महापौर बनने का सतरंगी एहसास
माघी दीदी, पुषी भुली को जब से ज्ञात हुआ हैं कि कोटद्वार नगर निगम महापौर की सीट महिला आरक्षित हो गयी हैं तो तब से उनके मन में निरन्तर लड्डू फूट रहें हैं। ऐसा नहीं हैं कि केवल माघी दीदी और पुषी भुली के मन में ही महापौर बनने का सतरंगी एहसास हो रहा है इसी क्रम में चैती चच्ची, फाल्गुणी बोड़ी, जेठी दादी, अषाढ़ी काकी, भद्वा मामी, सौणी भौजी, असूजी ब्वारी, मंगशीरी बुड्डी तथा अनेक जेठी -कणसी महिलायें निरन्तर महापौर बनने का सपना संजोये हुए हैं। महापौर बनने के इस सतरंगी एहसास में अनेक भद्र महिलायें ख्याली पुलाव में डुबकी लगा रहीं है। बसंती बौ कल रात से मेयर बनने के सपनें पर इतरा रहीं है तो झबरू दा की झवेरी मेयर शब्द सुनते ही शरमा रहीं हैं, उसे लगता हैं कि कोटद्वार की प्रथम मेयर बनने का सपना बस पूरा होने ही वाला हैं। बैचैनी और उत्साह का आलम यह हैं कि आज सुबह की चाय वह ऐसे घटक गयी जैसे कोई पानी घटक जाता हैं। मुन्नी दीदी, नानीजी के साथ भाषण देने का अभ्यास कर रहीं हैं तो पधनी बौ भैजी से नेतागिरी के नुस्खे सीख रहीं हैं। सरू दी पहले से ही अपनी नेतागिरी का रौब झाड़ रहीं है। कुन्ती फुफू (बुआ) अपनी सीनियरटी का रौब दिखा रहीं हैं। महापौर और पार्षद बनने के चक्कर में कम से कम समाज सेवा का एक दौर तो कोटद्वार में शुरू हो ही चुका हैं। महिला समाजसेवा उफान पर हैं तो पुरूष महत्वकांक्षा ढलान पर। महिला सशक्तिकरण का नायाब उदाहरण इस समय कोटद्वार में देखा जा सकता हैं।
माघी दीदी, पुषी भुली को जब से ज्ञात हुआ हैं कि कोटद्वार नगर निगम महापौर की सीट महिला आरक्षित हो गयी हैं तो तब से उनके मन में निरन्तर लड्डू फूट रहें हैं। ऐसा नहीं हैं कि केवल माघी दीदी और पुषी भुली के मन में ही महापौर बनने का सतरंगी एहसास हो रहा है इसी क्रम में चैती चच्ची, फाल्गुणी बोड़ी, जेठी दादी, अषाढ़ी काकी, भद्वा मामी, सौणी भौजी, असूजी ब्वारी, मंगशीरी बुड्डी तथा अनेक जेठी -कणसी महिलायें निरन्तर महापौर बनने का सपना संजोये हुए हैं। महापौर बनने के इस सतरंगी एहसास में अनेक भद्र महिलायें ख्याली पुलाव में डुबकी लगा रहीं है। बसंती बौ कल रात से मेयर बनने के सपनें पर इतरा रहीं है तो झबरू दा की झवेरी मेयर शब्द सुनते ही शरमा रहीं हैं, उसे लगता हैं कि कोटद्वार की प्रथम मेयर बनने का सपना बस पूरा होने ही वाला हैं। बैचैनी और उत्साह का आलम यह हैं कि आज सुबह की चाय वह ऐसे घटक गयी जैसे कोई पानी घटक जाता हैं। मुन्नी दीदी, नानीजी के साथ भाषण देने का अभ्यास कर रहीं हैं तो पधनी बौ भैजी से नेतागिरी के नुस्खे सीख रहीं हैं। सरू दी पहले से ही अपनी नेतागिरी का रौब झाड़ रहीं है। कुन्ती फुफू (बुआ) अपनी सीनियरटी का रौब दिखा रहीं हैं। महापौर और पार्षद बनने के चक्कर में कम से कम समाज सेवा का एक दौर तो कोटद्वार में शुरू हो ही चुका हैं। महिला समाजसेवा उफान पर हैं तो पुरूष महत्वकांक्षा ढलान पर। महिला सशक्तिकरण का नायाब उदाहरण इस समय कोटद्वार में देखा जा सकता हैं।
