गोष्ठी समीक्षा
साहित्यकार की संजीवनी है उसका साहित्य
रिद्धि भट्ट
कोटद्वार। साहित्यकार की संजीवनी उसका साहित्य ही होता है, जिसको जीते जी उतना मान नहीं मिल पाता, परन्तु यदि परिवार उनका जन्मदिन एक साहित्यिक गोष्ठी के रूप में आयोजित करे और उन्हें उनके साहित्यिक मित्रों का समागम एक उपहार स्वरुप मिले तो क्या कहने। यही हुआ और वरिष्ठ साहित्यकार, शिक्षक, ख्यातिलब्ध पत्रिका अलकनंदा के संस्थापक पूर्व सम्पादक, कुशल नेता, सामाजिक चिंतक और समय परिस्थितियों ने जिन्हे मनोवैज्ञानिक बना दिया( कि 81 वर्ष की आयु में वे एम ए मनोविज्ञान से कर पाए)
आदरणीय योगेश पांथरी जी का जन्मदिन एक सरप्राइज गोष्ठी के रूप में उनके आवास पर उनके साहित्य पर विमर्श के साथ मनाया गया. वक्ता जिन्हें वे मिलना भी चाहते थे और सुनना भी. कुल मिलाकर कार्यक्रम अच्छा रहा और एक सुंदर माहौल में आपके कार्यों का अनुशीलन भी हुआ. सादगी भरे वातावरण में भोजन के साथ कार्यक्रम का समापन और आगे के लिए उनकी साहित्यिक सम्पदा को संरक्षण प्रदान करना भी हमारी जिम्मेदारी है
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