जल चक्र
सुभाष चन्द्र नौटियाल
पृथ्वी में जल की गतिशीलता ही जल चक्र कहलाता है। पृथ्वी के स्थल मंडल, जल मंडल तथा वायुमंडल के बीच जल निरन्तर गतिशील है, जल का यही प्रवाह एक चक्र के रूप में महासागर से धरातल पर और धरातल से पुनः महासागर तक पहुँचता है। इसमें, जल के विभिन्न स्रोतों से जीवों के बीच जल का आदान-प्रदान भी शामिल है। धरती पर जल ठोस, द्रव और गैस तीनों रूपों में उपलब्ध है। जल चक्र की सक्रियता के कारण ही जलस्रोतों में स्वच्छ जल निरन्तर प्रवाहित होता रहता है। यदि पृथ्वी पर जल निरन्तर चक्रीकृत न हो तो धरा पर जीवन असम्भव हो जायेगा।
जल की एक मुख्य विशेषता यह है कि यह अपनी अवस्था परिर्वतन करने में सक्षम है। यही कारण है कि, धरती पर जल तीनों अवस्थाओं ठोस, द्रव तथा गैस के रूप में उपलब्ध है। पृथ्वी पर जल की गतिशीलता ने प्राणियों को भी गतिशील होने की सीख दी है। जल अपनी गतिशीलता के कारण स्थिति बदलते हुए चलता रहता है, जल की इसी गतिशीलता को विज्ञान की भाषा में जल चक्र अथवा जलविज्ञानीय चक्र कहा जाता हैं । जलीय चक्र की प्रक्रिया जल-मंडल, एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ वातावरण तथा पृथ्वी की सतह का सारा जल मौजूद होता है। यह संपूर्ण प्रक्रिया दिखने में बहुत ही सरल प्रतीत होती है, परन्तु यह एक जटिलतम प्रक्रिया है। जल चक्र की सम्पूर्ण प्रक्रिया को जल वैज्ञानिक 6 भागों में विभाजित करते हैं।
1 - वाष्पीकरण/वाष्पोत्सर्जन
2 - द्रवण
3 - वर्षण
4 - अंतः-स्यंदन
5 - अपवाह
6 - संग्रहण
1 - वाष्पीकरण/वाष्पोत्सर्जन - सूर्य की गर्मी से जल का वाष्पों में बदलने की प्रक्रिया को वाष्पीकरण या वाष्पोत्सर्जन कहते हैं। सूर्य का प्रचण्ड ताप समुद्र तथा झीलों के जल को गर्म करता है तथा गर्मी पाकर यही जल वाष्पों में परिवर्तित होने लगता है। इस प्रक्रिया में जल द्रव अवस्था से गैसीय अवस्था में परिवर्तित होता है।
2 - द्रवण/संघनन - गैसीय अवस्था को प्राप्त यही जल वाष्प की बूंदें वायुमण्डल में जब घनीभूत होकर पुनः द्रवित होने लगती हैं तो यह प्रक्रिया द्रवण कहलाती है। द्रवित हुई इन्हीं जल वाष्पों से बादलों का निर्माण होता है। जब वायु काफी ठण्डी होती है तो जल वाष्प वायु के कणों के साथ द्रवित होकर बादलों का निर्माण करते हैं। जब बादल बनते हैं तो वायु धरा के वायुमण्डल के चारों ओर इस जल वाष्प को फैलाती है। अन्ततः बादल आर्द्रता को रोक नहीं पाते तथा ये हिम, वर्षा तथा ओले के रूप में बरसते हैं। जलवायु विज्ञान में आर्द्रता का बहुत महत्व है। वर्षा तथा वर्षण के विभिन्न रूप जैसे वायुमण्डलीय तूफान, चक्रवाती विक्षोभ आदि, वायुमण्डल की आर्द्रता पर ही निर्भर करता है।
3 - वर्षण/अवक्षेपण - यह वायुमण्डलीय जल के संघनित होकर पुनः किसी भी रूप में पृथ्वी की सतह पर वापस आने की प्रक्रिया है। वर्षण के कई रूप हो सकते हैं जैसे- वर्षा, फुहार, ओलावृष्टि, हिमवर्षा, हिमपात
4 - अन्तःस्यन्दन - जल के मृदा की सतह में प्रवेश करने की प्रक्रिया को अन्तःस्यन्दन कहते हैं। जल वर्षा/सिंचाई के द्वारा अन्तःस्यंदित होता है तथा पादपों द्वारा उपयोग के लिए भण्डारित हो जाता है। भूजल का स्तर को बनाये रखने में अन्तःस्यंदित प्रक्रिया का ही योगदान होता है।
5- अपवाह - जल की वह मात्रा जो कि, पृथ्वी की सतह पर गुरूत्वाकर्षण के प्रभाव में ढाल का अनुशरण करते हुए जलधाराओं, सरिताओं, नदी, नालों तथा नहरों के रूप में प्रवाहित होता है अपवाह प्रक्रिया कहलाती है। प्रवाहित जल बड़े निकायों जैसे- झीलों या समुद्र में चला जाता है।
