व्यंग्य
अजी! काम में क्या रखा है?
प्रदेश में छोटी सरकार यानी नगर निकाय चुनावों का बुखार धीरे-धीरे बढ़ रहा है। सियासत की इस उबाल में राजनीति के कई घिसे-पिटे चहरे राजनीति के फेसियल के बाद अचानक चमक उठे हैं। छुट भैया नेताओं की बढ़ती चहल कदमी से सुनसान गली-मुहल्ले भी रौनक से सराबोर हो चुके हैं। राजनीतिक पार्टियों के नेताओं तथा कार्यकर्त्ताओं की चहचहाट से आबाद होते गली-मुहल्ले सियासत की रंगत में सराबोर हुए जा रहे हैं। ऐसा लग रहा है मानो पूरे जमाने की रौनक निखर कर इन शहरी गलियों में समा रही हो। नाम की गुंज से गली -मुहल्ले निखर उठे हैं। नाम से ही सियासी चमक बनती है। नाम बिना तो सब कुछ फीका है, सियासी चमक तो नाम से ही बनती है। अब देखो ना सियासी पार्टियों ने टिकट वितरण में नाम का पूरा-पूरा ध्यान रखा केवल और केवल नामी-गिरामी नेताओं की पत्नियों को टिकट दिये हैं। बेचारे कार्यकर्त्ता मुंह ताकते और झंड़ा-डंडा उठाते रह गये तथा नामी नेताओं की पत्नियां धीरे से टिकट ले उड़ी। यह सब नाम का चमत्कार ही था। पहले लोग कहते थे कि, अजी! नाम में क्या रखा है। व्यक्ति की पहचान तो काम से होती है परंतु अब शायद कलयुग में काम की महत्ता नहीं बल्कि नाम की महत्ता है। आप कितने भी अच्छे कामगार क्यों ना हो, जब तक कोई प्रतिष्ठित नाम ना जुडे तब तक आप का सब काम व्यर्थ है। जगती दादा ने बहुत पहले ही कह दिया था, अजी! काम में क्या रखा है। नाम बना बेटा नाम होना चाहिए नाम। नाम होगा तो काम स्वयं ही हो जायेगा। नाम नहीं होगा तो काम क्या खाक होगा। तभी तो हिन्दी फिल्म लावारिस में गाना बना ‘ मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है, जो है नाम वाला वही तो बदनाम है। ’ भले ही जगती दादा की बात तब हमारी समझ में ना आई हो क्योंकि तब हमारी समझदानी छोटी थी। परन्तु आज हमें नाम की महिमा का एहसास होने लगा है। नाम बनाने के लिए लोग ऐड़ी से चोटी का जोर लगा रहें है। हर सम्भव प्रयास कर रहें है। नाम बनाने के चक्कर में लोग न जाने क्या-क्या कर रहें है।
वैसे नाम की महिमा को तुलसीदास जी ने बहुत पहले ही महसूस कर लिया था। तभी तो उन्होंने कहा कि ‘कलयुग में नाम आधारा।’’ तुलसीदास जी ने रामचरित्रमानस में भविष्यवाणी की थी की कलयुग में नाम के अलावा और कोई अन्य उपाय नहीं है। दशों दिशाओं में सिर्फ नाम का ही डंका बजेगा। यही कलयुग की पहचान है। ‘‘नाम जपत मंगल दिशी दसहुँ’’ यदि मंगल की कामना चाहते हो तो नाम की महिमा की पहचान होनी ही चाहिए। हमारी सरकार तथा आमजन मानस ने इस कथन से पूरी तरह आत्मसात् कर लिया है। हमारी सरकार तो नाम की महिमा में इस कदर डूब चूकि है कि उसे हर समस्या का हल सिर्फ नाम के सहारे में ही लगता है। अब आप का काम महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि नामधारी का नाम ही आपका संकटमोचक है। नाम के प्रभाव से ही सरकारें बनती और बिगड़ती हैं। यही कलयुग की पहचान है। नाम के बढ़ते प्रभाव से जहां नामधारी गदगद् हैं तो कामधारी मायूस। शायद कलयुग में कामधारियों की यही मायूसी अब उनकी नियति बन चुकी है। नामधारी मुंह चिड़ा रहे हैं, अजी! काम में क्या रखा है? जब जीवन रूपी नय्या भंवर में फंसे तो खेवनहार सिर्फ नाम ही है। नाम की महिमा अनन्त है। नाम का गुणगान करें। फिर देखिये आपके कैसे काम बनते चले जाते हैं।
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