जल की उत्पत्ति - TOURIST SANDESH

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रविवार, 4 जून 2023

जल की उत्पत्ति

  जल की उत्पत्ति

 सुभाष चन्द्र नौटियाल

पृथ्वी पर जल की उत्पत्ति कब, कहां और कैसे हुई, इसकी बहुत स्पष्ट प्रमाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। धार्मिक मान्यताएं अलग हैं तथा वैज्ञानिक धारणाऐं भी मुख्यतः दो भागों में बंटी हुई हैं, एक वर्ग का मानना है कि, पृथ्वी पर जल बाहर से आया तो दूसरे वर्ग का मानना है कि, पृथ्वी की उत्पत्ति के साथ ही जल की उत्पत्ति भी हुई।

भारतीय अवधारणा

जल उत्पत्ति की भारतीय अवधारणा वेदों मे दिये गये सूत्रों पर आधारित है। वैदिक ऋषियों ने जल को आत्म तत्व माना तथा जल की उत्पत्ति ब्रह्माण्ड की परम् सत्ता से जोड़कर उसके मौलिक गुणधर्म में नारायण के स्वरूप को ही माना है तथा पुरुषोत्तम (नर) से उत्पन्न होने के कारण उसे नार कहा। इस अवधारणा के अनुसार सृष्टि के पूर्व नार या नीर (जल) ही भगवान का अयन (निवास) था। नार में निवास करने के कारण ही नारायण कह लाये। नारायण का अर्थ है भगवान का निवास स्थान। जल में आवास होने के कारण भगवान को नारायण कहते हैं। जल अविनाशी, अनादि तथा अनन्त है। उसके बारे में कहा गया है -

आपो नारा इति प्रोक्ता, नारो वै नर सूनवः।

अयनं तस्य ताः पूर्व, ततो नारायणः स्मृतः ।।मनुस्मृति।।1।।10।।

अर्थात ‘आपः’ (जल) को ‘नाराः’ कहा जाता है क्योंकि वे ‘नर’ से उत्पन्न हुए हैं। चूँकि ‘नर’ का मूल निवास ‘जल’ में है। इसीलिये जल में निवास करने वाले (जल में व्याप्त) ‘नर’ को ‘नारायण’ कहा जाता है।

भारतीय दर्शन में जल को अजर, अमर, अविनाशी मानते हुए नारायण की शक्ति स्वरूप माना गया है। जल सृष्टि के पहले भी मौजूद था, वह आज भी मौजूद है और भविष्य में सृष्टि का विनाश होने के बाद भी मौजूद रहेगा। जीवन की उत्पत्ति भी जल में ही मानी गयी है तथा भविष्य में सृष्टि का विनास(जल प्रलह) भी जल में ही होगा। 

वेदों के अनुसार जल में अग्नि (ऑक्सीजन) और सोम (हाइड्रोजन) दोनों हैं। वेदों में ऑक्सीजन के लिए, अग्नि, मित्र, वैश्वानर और मातरिश्वा आदि शब्दों का प्रयोग हुआ है। (हाइड्रोजन) के लिए सोम, आप, सलिल वरूण आदि शब्दों का प्रयोग हुआ है। अथर्ववेद में कहा गया है कि जल में मातरिश्वा वायु (ऑक्सीजन) प्रविष्ट है। ऋग्वेद के अनुसार जल में वैश्वनार अग्नि विद्यमान है।

ऋग्वेद के अनुसार जल की प्राप्ति के लिए मैं पवित्र ऊर्जा वाले मित्र (ऑक्सीजन) और दोषों को नष्ट करने वाले वरूण (हाइड्रोजन) को ग्रहण करता हूं। यहां मित्र और वरूण शब्दों के द्वारा (ऑक्सीजन) और हाइड्रोजन) का निर्देश है, परंतु इसकी मात्रा का स्पष्ट संकेत नहीं है। विज्ञान के अनुसार जल का सूत्र है (H2O), हाइड्रोजन गैस के दो अणु (मोलिक्यूल) और ऑक्सीजन का एक अणु एक पात्र में रखकर उसमें विद्युत तरंग प्रवाहित करने पर जल प्राप्त होता है। ऋग्वेद के मंत्रों में कहा गया है कि एक कुंभ में मित्र और वरूण का रेत वीर्य (कण) उचित मात्रा में एक ही समय में डाला गया और उससे अगस्त्य और वसिष्ठ का जन्म हुआ। इस कार्य के लिए विद्युत का प्रवाह छोड़ा गया। अतः स्पष्ट होता है कि, मित्र और वरूण से जल वसिष्ठ की उत्पत्ति हुई। अगस्त्य को कुंभज और वसिष्ठ को मैत्रावरूण कहा गया है। यजुर्वेद और शतपथ ब्राह्मण में बादलों को जल का सूक्ष्म रूप कहा गया है।

