श्रीअन्न से कैसे हो श्रीवृद्धि? - TOURIST SANDESH

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रविवार, 30 अप्रैल 2023

श्रीअन्न से कैसे हो श्रीवृद्धि?

 

श्रीअन्न से कैसे हो श्री वृद्धि?



शान्ति प्रसाद नौटियाल




संयुक्त राष्ट्र वर्ष 2023 को मैलेट्स (मोटे अनाज) अंतर्राष्ट्रीय वर्ष के रूप में मना रहा है। इस अभियान के तहत भारत की अगुआई में संयुक्त राष्ट्र कई कार्यक्रम और गतिविधियों का आयोजन कर रहा है।

संयुक्त राष्ट्र में इस अभियान के प्रस्ताव को भारत ही लेकर आया था। प्रस्ताव को 72 देशों का समर्थन मिला और संयुक्त राष्ट्र ने इसे अपना लिया। इसके लिए भारत को विस्तारक स्तर पर भी काफी मेहनत करनी पड़ी लेकिन यह पड़ाव एक ऐसी लंबी यात्रा के बाद आई जिसकी शुरुआत भारत में करीब 10 साल पहले हुई थी।

धान्य यानी छोटे दानों वाले अनाज, जैसे ज्वार, बजरा, रागी(मंडुवा), झंगोरा आदि। ये प्राचीन काल से उगाये तथा खाये जाने वाले अनाज हैं, यानी माना जाता है कि करीब 7,000 साल से ये खाये और उगाये जा रहे हैं बल्कि एक तरह से मानव सभ्यता के इतिहास में खेती की शुरुआत इन्हीं मोटे अनाजों से हुई थी तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। चावल और गेहूं से भी कई अधिक इन अनाजों के  फायदे हैं। संयुक्त राष्ट्र की संस्था खाद्य और कृषि आर्गेनाइजेशन (एफएओ) के अनुसार अनाज सूखे जमीन में न्यूनतम नमी लगा कर भी उगाए जा सकते हैं। ये अनाज जलवायु परिवर्तन का भी प्रभावशाली रूप से सामना कर सकते हैं। एफएओ का कहना है, “इसलिए ये उन देशों का एक आदर्श समाधान हैं जो आत्मनिर्भरता बढ़ाना चाहते हैं और इच्छाओं पर अपनी मर्जी को कम करना चाहते हैं।”

इसके अलावा पोषण की दृष्टि से भी इन अनाजों को बहुत उत्तम माना जाता है। एफएओ का कहना है कि ये प्राकृतिक रूप से ग्लूटेन-मुक्त होते हैं और इनमें बड़ी मात्रा में फाइबर, एंटीऑक्सीडेंट, प्रोटीन और आयरन होते हैं। इस विशेषता के कारण संस्थान के अनुसार “उन लोगों के लिए एक बहुत अच्छा विकल्प हो सकता है जिनमें सीलिएक बीमारी, ग्लूटेन इनटॉलेरेंस, हाई ब्लड शुगर या मधुमेह है।

श्रीअन्न से श्री वृद्धि कैसे हो सकती है? इस सम्बन्ध में शान्ति प्रसाद नौटियाल, पूर्व ज्वाइंट कमिश्नर, ने भारत सरकार को कुछ सुझाव प्रेषित किए हैं। प्रस्तुत उनके द्वारा भेजे गये सुझाव  -




1. श्रीअन्न को समर्पित देश  के लोक पर्व उत्तराखंड में पहाड़ के कई इलाकों में पूष व चैत माह का घेन्जा त्यौहार, कोदू का नैठावण, इष्टदेव श्री चौरंगीनाथ की तिसाला जात, चुन्या त्यौहार,अस्का, आन्ठ्य, पिनोला आदि  के लोक पर्व श्रीअन्न को समर्पित है, इन लोक पर्वों की विरासत को बचाने के लिए सरकार की तरफ से प्रयास हो। उत्तरखंड व देश के सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में श्रीअन्न को समर्पित सभी त्योहारों की पहचान हो, देश में किन किन मंदिरों में श्रीअन्न का भोग देवी देवतों को लगाया जाता है व किन किन मंदिरों में श्रीअन्न का प्रसाद दर्शनार्थियों को मिलता है इनको सूचीबद्ध किया जाय।

