कविवर कमलेश तुम्हें प्रणाम
डॉ.श्रीविलास बुड़ाकोटी"शिखर"
कविवर चक्रधर शर्मा 'कमलेश' को समर्पित
**मदनछन्द**
१ आये धरापर"चक्रधर"बन गये कमलेश,
शर्मा हुये तुम बेबनी पंडित जलरुहेश।
छू रहे हैं वर्ष तुमको नब्बे और चार,
पौत्र-पौत्री से भरा है आपका परिवार।।
२- किन्तु है इतना सोचनीय काल है विकराल
वामा सुतों को प्राक् निगले काल रूपी व्याल।
भाग्य का यह खेल कैसा रचा उनके साथ,
लो अकेला पड़ गये वे अभाग हाय हाथ।।
३-कूर्चकलाप श्वेत सुन्दर श्वेत सिर के बाल,
सितसरोवर शरद जैसे उर्मियां विशाल।
वदनवामन से बड़ा कुछ रंग ब्रीहि सुजान
कर्तव्य पथ के पथिक तुम विशेष पथ रुझान।।
४-साहित्य के पक्षधर आप हिन्दी सरस प्राण,
प्रबन्ध कराने में निपुण निपुणता के त्राण।
साहित्याञ्चल के सदस्य संस्थापक में एक,
कुछ कवियों के गुरु गरिष्ठ कुछ के लिए परेक।।
५-कवि कोविद भी तुम हो प्रिय कविता प्रेम अपार,
पुस्तक भी एक छपा दी जीवन का उद्धार।
कवि कितने ही रहे,हुये ज्ञानी और नेक,
उनके गुरु स्वयम्भू रहे शिष्य रहे अनेक।।
६-आप सदा ही रहे मान्य एकहिं पक्षकार,
समरस कहाँ रहा केवल प्रिय के रक्षकार।
संस्था को समझा अपना निज रखा वर्चस्व,
जिसने सेवा सही करी उसे दिया सर्वस्व।।
७-शतायु हो विनती मेरी चक्रधर कमलेश
शर्मा आपको समर्पण कविता का परिवेश।
प्रणाम करूँ मैं मान्यवर तुमको नितराम,
श्रीविलासकवि करे नित्य नमन करे प्रणाम।।
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