ऋग्वेद के हिरण्यगर्भ सूक्त में सृष्टि की उत्पत्ति हिरण्यगर्भ या ऐसा स्वर्णमय चमकदार गर्भ से है जिसमें समस्त सृष्टि की उत्पत्ति मानी गयी है। यह सृष्टि की उत्पत्ति से पूर्व भी मौजूद था।

हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेक आसीत्।

स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम।।ऋग्वेद।।10।।121।।1।।

(सृष्टि के सभी सूर्यादि तेजस्वी पदार्थों का आधार जो-जो जगत है तथा होएगा। उन सबका आधार परमात्मा जगत की उत्पत्ति से पूर्व भी विद्ययमान था। समस्त सृष्टि का सृजन कर्त्ता जिसने सूर्य, चांद, तारों सहित समस्त सृष्टि का सृजन किया। वही परमात्मा समस्त सृष्टि का धारक भी है। उस सुखस्वरूप प्रजापति परमात्मा के लिए उपहार स्वरूप हम अपनी आत्मा को समर्पित करें।)

आपो ह यद्बृहतीर्विश्वमायन्गर्भं दधाना जनयन्तीरग्निम्। 

ततो देवानां समवर्ततासुरेकः कस्मै देवाय हविषा विधेम।।ऋग्वेद।।10।।121।।7।।

(सृष्टि के आदि में महान् अप्तत्त्वप्रवाह व्याप्त परमाणु आग्नेय पदार्थों को उत्पन्न करने हेतु अपने अन्दर धारण करते हुए, वायुतत्व, आग्नेय तत्व तथा वायु तत्व का मिश्रण (जल तत्व) विश्व के प्रति प्रकट होते हैं। पुनः समस्त देवों का प्राणभूत एक देव परमात्मा वर्त्तमान था। उस सुखस्वरूप प्रजापति परमात्मा के लिए उपहार स्वरूप हम अपनी आत्मा को समर्पित करें।)

यश्चिदापो महिना पर्यपश्यद्दक्षं दधाना जनयन्तीर्यज्ञम्। 

यो देवेष्वधि देव एक आसीत्कस्मै देवाय हविषा विधेम।।ऋग्वेद।।10।।121।।8।।

(जो भी अपने महत्त्व से सृष्टियज्ञ को प्रकट करने के हेतु बल, वेग धारण करते हुए (आपः यानि जल या अन्तरिक्ष) अप्तत्त्व-परमाणुओं को जो सब ओर से देखता है, जानता है। देवों के ऊपर एक देव परमात्मा है। उस सुखस्वरूप प्रजापति परमात्मा के लिए उपहार स्वरूप हम अपनी आत्मा को समर्पित करें।)

मा नो हिंसीज्जनिता यः पृथिव्या यो वा दिवं सत्यधर्मा जजान। 

यश्चापश्चन्द्रा बृहतीर्जजान कस्मै देवाय हविषा विधेम।।ऋग्वेद।। 10।।121।।9।।

(जो पृथिवी का उत्पादक और जो सत्यनियमवाला परमात्मा द्युलोक को उत्पन्न करता है। जो विस्तृत चन्द्रताराओं से भरा आह्लाद करने, मन को भाने वाली (आपः) अन्तरिक्ष विभक्तियों को उत्पन्न करता है। उस सुखस्वरूप प्रजापति परमात्मा के लिए उपहार स्वरूप हम अपनी आत्मा को समर्पित करें।)

कुरान के अनुसार जल की उत्पत्ति

जल की उत्पत्त्ति का उल्लेख कुरान में भी मिलता है। कुरान के अनुसार, अल्लाह ने 6 दिनों में स्वर्ग तथा पृथ्वी का निर्माण किया। कुरान के अनुसार, अल्लाह का सिंहासन पानी पर स्थित है। अल्लाह ने पानी से सभी जीवित प्राणियों तथा पशुओं का निर्माण किया। 