2. “कोदू का नैठावण” पर्व के दिन को राष्ट्रीय कोदू दिवस के रूप में घोषित हो कोदू की फसल काफी श्रमसाध्य होती है, यह फसल उत्तरखंड में श्रीअन्न की प्रमुख फसल है। जनपद देहरादून के जौनसार क्षेत्र में “कोदू का नैठावण” पर्व सावन की संक्रांति को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है अतः इस दिन को भारतवर्ष में कोदू दिवस के रूप में मनाया जाय। भले ही उत्तराखंड शासन द्वारा सुझाव को धर्मस्य एवं संस्कृति विभाग को अग्रेतर कार्यवाही के लिए प्रेषित किया है परन्तु अंतिम निर्णय केंद्रीय सरकार का ही होगा।

(16 नवम्बर ज्वार-बाजारा दिवस घोषित है न के कोदू दिवस)

3. कृषि शिक्षा में श्रीअन्न के विषयों को महत्व राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के प्रस्तर 20.3 में उल्लेख है की “कृषि शिक्षा और इससे संबद्ध विषयों को पुनर्जीवित किया जायेगा। यद्यपि देश के विश्वविद्धयालयों में कृषि विश्वविद्ध्यालयों का प्रतिशत 9 है लेकिन कृषि और संबद्ध विज्ञान विषयों में नामांकन उच्चतर शिक्षा की कुल नामांकन के 1 प्रतिशत  से भी कम है। कुशल स्नातकों और तकनीशियनों, नवीन अनुसन्धान और तकनीकी तथा कार्य प्रक्रियाओं से जुड़े बाज़ार आधारित विस्तार के माध्यम से कृषि उत्पादकता को बढ़ाने के लिए यह आवश्यक है की कृषि और सम्बन्ध विषयों को क्षमता और गुणवता दोनों को बेहतर किया जाये”। वर्ष 2023 को अंतर्राष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष भारत के पहल पर घोषित किया गया है। विश्व की हर थाली में श्रीअन्न की पहुँच हो जिसके लिए समाचार पत्रों में बार बार पढ़ने को मिलता है की मिलेट का उत्पादन में बढ़ोतरी किया जाये। श्रीअन्न के सम्मेलनों में भी श्रीअन्न के उत्पादन बढ़ाने में जोर दिया जा रहा है, श्रीअन्न के उत्पादन के लिए शिक्षा के प्रचार- प्रसार के लिए पहल हो। इस वर्ष स्कूली शिक्षा में श्रीअन्न से सम्बंधित पठन-पाठन सामग्री सारे  भारतवर्ष के सभी स्कूलों में उपलब्ध हो। छात्रों की संख्या स्कूली व कॉलेज स्तर पर बढ़ाने के प्रयास हो पीएचडी में शोध कार्य के लिए श्रीअन्न के क्षेत्र व सीटों को बढ़ाया जाये, जो नामांकन 1 प्रतिशत से भी कम है उसको बढ़ाने का लक्ष्य इस अंतर्राष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष में निर्धारित किया जाये जिससे विश्व को भी बता सकें की भारत ने श्रीअन्न को बढ़ावा देने के लिए शिक्षा की क्षेत्र में ये माइलस्टोन (लक्ष्य) रखे हैं।                                                           

4. कोदू (मंडवा) को देवभूमि उत्तराखंड की राज्य फसल घोषित किया जाये। उत्तरखंड का अधिकांश भू भाग पहाड़ी क्षेत्र है तथा कोदू (मंडवा) पहाड़ की मुख्य फसल हैद्य पहाड़ के जैविक कोदू की विश्व में मांग है। कोदू के साथ अन्य सहायक फसल भी होती है जो बारहनाजा में शामिल है अतः कोदू (मंडवा) को देवभूमि उत्तराखंड की राज्य फसल घोषित हो।