धन्य हैं उत्तराखण्ड की सरकार जिसनें कोटद्वार नगरपालिका का विस्तार कर नगर निगम बनाने का फैसला लिया तथा मेयर की सीट महिला आरक्षित की वरना नहीं तो महिला सशक्तिकरण धरा का धरा रह जाता। गुड्डी ब्वारी इस समय अपनी छोटी बिटियां के साथ राग मेयर गा रहीं हैं तो सरूली काकी पार्षद में ही संतोष का भाव प्रकट कर रहीं हैं। इन्द्रधनुषी रंगों को समेटे महिला महत्वकांक्षा इस समय कोटद्वार में चमक बिखेरने को तैयार है। नगर निकायों के चुनाव में एक वर्ग यह कहते भी सुना गया कि अबके दिवाली ठीक-ठाक रहने वाली हैं। सतरंगी एहसास भी नजर आने ही लगा है। बैशाखी भाभी ने हमें जानकारी देते हुए बताया कि मैंने चुनाव प्रचार के लिए एक नई महंगी कार भी खरीद ली हैं साथ ही समाज सेवा के माध्यम से निरन्तर जनता से सम्पर्क साध रही हूं तथा पार्टी से टिकट का जुगाड़ भी भिड़ा रहीं हूं।
अभी कल की ही बात हैं जब नरू चच्चा मेरे ऑफिस में आकर कह गये कि ‘‘बेटा इबरि की दां तेरी चच्ची भी मेयर की दवेदार च, ध्यान रख्खी‘‘ हलांकि मैंने चाचाजी तथा चाचीजी से बडी शालीनता से कह दिया कि मैं इन फरपंचों में पड़ने वाला व्यक्ति नहीं हूं फिर भी नरू चच्चा ने जोर देकर कहा कि ‘‘ बेट्टा तू त मेरा गौं कु छैं त्वैथैं त मेरू दगंडू़ कनू ही पड़ालू‘‘ परन्तु मैंने फिर शालीनता से अपनी बात दोहरा दी। अभी चाचाजी तथा चाचीजी को बड़ी मुश्किल से रूखसत ही किया था कि, मुन्ना भैजी-भाभी जी के साथ मेरे ऑफिस में आ धमके।
मंद-मंद मुस्कान लिये मुन्ना भैजी मेरे से बोले कि भुला मैं तो इधर से गुजर रहा था सोचा कि तेरे से मिलता चलुं इस बहाने तेरी भाभी भी तेरा ऑफिस देख लेगी, शायद कभी कोई आवश्यकता आन पड़े। मैंने मन में सोचा कि पिछले पांच सालों से तो भैजी को कभी मेरी याद नहीं आई परन्तु आज अचानक ऐसा क्या हुआ जो कि भैजी को मेरे दफ्तर तक खींच लाया। मैं मन में विचार कर ही रहा था कि भैजी ने बात शुरू करते हुए कहा कि भुला तुझे पता ही है कि, कोटद्वार नगर निगम की सीट महिला आरक्षित है। बातों ही बातों में कोटद्वार नगर निगम की तान छेड़ कर भैजी कोटद्वार विकास के सतरंगी सपनों में खो गये मुझे भी आश्चर्य होने लगा कि आज भैजी को कोटद्वार विकास की इतनी चिंता क्यों सता रही है।
मैं कुछ सोच ही पाता कि भैजी स्वयं ही बोल पड़े कि भुला कोटद्वार नगर निगम के चुनाव ह,ैं तेरी भाभी भी मेयर पद की दावेदार है हमने तो शुरूआत कर दी है, तू भी ध्यान रखना। मैंने बात को टालने के लिये यूं ही कह दिया कि जब चुनाव होंगे तब देख लेंगे, कैसी स्थिति बनती है, अभी स्थिति कुछ भी साफ नहीं है इसलिए कुछ भी कह पाना कठिन हैं।फिर भी भैजी जाते-जाते अपनी बात दोहरा गये।
महिला सशाक्तिकरण जैसे भारी भरकम शब्द इस समय कोटद्वारी हवा में उछाल मार रहें है। ऐसा लगता हैं कि महिलाओं का सारा सशक्तिकरण सिमट कर कोटद्वार में समा गया हैं। महत्वकांक्षा को मन में दबाये पुरूष प्रजाति खामोश और सहमी हुई नजर आती हैं। ऐसा लगता हैं जैसे पुरूष प्रजाति के सपनों पर भारी कुठाराघात हुआ हो। नियति के आगे बेबस महत्वकांक्षी पुरूष प्रजाति महिलाओं को आगे कर मेयर होने का दम्भ भर रहे हैं कि, कम से कम मेयर ना सही मेयर पति होने का सौभाग्य तो उन्हें मिल ही सकता है तो सतरंगी सपनों में खोई महत्वकांक्षी महिला प्रजाति निरन्तर नये-नये सपने बुन रही है। देखो आने वाला कल क्या खबर ले के आता है।

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