बाईबल के अनुसार जल की उत्पत्ति

बाईबिल के अनुसार ईश्वर ने सबसे पहले स्वर्ग और पृथ्वी को बनाया। उन्होंने तारों का भी निर्माण किया। प्रारम्भ में, पृथ्वी आकारहीन तथा खाली थी। उसकी सतह पर गहन अन्धकार था। पानी पर ईश्वर की सत्ता थी। ईश्वर ने प्रकाश और आकाश को बनाया। उन्होंने महासागर और धरती को अलग-अलग किया। धरती को पानी, वनस्पतियाँ तथा फलदार वृक्ष उत्पन्न किये तथा उनके शरीरों को जल-बहुल बनाया। 

वेदों के अनुसार, जल सृष्टि के प्रारम्भ से है। प्रारम्भ में, वह पूरी पृथ्वी पर मौजूद था तथा जल में ही सर्वप्रथम चराचर जगत की उत्पत्ति हुई। जल समस्त जीवधारियों के योगक्षेम का आधार है। जबकि, बाईबिल के अनुसार, ईश्वर ने जल का निर्माण किया है पर बाईबिल, जीवधारियों की उत्पत्ति के लिये, जल की भूमिका को प्रतिपादित नहीं करती।

वैज्ञानिक अवधारणा

 पृथ्वी पर जल की उत्पत्ति को लेकर वैज्ञानिक जगत में अनेक विचार तथा परिकल्पनाएं प्रचलन में हैं जिन्हें आमतौर पर दो अवधारणाओं में वर्गीकृत किया जाता है। 

पहली अवधारणा के अनुसार पानी की उत्पत्ति पृथ्वी के जन्म के साथ हुई है। दूसरी अवधारणा के अनुसार पानी, पृथ्वी के बाहर से आया है, परन्तु अभी तक अस्पष्ट है कि, पृथ्वी पर पानी का जन्म कैसे और क्यों हुआ। इसे अभी तक पूरी तरह समझा नहीं जा सका है। इस पर अभी और व्यापक शोध करने की आवश्यकता है। इस सम्बन्ध में अधिकतर वैज्ञानिकों का मानना है कि, पृथ्वी पर जल की उत्पत्ति पृथ्वी के जन्म के साथ हुई है।

अमेरिकी वैज्ञानिक माइक ड्रेक के अनुसार पानी, पृथ्वी के जन्म के समय से ही मौजूद है। उनका कहना है कि जब सौर मण्डलीय धूल कणों से पृथ्वी का निर्माण हो रहा था, उस समय, धूल कणों पर पहले से ही पानी मौजूद था। यह परिकल्पना, उसी स्थिति में ग्राह्य है जब यह प्रमाणित किया जा सके कि ग्रहों के निर्माण के समय की कठिन परिस्थितियों में सौर मण्डल के धूल कण, पानी की बूँदों को सहजने में समर्थ थे।

कुछ वैज्ञानिकों का विश्वास है कि पृथ्वी के जन्म के कुछ समय बाद उस पर, पानी से सन्तृप्त करोड़ों धूमकेतुओं तथा उल्का पिंडों की वर्षा हुई। धूमकेतुओं तथा उल्का पिंडों का पानी धरती पर जमा हुआ और उसी से महासागरों का जन्म हुआ।

खगोल-भौतिकी की आधुनिकतम खोजों के अनुसार पानी, सौरमण्डल के बाह्य किनारों से पृथ्वी पर आया। खगोल-भौतिकी की खोजों से पता चलता है कि जन्म के समय पृथ्वी पर बहुत ही कम (नहीं के बराबर) पानी था। पृथ्वी पर नमी का आगमन धूमकेतुओं तथा जलीय उल्कापिंडों से हुआ है। ये धूमकेतु और जलीय उल्कापिंड सौरमण्डल के बाहरी किनारे पर क्यूपर बेल्ट और वरुण ग्रह के आगे स्थित हैं। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि धरती पर पानी का आगमन लगभग 400 करोड़़ साल पहले हुआ होगा।

अमरीकी भूवैज्ञानिकों ने अमेरिका महाद्वीप की सतह से लगभग 700 किलोमीटर नीचे रिंगवूडाइट नामक चट्टान खोजी है। इस चट्टान में पानी के विशाल भण्डार (किसी भी महासागर से तीन गुना अधिक) मौजूद हैं। इन वैज्ञानिकों का मानना है कि इसी चट्टान से रिसकर पानी धरती पर आया।