5. श्रीअन्न को विश्व की  हर थाली तक पहुंचाने के  लिए नायक बन सकते हैं विदेशों में कार्यरत उत्तराखंड के शेफ (chef) विश्व की हर थाली में श्रीअन्न को पहुंचाने की भारत सरकार की कोशिश है। देवभूमि उत्तरखंड के पहाड़ से हजारों लोग विदेशों/सात समुन्दर पार में शेफ (chef) का कार्य करते हैं व कई पहाड़ के लोगों के अपने रेस्तराँ भी विदेशों में है। देश व उत्तरखंड की अर्थव्यवस्था में इनका सशक्त योगदान है। पीएम नमो महोदय भी अपने विदेशी दौरों में इनके द्वारा तैयार किये भोजन की भी प्रशंसा कर चुके हैं। श्रीअन्न को हर थाली तक पहुंचाने के किये ये लोग हमारे नायक बन सकते हैं,उनको प्रोत्साहित किया जाये,उनको आदर मिले,अपनी बात कहने का मंच मिले। ये उत्तराखंडी प्रवासी अपने परिवार, माता पिता की देखभाल तथा सामाजिक दायित्व निभाने के लिए भारत आते जाते रहते हैद्य श्रीअन्न के परिप्रेक्ष्य में एक-दो सेमिनार इनके साथ हो जिससे विश्व को एक सार्थक सन्देश जाये।

6. देश की 29 प्रतिशत बंजर भूमि में से श्रीअन्न की पैदावार के लिए आबाद करना दिल्ली घोषणा (कॉप-14) में विश्व की बंजर भूमि को वर्ष 2030 तक उपजाऊ बनाने का संकल्प लिया गया है, भारत में भी 29 प्रतिशत बंजर भूमि है जिसे वर्ष 2030 तक काम लायक बनाना है। उत्तरखंड के पहाड़ में कोदू, झंगोरू, कोणी आदि की फसल सिमट रही है, बारहनाजा की विरासत मृत्युशैया पर है। सरकार अधिक उत्पादन के लिए प्रोत्साहित कर रही है। कोदू का विक्रय मूल्य भी किसान के लिए घोषित कर दिया है। श्रीअन्न के  महत्व की जानकारी भी दे रहे है पर ये सब भाषण/गोष्ठियों/सोशल मीडिया/समाचार पत्रों तक ही सीमित हैद्य कोदू का ही रकबा गत 20 साल में लगभग 40 प्रतिशत कम हो गया। पहाड़ में खेत- खलियान तक चीड़, लैंटीना घास, गाजर घास, जंगली जानवरों का बोला-बाला, लगभग 50 प्रतिशत भूमि बंजर है। जब तक इन चारों का रोकथाम नहीं किया जाये तब तक मोटा अनाज का उत्पादन बढ़ाना उत्तराखंड सरकार के लिए दु;स्वप्न ही होगा। इस तरह की या अन्य प्रकार की  समस्या देश के अन्य राज्यों में भी भूमि उपजाऊ बनाने के लिए होगी। राज्यों  में आवश्यकता है बंजर भूमि  पुनरुद्धार के लिए एक केंद्रीय ठोष नीति की अतः  केन्द्रीय भूमि  सुधार नीति प्रख्यापित हो, नीति बनाते समय ये भी दूरदृष्टि हो की इस 29 प्रतिशत में कितने में श्रीअन्न की उपज हो सकती है। 

7. श्रीअन्न के खरीद केंद्र उत्तराखंड के पहाड़ में व देश के अन्य राज्यों में अधिकतर छोटे छोटे जोत वाले किसान हैं, ये इतने सक्षम नहीं है की ये अपना एक-दो क्विंटल श्रीअन्न बेचने के किये सरकार द्वारा नियत सरकारी केन्द्रों तक पहुंचाएंद्य श्रीअन्न की खरीद ग्राम स्तर पर हो, जहाँ पर स्वयं सहायता समूह क्रियाशील नहीं है या सक्षम नहीं हैं वहां पर सरकारी सस्ते गल्ले की दुकान पर खरीद हो।

