भूख से लतपथ भारत एंव अन्नोत्सव - TOURIST SANDESH

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गुरुवार, 21 अक्तूबर 2021

भूख से लतपथ भारत एंव अन्नोत्सव

 पव्वा दर्शन

व्यंग्य

भूख से लतपथ भारत एंव अन्नोत्सव 

आजादी के अमृतोत्सव में एक ओर गरीबी से लतपथ भारत में सरकार अन्नोत्सव मना रही है। ऐसी शानदार चमचमाती व्यवस्था का प्रदर्शन हो रहा है कि, मानो अब सब कुछ अप्रतिम हो चुका हो, तो वहीं दूसरी ओर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर खबर है कि, विश्वगुरु बनने की राह पर अग्रसर भारत, वैश्विक भूख सूचकांक (ग्लोबल हंगर इंडेक्स) 2021 में 116 देशों की सूची में पिछड़कर 101वें स्थान पर आ गया है। फिसलन जारी है, साल-दर-साल सभ्यता, संस्कृति, भाषा और संस्कारों की, फिर भी हमने दम्भ भर दिया है कि, कर के रहेगें। इससे पहले साल 2020 में भारत 94वें स्थान पर था। ध्यान देने वाली बात यह है कि भारत इस सूची में पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल से भी पीछे हैं. साफ है कि, इंडिया तो विश्व गुरु बनेगा परन्तु उसमें भारत का कोई स्थान नहीं होगा. जहाँ एक ओर इंडिया के लोग पश्चिमीनुकरण कर भारत के लोगों को चिढ़ा रहे होगें तो दूसरी ओर संस्कारयुक्त लाचार- मजबूर भारत इंडिया के लोगों की गुलामी करता नजर आयेगा. भारत सरकार जो कि, अब इंडिया सरकार प्राइवेट लिमिटेड बन चुकी है, उसने इसकी पूरी तैयारियां कर दी हैं. बस ऐलान होना शेष रहा गया. इंडिया के लोगों के तो अच्छे दिन आ चुके हैं तभी तो इंडिया के लोग लाचार- मजबूर भारत के लोगों के लिए अन्नदान करने के लिए अन्नोत्सव मना रहे हैं ताकि, गरीब- लाचार भारत के लोगों का पेट भरा जा सके. इंडिया के बच्चे तो मंहगी से मंहगी अंग्रेजी स्कूल में घिटपिट कर रहे होगें तथा भारत के बच्चे टाटबोरी के फटेहाल स्कूलों में बांग देगें. कोई भी क्या कर सकता है जब उनके नसीब में फटेहाल स्कूल ही हैं. सरकार ने तो सभी के अच्छे दिन लाने के लिए दिन रात एक कर दी है परन्तु भारत के लोगों का भाग्य थोड़ी बदल सकती है. हिन्दी में लड़ाई लड़ी जाती है और न्याय अंग्रेजी में मिलता है। याद है ना राम मन्दिर की पूरी लड़ाई हिन्दी की पृष्ठभूमि के हिन्दी हृदय में लड़ी गयी थी परन्तु जब न्याय की बात हुई तो सारा मैटर अंग्रेजी में अनुवाद करना पड़ा था तब जा कर कहीं न्याय मिल पाया। माना कि, हमारी भाषा हिन्दी है परन्तु अंग्रेजी तो जरूरी है। मैकाले का अद्योगामी निस्पादन सिद्धान्त अब सिर चढ़ कर बोल रहा है तथा भारत में इंडिया ने नये सिरे से जन्म ले लिया है। जब पहले से ही भारत के लोगों के भाग्य की छतरी छेदों से भरी पड़ी है तो सरकार भी क्या करे बेचारी. इंडिया की सरकार और भारत के लोगों का चुनाव, गजब का संयोग है। इंडिया की सरकार ने तो भारत के लोगों का पेट भरने के लिए भारत का सब कुछ दांव पर लगा रखा है. भारत के प्राकृतिक संसाधनों सहित सभी संसाधनों को भी गिरवी रखकर पेट भरने की जुगत भिड़ायी जा रही है परन्तु फिर भी भूख है कि, भारत से जाने का नाम नहीं लेती. ऐसे में बेचारी इंडिया की सरकार भी क्या करे.  भूख से लतपथ भारत की भूख मिटाने के लिए इंडिया की सरकार ने भारत के महाराजा को अभी हाल में एक निजी कम्पनी को मात्र 18000 हजार करोड़ में बेच दिया फिर भी भूख नहीं मिट पायी। ऐसे में भूख मिटाने के लिए भारत के राष्ट्रीय संसाधनों को ऐसे बेचा जा रहा है जैसे किसी उजड़े रईसजादों की निक्कमी संतानों द्वारा अपने पूर्वजों की मेहनत से जुटाई गयी सम्पदा को कौडियों के भाव नीलाम कर दिया जाता है परन्तु क्या करें पापी पेट का सवाल है, भूख चीज ही ऐसी है, जिसमें सही या गलत का पता ही नहीं चलता. भारत भूख से लतपथ होए जा रहा हैं और इंडिया के लोग अमेरिकी रईसजादों से बराबरी के लिए बेताब हैं. ऐसे में इंडिया सरकार प्रावेईट लिमिटेड भी क्या कर सकती है. उसकी स्थिति तो मजबूरियाँ के हाथ बिक गये जज्बात वाली हो रखी है. भारत का व्यक्ति वोट करेगा और इंडिया के लोग देश- विदेश में मौज करेगें. सरकार ने व्यवस्था कर दी है कि, भारत का व्यक्ति इंडिया में आ नहीं सकता तथा इंडिया का व्यक्ति कभी भी गरीब भूख से लतपथ भारत में जाना नहीं चाहता. 

हे! भतरवंशियों भूख की चिंता मत करो अपना सब कुछ इंडिया के रईसजादों की सेवा में लगा दो ताकि इंडिया को फिर से विश्व गुरु बनाया जा सके एक ऐसा विश्व गुरु जहाँ भारत तो होगा परन्तु भारत, भारती, भारतीयता तथा भारतीयों को कोई स्थान नहीं होगा. जहां नैतिकता और चरित्रता कोरे भाषाणों में समाहित होकर भारत को  धता बता रहे होगें। राष्ट्रवादियों की प्रतिछाया में गठित सरकारें इंडिया को विश्व गुरु बनाने पर आमादा हैं तथा यदि इंडिया की अर्थव्यवस्था को पांच ट्रिलियन डॉलर करना है तो भारतपन का लोप करना ही होगा।  भारत, भारती तथा भारतीयता के मुखौटा लगाकर राष्ट्रवाद की परिभाषा से ही यह सम्भव है. आओ हम सब भरतवंशी मिलकर इंडिया को विश्व गुरु बनायें. भूख, गरीबी और बेहाली से लतपथ भारत को रंगीन कार्पेट के नीचे सुला दें. आखिर राष्ट्रवाद की यही नई परिभाषा है. यहीं से नयी इंडिया का उदय होगा तथा भारत सदा के लिए गुलामी के आगोश में सुला दिया जायेगा. न्यू इंडिया के लिए भारत का बलिदान तो करना ही होगा।

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