आर्दश शिक्षक डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन - TOURIST SANDESH

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रविवार, 1 सितंबर 2019

आर्दश शिक्षक डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन

         आर्दश शिक्षक डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन

                                                                                                                 

                 राजीव थपलियाल

 

 

धन्य है ,अपने नैसर्गिक सौंदर्य के लिए विश्व विख्यात हमारी पुण्यतोया भारत वसुंधरा जिसमें, 5 सितंबर के बेहतरीन मौके पर, सन 1888 ईव में तमिलनाडु राज्य के तिरूतणी नामक ग्राम में महान दार्शनिक,शिक्षाविद और स्वतंत्र भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति तथा दूसरे राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी का जन्म हुआ था। राधाकृष्णन जी अपनी पढ़ाई लिखाई पर बहुत ध्यान देते थे और हर समय अव्वल रहते थे।धीरे-धीरे जीवन के हर क्षेत्र में आगे बढ़ते हुए इस प्रखर वक्ता और आस्थावान विचारक ने अपने जीवन के 40 महत्वपूर्ण साल शिक्षण कार्य को समर्पित कर दिए, सन 1952 से 1962 तक वे भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति तथा 1962 में ही देश के दूसरे राष्ट्रपति बने।शिक्षा के क्षेत्र में इस महान विभूति का योगदान अविस्मरणीय है।सारे विश्व में एक--कुशल प्रशाशक, जाने-माने विद्वान,देशभक्त और उच्च कोटि के शिक्षाशास्त्री के रूप में इनकी गिनती होती है। वे सारे विश्व को शिक्षालय मानते थे।उनकी मान्यता थी कि,शिक्षा के द्वारा ही मानव मष्तिष्क का शानदार ढंग से सही दिशा में सदुपयोग किया जाना संभव है। उनके बहुआयामी व्यक्तित्व की बहुत खास बात यह थी कि- वे अपनी हंसाने और गुदगुदाने वाली कहनियों, बुद्धिमता पूर्ण व्याख्यानों, तथा आनंददायी अभिव्यक्ति से अपने विद्यार्थियों को मंत्रमुग्ध कर दिया करते थे। दर्शनशास्त्र जैसे गंभीर विषय को वे अपनी लाजबाब शैली से सरल और रोचक बना देते थे। यदि हम इनकी उपलब्धियों का आंकलन करें तो पाते हैं कि- (1)रूस में भारत का राजदूत रहते हुए-विश्व के विभिन्न देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित किये।  (2) वाल्टेयर विश्वविद्यालय के वाईस चांसलर रहे। (3) सन 1939 से 1948 तक बी एच यू के चांसलर रहे। (4) 1948 में यूनेस्को में भारतीय प्रतिनिधि  के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज करायी, इनके अलावा- डॉव सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी प्रथम भारतीय के रूप में ब्रिटिश अकादमी के लिए चुने गए। कई वर्षों तक ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर रहे। कोलकता विश्वविद्यालय के जॉर्ज पंचम कॉलेज में भी प्रोफेसर रहे। वर्ष 1954 में इन्हें देश के सर्वोच्च  नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया।  1961 में इन्हें जर्मनी के एक पुस्तक प्रकाशन द्वारा विश्व शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 1975 में इन्हें टेम्पलटन पुरस्कार प्रदान किया गया। समग्रता में यदि देखा जाय तो इस महान शिक्षाविद के जीवन का सफर बहुत प्रेरणादायक रहा, इस महान शिक्षा शास्त्री को हमारा कोटि- कोटि प्रणाम। समूचे विश्व में शिक्षा का दीपक जलाते-जलाते इस महान विभूति का पार्थिव शरीर 17 अप्रैल 1975 को पंचतत्व में विलीन हो गया। अपनी विद्वता,कर्मठता और भारतीय संस्कृति के सच्चे उपासक के रूप में डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी सदैव स्मरणीय बने रहेंगे। हमारे देश के आदर्श शिक्षकों को समर्पित कुछ पंक्तियां ----  

 बुराँश के फूलों सा खिलकर,

महकता और महकाता शिक्षक।

नित नए प्रेरक आयाम लेकर,

हर पल रोचक बनाता शिक्षक।

खूब सारा ज्ञान हमें देकर,

खिलखिलाता है शिक्षक।

वतन के लिए सब कुछ लुटाने की,

हर राह दिखाता शिक्षक।                      

(लेखक सहायक अध्यापक (गणित), राजकीय आदर्श प्राथमिक विद्यालय सुखरौ देवी , कोटद्वार पौड़ी गढ़वाल हैं।)
   
   
   

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