8. कोदू (मंडवा) के तना के रस पर शोध जब कोदू की बालियाँ पक जाती है तो बालियाँ काटकर घर ले आते हैं व तना कुछ हरा सा रहता है जिसे कुछ समय बाद काटकर पशुचारा के रूप में इस्तेमाल किया जाता हैद्य इसका तना जब हरा रहता है वह मीठा होता है अक्सर गन्ने की तरह खेतों में बच्चे चूसा करते हैं, पर कभी किसी का ध्यान इसके मीठे रस की उपयोगिता की तरफ नहीं गया। डायबिटीज के एक प्रख्यात चिकित्सक के अनुसार श्रीअन्न पोषक तत्व युक्त होता है, कैल्सियम का अच्छा विकल्प है, मधुमेह के रोगी के लिए वरदान है, स्टार्च की मात्रा भी उपलब्ध रहती है। नर्वस तंत्र को सशक्त करने में सहायक होता है। कोदू के तना(कोलेठा) के रस के लिए नवोन्मेष हो। उक्त तथ्यों के परिप्रेक्ष्य में सितम्बर-अक्टूबर माह में शोध किये जाने की आवश्यकता है। यदि शोध सफल रहा तो निश्चित रूप से उत्पादन बढ़ेगा व किसानों की आय भी बढ़ेगी।

9. श्रीअन्न का प्रचार-प्रसार ळ-20 के  सम्मेलनों में देश में लोक पर्वों व  देवी देवताओं को समर्पित श्रीअन्न के व्यंजन, भोग व प्रसाद। भारत में कृषि शिक्षा में श्रीअन्न को बढ़ावा देने  का रोडमैप, बंजर भूमि को श्रीअन्न के परिप्रेक्ष्य में उपजाऊ बनाने की कार्ययोजना, कृषि सेवाओं की समयबद्धता, विश्व के हर कोने में कार्यरत उत्तराखंड के नायक जो हर थाली में श्रीअन्न पहुंचा सकते हैं आदि  का संबोधन ळ-20 के सम्मेलनों में हो।


10. देश की सभी विधानसभा व सचिवालय में श्रीअन्न की कैंटीन संसद की कैंटीन के अंदर मिलेगा मोटा अनाज के तैयार व्यंजन, इसी प्रकार देश के सभी राज्यों की विधानसभा व सचिवालय की कैंटीन में भी श्रीअन्न के तैयार व्यंजन मिलने की राजाज्ञा जारी हो। व्यंजनों के अतिरिक्त संसद, विधानसभा व सचिवालयों में श्रीअन्न की विपणन व्यवस्था छोटी छोटी पैकिंग में भी हो। 

11. जैविक खाद की कमी प्राकृतिक खेती पर आधारित लघु नाटिका “धरती कहे पुकार कर” मध्य प्रदेश सरकार द्वारा इसी माह प्रस्तुत की जो आज के परिप्रेक्ष्य में सत्य है। गांवों में पशु-पालन के प्रति लोगों की उदासीनता बढ़ रही है जिसके कारण जैविक खाद की कमी हो रही है। श्रीअन्न की उपज को बढ़ाने व जैविक श्रीअन्न का दाम अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में अच्छा मिले उसके लिए प्रकृति ने हमें हरा पशु चारा प्रचुर मात्रा में दिया है, जिसे आग में न झोंका जाये बल्कि इसके लिए हरी खाद के प्लांट लगाये जाये विशेषकर पहाड़ों पर जहाँ पर बांज,खड़क आदि के पतों का इस्तेमाल हो जिससे इन पेड़ों की छंटाई भी हो पायेगी।