पानी रिसने के पक्ष में वैज्ञानिकों की दलील है कि 700 किलोमीटर की गहराई पर पानी के ऊपर रिसने के लिये उपयुक्त दबाव तथा तापमान मौजूद है। इस खोज का आधार कतिपय अप्रत्यक्ष साक्ष्य हैं जो केवल अमेरिका महाद्वीप के नीचे की जानकारी प्रदान करते हैं। अन्य महाद्वीपों के नीचे की स्थिति अज्ञात है।

बिग-बैंग घटना विश्व के प्रारम्भिक विकास की अवधारणा को प्रस्तुत करती है। कुछ वैज्ञानिक, पृथ्वी पर पानी के आगमन का सम्बन्ध बिग-बैंग घटना से जोड़ने का प्रयास करते हैं। उनके अनुसार विश्व, प्रारम्भ में अत्यन्त गर्म तथा बहुत अधिक भारी था। उसका निर्माण ब्लैक होल से की जा सकती है। लगभग 1370 करोड़ साल पहले अचानक विश्व का फैलना शुरू हुआ जिसके कारण विश्व का तापमान तथा घनत्व घटा और अपार ऊर्जा उत्पन्न हुई।

ऊर्जा के उत्पन्न होने के कारण अन्तरिक्ष के बहुत बड़े इलाके के तापमान में वृद्धि हुई। तापमान में वृद्धि के कारण पूरा अन्तरिक्ष गर्म कणों से भर गया। गर्म कणों के संयोग से अनेक प्रक्रियाएँ हुईं। परिणामस्वरूप पहली बार अणु की नाभि अस्तित्व में आई। गणितीय विवरणों के आधार पर, आधुनिक अन्तरिक्ष विज्ञान, अणु-नाभियों के अस्तित्व को प्रमाणित करता है।

गणनाओं से पता चलता है कि बिग-बैंग घटना के दौरान अन्तरिक्ष में बहुत अधिक संख्या में आणविक नाभियाँ मौजूद थीं। इन नाभियों में हाइड्रोजन के अणुओं की बहुतायत थी। दूसरे क्रम पर हीलियम तथा बहुत ही कम मात्रा में लीथियम मौजूद थी। उस काल में, ऑक्सीजन, जो पानी का निर्माण करने के लिये जरूरी है, सम्भवतः अनुपस्थित था।

बिग-बैंग घटना के लगभग सौ करोड़ साल बाद, विश्व में तारों का आगमन हुआ। सभी जानते हैं कि तारों के अन्दरुनी भाग का तापमान बहुत अधिक होता है। तापमान की अधिकता के कारण उन्हें अत्यधिक गर्म भट्टी भी कहते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि तारे जब सुपरनोवा की स्थिति में पहुँचते हैं तो उनमें होने वाला विस्फोट, तत्वों को अन्तरिक्ष में बिखेर देता है। सम्भवतः यही हुआ और विस्फोट से उत्पन्न तापमान ने अन्तरिक्ष में मौजूद आणविक नाभियों को जटिल तत्वों में बदल दिया। इन जटिल तत्वों में कार्बन, नाइट्रोजन और ऑक्सीजन सम्मिलित हैं।

हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के संयोग से पानी का जन्म हुआ। निश्चय ही यह प्रक्रिया धरती के ठंडे होने तथा वायुमण्डल के अस्तित्व में आने के बाद ही सम्पन्न हुई होगी।

राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान, रुड़की का मानना कि, आकाश गंगा के अन्तरतारकीय मेघों में पानी मौजूद है। अन्य आकाश गंगाओं में भी पानी मौजूद हो सकता है क्योंकि ब्रह्माण्ड में ऑक्सीजन और हाइड्रोजन की प्रचुर मात्रा उपलब्ध है।

इसी प्रकार, सौरमण्डल के विभिन्न ग्रहों में भी जल उपलब्ध है। बुध ग्रह के वायुमण्डल में भाप के रूप में 3.4 प्रतिशत, शुक्र ग्रह के वायुमण्डल में 0.002 प्रतिशत और पृथ्वी के वायुमण्डल में उसकी मात्रा लगभग 0.4 प्रतिशत, मंगल ग्रह के वायुमण्डल में 0.03 प्रतिशत, बृहस्पति ग्रह के वायुमण्डल में 0.00004 प्रतिशत और शनि ग्रह के वायुमण्डल में वह केवल बर्फ के रूप में मौजूद है।

भले ही आज जल की उत्पत्ति के बारे में कोई स्पष्ट प्रमाणिक जानकारी उपलब्ध न हो परन्तु जल जीवन का आधार है, यह सत्य है।


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