिए। मानव की इस भावना को जाग्रत करने से न सिर्फ रोपित पौध सुरक्षित करने की प्रेरणा मिलेगी बल्कि वृक्षों के प्रति आत्मियता का भाव भी जाग्रत होगा।

प्रकृति के प्रति इसी भाव को पुनः स्थापित करने के लिए उत्तराखण्ड राज्य के पौड़ी जिले के राठ क्षेत्र में कार्यरत सामाजिक संस्था समलौंण इस दिशा में निरन्तर कार्य कर रही है। संस्था संस्कारों से आत्मसात् करते हुए पौधरोपण करवा रही है तथा रोपित पौध की सुंरक्षा के लिए भावनात्मक सम्बन्ध स्थापित कर रही है। वैसे तो शिक्षक बीरेन्द्र गोदियाल  वर्ष 2000 से इसी भाव से पर्यावरण संरक्षण की दिशा में निरन्तर कार्य कर रहे थे। परन्तु संस्था ने अपने मिशन समलौंण का शुभारम्भ 30 जुलाई 2010 से किया था। संस्था तब से इस दिशा में निरन्तर कार्यरत है।


वृक्ष संरक्षण में समलौण संस्था का योगदान


राठ क्षेत्र की आराध्य देवी मां बूंखाल कांलिका में पशु बलि प्रथा को बंद करने प्रख्यात पशुप्रेमी मेनिका गांधी क्षेत्र के संभ्रांत नागरिकों के बीच 30जुलाई 2010 को राजकीय इंटर कालेज चौंरीखाल में एक सेमिनार में पहुंची, उस पल को यादगार बनाने के लिए संस्था के संस्थापक शिक्षक बीरेन्द्र गोदियाल 5 काफल के पौधे समलौण के रूप में लेकर उन निरीह पशुओं की याद में लगाने चौंरीखाल पहुंचे तथा तत्कालीन जिलाधिकारी दिलीप जावलकर से पौधारोपण हेतु निवेदन किया, कि मैं लोकसभा सदस्य मेनका गांधी के हाथों पौधारोपण करवाऊंगा, उक्त कार्य हेतु उन्हें जिलाधिकारी द्वारा पूरा सहयोग प्रदान किया गया। वे बताते हैं कि, तब संस्था नहीं थी परन्तु भाव मौजूद था। उस समय पौधों की संरक्षण की जिम्मेदारी विद्यालय के प्रधानाचार्य शोभाराम बौन्ठियाल को दी गई। वे बताते हैं कि, पहले मैं उस विद्यालय का छात्र रहा हूं, मैं स्वयं भी रोपित पौधों को देखने यदा कदा जाता रहता था। पौधे निरन्तर बढ़ रहे थे उनको देखकर मन प्रफुल्लित होता गया।  और जब वे वृक्ष का रूप लेने लगे मेरे मित्र सुभाष चन्द्र नौटियाल ने मुझे सुझाव दिया कि, जिस प्रकार से हम अपने व अपने बच्चों का जन्मदिवस बड़े धूमधाम से मनाते हैं, क्यों न रोपित वृक्षो का जन्मदिवस भी मनाया जाय, ताकि वृक्षों के प्रति हमारा भावनात्मक लगाव स्थापित हो सके और हमारा पर्यावरण मजबूत हो सके, उनके सुझाव से आत्मसात् करते हुए काफल के समलौंण पौधे की 10वीं वर्षगांठ पर 30जुलाई 2020 को संस्था द्वारा वृक्ष जन्मोत्सव का आयोजन किया गया। इस आयोजन में विद्यालय परिवार का बड़ा सहयोग प्राप्त हुआ। आयोजन में क्षेत्र की महिला मंगल दलों के द्वारा मांगल गीत गाकर उत्साह को दुगुना कर दिया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि क्षेत्र के पूर्व विधायक राठ गौरव के नाम से प्रसिद्ध गणेश गोदियाल थे। वनक्षेत्राधिकारी पैठाणी रश्मि ध्यानी समलौंण सेना नायिका ग्राम बहेड़ी सीमा देवी गोदियाल, सेना नायिका खण्ड गांव गोदाम्बरी देवी आदि ग्रामीण शिक्षक एवं क्षेत्रवासी इस आयोजन में उपस्थित होकर कार्यक्रम की गरिमा बढ़ा रहे थे। वे आगे बताते हैं कि, श्री नौटियाल के अनुरोध पर ही संस्था के द्वारा हर वर्ष 30 जुलाई को वृक्ष संरक्षण दिवस मनाने का संकल्प लिया गया। संस्था राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय सरकारों से भी मांग करती है कि, प्रतिवर्ष 30 जुलाई को वृक्ष संरक्षण दिवस के रूप में मनाया जाए ताकि आने वाली पीढ़ी के संस्कारों में वृक्ष संरक्षण के प्रति आत्मियता का भाव जागृत हो सके तथा वे वृक्षों की महत्ता को जान सकें। 

वृक्ष ही हमारे जीवन के आधार हैं कहा भी गया है-

वृक्षाद् वर्षति पर्जन्य: पर्जन्यादन्न सम्भव

(अर्थात वृक्ष जल है, जल अन्न है, और अन्न से ही जीवन सम्भव है।) 

आओ हम सब मिलकर वृक्षों में प्रति कृतज्ञता का भाव प्रकट करने के लिए प्रति वर्ष 30 जुलाई को वृक्ष संरक्षण दिवस मनाऐं। कृतज्ञता के इस भाव से धरती को जीने के लिए सुरक्षित व हरा-भरा बनाऐं।

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