6 - संग्रहण - वर्षा जल किसी स्थान विशेष पर संग्रहित होता है तो यह प्रक्रिया जल संग्रहण कहलाती है। वर्षा जल, जलधाराओं, सरिताओं, तथा नदियों का पुनर्भरण करते हैं तथा यही जल बहकर समुद्र में पुनः संग्रहित हो जाता है।
जल जीवन के महत्वपूर्ण घटकों में से एक है। सिंचाई के बढ़ते साधनों, बढ़ता शहरीकरण तथा औद्योगीकरण की तीव्र गति ने जल संसाधनों पर अत्यधिक दबाव डाला है। मानव की बढ़ती लालसा ने वायु, मृदा तथा जल को प्रदूषित किया है, सुविधाभोगी उपभोग की इस लालसा ने जल चक्र को भी प्रभावित किया है। आज आवश्यकता है कि, मानव व्यवहार प्रकृति के अनुकूल हो तथा हमारे पूर्वजों द्वारा बनायी गयी नीति-रीति से जल का उपयोग हो। मानव द्वारा जल के अत्याधिक उपभोग के कारण इस अमूल्य प्राकृतिक संसाधन के उपयोग में वृद्धि के संचयी प्रभाव से वैश्विक स्तर पर कई क्षेत्रों में जल की कमी महसूस की जा रही है। मानव के बढ़ते हस्तक्षेप तथा अविवेकी उपभोग की चाह ने जलवायु परिवर्तन के संकट को जन्म दिया है। जिसके परिणामस्वरूप प्रकृति का जल चक्र भी अछूता नहीं है। यदि समय रहते ध्यान न दिया गया तो आने वाली मानव पीढ़ी के सम्मुख जल संकट का बड़ा खतरा उत्पन्न हो जायेगा। जल संरक्षण के उपायों पर गम्भीरता से कार्य किया जाना चाहिए। भविष्य में तभी जलापूर्ति सम्भव हो पायेगी। आज आवश्यकता इस बात की है कि, प्रकृतिप्रदत्त अनमोल जल को प्रकृतिसम्मत् वैज्ञानिक पद्धति द्वारा प्रभावी और कुशल प्रबंधन से संरक्षित किया जाए।
ग्लोबल कमीशन ऑन द इकॉनमिक्स ऑफ वाटर ने जल चक्र पर एक महत्वपूर्ण रिपोर्ट जारी की है, जिसमें जल संसाधनों के प्रबंधन और उनके आर्थिक प्रभावों पर ध्यान केंद्रित किया गया है। रिपोर्ट में जल की बढ़ती कमी, जलवायु परिवर्तन और जनसंख्या वृद्धि के कारण जल संकट की गंभीरता को दर्शाया गया है।
मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं:
1. जल की महत्ता : जल केवल एक संसाधन नहीं, बल्कि आर्थिक विकास, स्वास्थ्य और सामाजिक कल्याण का आधार है।
2. सामाजिक असमानताएं: जल संकट गरीब समुदायों पर अधिक प्रभाव डालता है, जिससे असमानताएं बढ़ती हैं।
3. पर्यावरणीय प्रभाव: जलवायु परिवर्तन और जल प्रदूषण के कारण जल चक्र में असंतुलन हो रहा है।
4. नीतिगत सिफारिशें: रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि जल प्रबंधन के लिए समग्र दृष्टिकोण अपनाना चाहिए, जिसमें नीति, तकनीक और निवेश का समन्वय आवश्यक है।
5. आर्थिक मूल्यांकन: जल संसाधनों का सही मूल्यांकन करने की आवश्यकता है ताकि उनकी प्रभावी और सतत उपयोगिता सुनिश्चित की जा सके।
रिपोर्ट का उद्देश्य जल संकट को एक वैश्विक प्राथमिकता बनाना और जल के सतत प्रबंधन के लिए ठोस कदम उठाने की दिशा में प्रेरित करना है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि, अगर फौरन कदम नहीं उठाए गए तो नतीजे भयावह होंगे। रिपोर्ट के अनुसार, जल संकट से वैश्विक खाद्य उत्पादन में 50% से अधिक का नुकसान होने का खतरा है। 2050 तक देशों के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में औसतन 8% की कमी आने का खतरा है. निम्न आय वाले देशों में यह नुकसान 15% तक होने का अनुमान है।
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