जल वन्दना
सुभाष चन्द्र नौटियाल
लेखक
आत्मसत्ता का कारक जल
अखिल ब्रह्माण्ड
के परम् सत्ता के सृजन से सोमदेव तथा पवस्वमान देव की उपस्थिति, सूर्यदेव, वायुदेव तथा चन्द्रदेव के प्रभाव
के कारण हे जल समूह! आप सर्वशक्तिमान हैं। आप में समायी असीम शक्तियों के कारण ही आप
आत्मशुद्धि, आत्मतृप्ति
तथा आत्ममुक्ति के साधन हो। आत्मा को परमात्मा में एकनिष्ठता स्थापित करने के आप मूल हैं। इसीलिए
हे प्रभु! आप आत्मसत्ता के कारक कहे गये हैं। समस्त अखिल ब्रह्माण्ड में पुष्टिकारक
जीवनदायिनी शक्ति होने के कारण आप सदैव पूजनीय हैं।
हे जलदेव! आपकी ही शक्तियों से प्रेरित होकर हम यह जल स्तुति करने में
समर्थ हैं। हे प्रभो! हमारे द्वारा विनम्र भाव से की गयी यह स्तुति स्वीकार करें।
हे सुखकारक, पुष्टिदायक
जलदेव! आप सुखों के मूल हैं, आपके द्वारा प्रदत्त शक्तियों से प्रेरित होकर हम सदैव जगत हित
के कार्यों में संलग्न देवों के सहायक बनें। हमारी श्रेष्ठ सृजनात्मक देव शक्तियां
कभी भी स्खलित न हों।
हे आत्मतृप्तिदायक जलदेव! समस्त जगत् की आसुरी वृत्ति, हानिकारक विध्वंसक शक्तियों को नष्ट
करते हुए इस चराचर जगत् की सृजनात्मक शक्तियों को जागृत करते हुए चिरस्थायी शान्ति
स्थापित करें।
हे श्रेष्ठतादायक जल समूह! हम आप में परम् सत्ता की छवि देखते हैं, हमारे द्वारा विनय पूर्वक की गयी
स्तुति को स्वीकार करते हुए हम पर सदैव कृपादृष्टि बनाये रखें।
"जलवन्दनं"
'सुभाषचन्द्र: नौटियाल:'
लेखकः
आत्मसत्ताकारकं
जलम्
सोमदेवपवस्वमानदेवयो: सान्निध्यकारणात् सम्पूर्णजगत: परमशक्तिनिर्माणकारणात्
सूर्यदेवस्य, वायुदेवस्य, चन्द्रदेवस्य प्रभावकारणात् हे जलसमूह!
त्वं सर्वशक्तिमान् असि । त्वयि निहितानाम् अनन्तशक्तेः कारणात् त्वं आत्मशुद्धि-आत्म-तृप्ति-आत्म-मुक्ति-उपायः, त्वं परमात्मनि आत्मनः एकतायाः स्थापनामूलः
असि। अत एव अहो भगवन् ! त्वं आत्मसत्ताकारकः इति उच्यते । त्वं सर्वदा पूजनीय: असि
यतः त्वं समग्रे जगति सकारात्मकं प्राणदायी असि ।
हे जलदेव ! भवतः शक्तिप्रेरिताः वयं एतस्य जलस्य स्तुतिं कर्तुं समर्थाः
स्मः। अस्माकं स्तुतिं प्रतिगृह्यताम् विनयेन भगवन् !
हे सुखकारक! पुष्टिदायक ! जलदेव ! भवतः प्रेरणाभिः अस्माकं सृजनशीलता
सर्वदा जागृतावस्थायां भवेत्, अस्माकं दिव्यशक्तयः कदापि क्षीणाः न भवेयुः।
हे जलदेव! त्वं सुखस्य मूलः अस्ति, आत्मशक्तिहेतु भवद्भिः दत्तैः भवतः सृजनशक्तैः
प्रेरिताः वयं जगतः हिताय कार्येषु निरताः 'देवानाम्' सहायकाः सदा भवेम। अस्माकं परमसृजनात्मकाः
दिव्यशक्तयः कदापि स्खलिता: न भवेयु;
हे आत्मतृप्तिदायकजलदेव! सम्पूर्णस्य जगतः आसुरीप्रवृत्तिः, हानिकारकविनाशकारीशक्तयः च नाशयित्वा
अस्य चराचरजगतः सृजनात्मकशक्तयः जागृत्य स्थायिशान्तिं स्थापयतु।
हे श्रेष्ठतादायक! जलसमूह ! त्वयि पश्यामः परमात्मनः प्रतिबिम्बम्।
अस्माभिः विनयेन कृतं स्तुतिं स्वीकृत्य, अस्मान् प्रति सर्वदा दयालुदृष्टिः भवतु।
अनुवादक- श्री कुलदीप मैन्दोला, संस्कृत
शिक्षक, राजकीय इण्टर कॉलेज, कण्वनगरी
कोटद्वार
Water
Praise
Subhash Chandra Nautiyal
Writer
Water, the factor of
self-soul of power
In the presence of Somdev and Pavaswamandev due to the creation
of the supreme power of the entire universe, O water group due to the influence
of Suryadev, Vayudev and Chandradev! You are omnipotent. You are the means of
self-purification, self-satisfaction and self-liberation because of the
infinite powers contained in you. You are the source of establishing the unity
of the soul in the divine. That's why oh Lord! You have been called the factor
of self-soul of power. You are always worshipable because you are the affirming
life-giving force in the entire universe.
O Water God! Inspired by your powers, we are able to praise this
water. Oh, Lord! Please accept our humble praise.
O soothing, affirming water god! You are the source of
happiness, inspired by the powers given by you, we should always be helpful to
the gods engaged in works for the benefit of the world. May our supreme
creative divine powers never fail.
O self-satisfied water god! Establish lasting peace by
destroying the demonic instincts, harmful destructive forces of the whole world
and awakening the creative powers of this grazing world.
O superior water group! We see the image of the Supreme Being in
you, accepting our humbly praise, always keep your kind eyes on us.
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