ज्वालपा धाम : जहां जलती है अखण्ड जोत - TOURIST SANDESH

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मंगलवार, 5 नवंबर 2019

ज्वालपा धाम : जहां जलती है अखण्ड जोत

  ज्वालपा धाम : जहां जलती है अखण्ड जोत

                                                                                                     राजीव थपलियाल

 

  (सहायक अध्यापक (गणित), राजकीय आदर्श प्राथमिक विद्यालय सुखरौ (देवी) कोटद्वार-पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड)    
                   
 ऐतिहासिक ज्वालपा धाम में अखंड जोत के रूप में विराजमान है माँ ज्वाल्पा  देवी सिद्धपीठ  माँ ज्वाल्पा देवी मंदिर जनपद पौड़ी गढ़वाल के कफोलस्यूं पट्टी के अणेथ में पूर्वी नयार के तट पर स्थित हैं। माँ ज्वाल्पा का यह धाम भक्तों व श्रद्धालुओं के लिए सारे साल भर खुला रहता है। इस धाम में चैत्र व शारदीय नवरात्रों में पूजा-अर्चना  विशेष विधि-विधान के साथ की जाती है। कहा जाता है कि- सिद्धपीठ मां ज्वाल्पा देवी मंदिर की स्थापना वर्ष 1892 में हुई थी। मंदिर की स्थापना स्व. दत्तराम अणथ्वाल व उनके पुत्र बूथा राम अणथ्वाल ने की थी। इस मंदिर में माता ज्वालपा अखंड जोत के रुप में गर्भ गृह में विराजमान है। मंदिर परिसर में हवन करने हेतु यज्ञ कुंड भी है। माँ के धाम के आस-पास हनुमान मंदिर, शिवालय, काल भैरव मंदिर, मां काली मंदिर भी स्थित हैं।केदार खंड के मानस खंड में सिद्धपीठ मां ज्वाल्पा देवी मंदिर का नयार के तट पर स्थित होने का वर्णन है। मानस खंड में कहा गया है कि इस स्थान पर दानव राज पुलोम की पुत्री सुची ने भगवान इंद्र को वर के रूप में पाने के लिए मां भगवती की कठोर तपस्या की थी।सूची के तप से माँ ने बहुत खुश होकर ज्वालपा के रुप में उन्हें दर्शन दिए। तभी से मां ज्वाल्पा अखंड ज्योति के रुप में अपने प्रिय भक्तों व श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं पूर्ण करती है ।अणेथ गांव के अणथ्वाल लोग काफी पुराने समय से माँ ज्वालपा के उपासक हैं। जो अणेथ के साथ ही नौगांव व कोला में रहते हैं।सिद्धपीठ माँ ज्वाल्पा देवी मंदिर स्थल को काफी पहले से अमकोटी नामक स्थान के रुप में जाना जाता था। जो कफोलस्यूं, खातस्यूं, मवालस्यूं, रिंगवाड़स्यूं, घुड़दौड़स्यूं, गुराड़स्यूं पट्टियों के विभिन्न गांवो के ग्रामीणों के रुकने का स्थान था। एक बार की बात है कि इस स्थान पर एक कफोला बिष्ट ने अपना सामान याने कि,नमक से भरे कट्टे इस स्थान पर रख दिए जिन्हें वह विश्राम करने के बाद दोबारा नहीं उठा पाया। कट्टा खोलने पर उसने देखा कि उसमें मां की मूर्ति थी। जिसके बाद वह मूर्ति को उसी स्थल पर छोड़कर चला गया। जिसके बाद एक दिन अणेथ गांव के दत्त राम के सपने में मां ज्वाल्पा ने दर्शन देकर मंदिर बनाए जाने को कहा।
सिद्धपीठ मां ज्वाल्पा देवी मंदिर तक पहुंचने के लिए सड़क मार्ग सबसे प्रचलित मार्ग है। ज्वाल्पा देवी मंडल मुख्यालय पौड़ी से करीब 30 किमी और कोटद्वार से लगभग 72 किमी दूरी पर कोटद्वार-पौड़ी राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है। जहां कोटद्वार-सतपुलि-पाटीसैण और श्रीनगर-पौड़ी-परसुंडाखाल होते हुए पहुंचा जा सकता है। राजमार्ग से मात्र 200 मीटर नीचे उतरकर मां का दिव्य धाम है।  इस पीठ के बारे में यह बात बड़ी प्रसिद्ध है कि यहां आने पर हर व्यक्ति की मनोकामना पूर्ण होती है इस सिद्धपीठ में चैत्र और शारदीय नवरात्रों में विशेष पाठ का आयोजन होता है। इस मौके पर देश-विदेश से बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। विशेषकर अविवाहित कन्याएं सुयोग्य वर की कामना लेकर आती हैं।माँ ज्वाल्पा देवी थपलियाल और बिष्ट जाति के लोगों की कुलदेवी है स्कंदपुराण के अनुसार, सतयुग में दैत्यराज पुलोम की पुत्री शची ने देवराज इंद्र को पति रूप में प्राप्त करने के लिए नयार नदी के किनारे ज्वाल्पा धाम में हिमालय की अधिष्ठात्री देवी मां पार्वती की तपस्या की थी माँ पार्वती ने शची की तपस्या से प्रसन्न होकर उसे दीप्त ज्वालेश्वरी के रूप में दर्शन देते हुए उसकी मनोकामना पूर्ण की। ज्वाला रूप में दर्शन देने के कारण इस स्थान का नाम ज्वालपा धाम पड़ा। इस पीठ के बारे में यह बात बड़ी प्रसिद्ध है कि यहां आने पर हर व्यक्ति की मनोकामना पूर्ण होती है इस सिद्धपीठ में चैत्र और शारदीय नवरात्रों में विशेष पाठ का आयोजन होता है। इस मौके पर देश-विदेश से बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। विशेषकर अविवाहित कन्याएं सुयोग्य वर की कामना लेकर आती हैं।माँ ज्वाल्पा देवी थपलियाल और बिष्ट जाति के लोगों की कुलदेवी है स्कंदपुराण के अनुसार, सतयुग में दैत्यराज पुलोम की पुत्री शची ने देवराज इंद्र को पति रूप में प्राप्त करने के लिए नयार नदी के किनारे ज्वाल्पा धाम में हिमालय की अधिष्ठात्री देवी मां पार्वती की तपस्या की थी माँ पार्वती ने शची की तपस्या से प्रसन्न होकर उसे दीप्त ज्वालेश्वरी के रूप में दर्शन देते हुए उसकी मनोकामना पूर्ण की। ज्वाला रूप में दर्शन देने के कारण इस स्थान का नाम ज्वालपा धाम पड़ा।

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