12. गंगा नमामि प्रोजेक्ट BARREN LAND AROUND HYDRO-ELECTRIC  POWER PROJECTS  IN UTTARAKHAND AND IN OTHER STATEs & UTs: उत्तराखंड के पहाड़ में विद्युत परियोजना का हब है। परियोजना के आस पास काफी भूमि बंज़र पड़ी है या कई जगह  पानी का लेवल इस तरह की भूमि तक अल्पकाल के लिए बढता है। भूमि का सदुपयोग हो,ऐसे स्थानों का नदी किनारे होने से सिंचाई में भी परेशानी नहीं होगी। मैदानी क्षेत्र में भी इस प्रकार की भूमि की पहचान हो व हरा भरा बनाया जाये। पर्यावरण मंत्रालय, भारत सरकार ने सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के प्रमुख मुख्य वन सरंक्षक को वस्तुस्थिति से अवगत कराते हुये आवश्यक कार्यवाही करने के लिए दिनांक 07/12/2022 को पत्र भी प्रेषित किया। गंगा नमामि प्रोजेक्ट के अंतर्गत उत्तराखंड व उत्तर प्रदेश का उक्त प्रकार का काफी भू-भाग आता है अतः नमामि गंगे अभियान के अंतर्गत श्रीअन्न के उत्पादन के लिए इस प्रकार की भूमि पर बढ़ावा दिया जाये।

13. विश्व की बंजर भूमि दिल्ली घोषणा (कॉप-14) में विश्व की बंजर भूमि को वर्ष 2030 तक उपजाऊ बनाने का संकल्प लिया गया है व यू एन रिपोर्ट- भूमि संसाधनों का सही उपयोग जरुरीः आज भूमि संसाधनों का सरंक्षण बहाली और उनका सही उपयोग वैश्विक अनिवार्यता बन गयी है। रिपोर्ट में विभिन्न देशों के वर्ष  2030 तक एक अरब हेक्टर क्षरित भूमि के पुनरुद्धार के संकल्प का भी उल्लेख किया है। विश्व में श्रीअन्न का प्रचार-प्रसार भारत की पहल पर हो रहा है। विश्व की 30 प्रतिशत बंजर भूमि को श्रीअन्न के लिए कितना उपजाऊ बनाये जाने योग्य है उसके लिए भारत की पहल पर  रोडमैप बने।


14. प्रत्येक राज्य के  श्रीअन्न के व्यंजन सूचीबद्ध हो प्रत्येक राज्य में श्रीअन्न से विभिन्न पकवान/व्यंजन बनते होंगे जिनमें से कुछ का बाजारीकरण भी हुआ होगा अतः देश के प्रत्येक राज्य व केंद्र शासित प्रदेशों के पकवानों को सूचीबद्ध किया जाये, इनकी पाक कला का भी उल्लेख है जैसे उत्तराखंड की गढ़भोज पुस्तिका में दिया है।

15. सेवा का अधिकार कानून का विस्तार श्रीअन्न के परिप्रेक्ष्य में हो कई राज्यों में कृषि सेवायें सेवा का अधिकार कानून में शामिल नहीं है व कई राज्यों में अप्रयाप्त है। श्रीअन्न से जुड़े कृषि कार्य की विभिन्न समस्याओं (जैसेः बीज, उन्नत यंत्र ,दवाएं,खाद, वैज्ञानिक जानकारी, फसल का उठान व भुगतान आदि) के  निदान हेतु सम्बंधित विभागों की समयबद्धता  सेवा देने की नियत हो जिसके लिए सेवा का अधिकार कानून में उक्त प्रकार की चिन्हित सेवायें शामिल हो।

16. श्रीअन्न के परिप्रेक्ष्य में जन सुझावों पर विचार  के लिए नोडल अधिकारी अंतर्राष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष में केंद्रीय सरकार व राज्य सरकारों के पास  अनेकों सुझाव आ रहे होंगे, इन सुझावों पर विचार भी करना होगा, राज्यों को केंद्रीय सरकार से भी समन्वय करना होगा, लोगों में जागरुकता बढ़ाना, खेती करने के लिए प्रोत्साहित करना, क्षरित भूमि का पुनरुद्धार करनाद्य भारत के पहल है। अतः निश्चित रूप से राज्यों को भी अपनी भूमिका निभाने में कोई कमी नहीं छोड़नी चाहिये। इस कार्य के लिए  कृषि क्षेत्र में विज्ञ नोडल अधिकारी के दायित्व के लिए केंद्र व राज्यों में नियुक्त हो।
(लेखक पूर्व ज्वाइन्ट कमिश्नर, जीएसटी हैं)

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