वृक्षजन्मोत्सव से जागेगा प्रकृति संरक्षण का भाव - TOURIST SANDESH

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गुरुवार, 13 अगस्त 2020

वृक्षजन्मोत्सव से जागेगा प्रकृति संरक्षण का भाव

 वृक्षजन्मोत्सव से जागेगा प्रकृति संरक्षण का भाव

 

भारतीय संस्कृति में प्रकृति संरक्षण का भाव समाहित है इसीलिए जब-जब संकट की घड़ी आती है तो प्रकृति को बचाने तथा सजाने-संवारने के लिए यहां मानवीय भावनाएं सजीव हो उठती हैं। 70 के दशक में वनों को बचाने के लिए यहां चिपको आन्दोलन की आवाज उठी थी जिसे सम्पूर्ण विश्व में महसूस किया गया था। चिपको आन्दोलन के कारण ही विश्व का मानव पर्यावरण संरक्षण के प्रति जाग्ररित हो पाया तथा पर्यावरण संरक्षण के लिए विश्व के देशों ने नीतियां बनानी शुरू कर दी थी परन्तु आज लगभग 50 साल बाद एक बार पुनः जबकि विश्व का मानव केवल पौधरोपण कर पर्यावरण संरक्षण की जिम्मेदारी को पूरी मान रहा है तो विश्व के मानव को राह दिखाने के लिए तथा मानव को उसकी जिम्मेदारियों का एहसास कराने के लिए एक आवाज उठी है। यह आवाज रोपित पौध को संरक्षण के लिए है। वास्तव में प्रायः देखने में आया है कि वर्तमान समय में हमारे द्वारा व्यापक रूप में पौधरोपण किया जा रहा है परन्तु संरक्षण की ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। संरक्षण के अभाव में अधिकतर पौध नष्ट हो जाती है। पौधरोपण के साथ-साथ संरक्षण की भी उतनी ही आवश्यकता होती है। तभी पौध सुरक्षित रह सकती है। इसी आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए पर्यावरण संरक्षण के लिए समर्पित संस्था समलौंण द्वारा भारत देश के हिमालयी राज्य उत्तराखण्ड के जिला पौड़ी गढ़वाल राठ  क्षेत्र चौंरीखाल इण्टर कॉलेज में 30 जुलाई को वृक्षजन्मोत्सव का आयोजन किया गया। वृक्षजन्मोत्सव एक सकारात्मक और अनुकरणीय पहल है। संस्था के संस्थापक वीरेन्द्र गोदियाल ने बताया कि मासिक पत्रिका टूरिस्ट संदेश के सम्पादक सुभाष चन्द्र नौटियाल की सलाह पर 30 जुलाई 2020 को वृक्ष जन्मोत्सव का आयोजन किया गया। वृक्षजन्मोत्सव मनाये का मूल उद्देश्य रोपित वृक्षों का संरक्षण प्रदान करना है। वास्तव में पौधों का रोपण तो व्यापक रूप से किया जा रहा है परन्तु संरक्षण के दिशा में अभी कार्य किया जाना शेष है। जबकि हमारी संस्था संरक्षण पर जोर दे रही है। हम प्रतिवर्ष उतने ही पौधों का रोपण करते जितने पौधों को संरक्षित किया जा सकता है। विभिन्न संस्थाओं द्वारा प्रतिवर्ष लाखों पौधे रोपित किये जाते हैं परन्तु संरक्षण के अभाव में रोपित पौधों के 2 प्रतिशत पौधे भी वृक्ष नहीं बन पाते हैं। हम जिस पौधे का रोपण कर रहे हैं उसके संरक्षण की जिम्मेदारी भी हमारी है। भारत में प्रतिवर्ष लगभग दो करोड़ पौधरापण किया जाता है परन्तु संरक्षण के अभाव में अधिकतर पौध मर जाती है। समलौंण आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य संरक्षण है। समलौंण यानि कि किसी जीवन के किन्ही खास पलों को यादगार बनाने के लिए जिस पौधे को रोपित किया जाता है वही समलौंण वृक्ष कहलाया है। समलौंण एक भावनात्मक आन्दोलन है जो कि मानवीय भावनाओं से सीधा जुड़ा हुआ है। यही कारण ही कि, इसमें मानव पौध संरक्षण के लिए प्रेरित होता है। जैसे शादी, विवाह, जन्मदिन, मिलन आदि संस्था के संस्थापक वीरेन्द्र गोदियाल आगे बताते हैं कि 30 जुलाई सन् 2010 को तत्कालीन लोकसभा सदस्य तथा महान पर्यावरण प्रेमी, पशुसेविका मेनिका गांधी जब बूंखाल कांलिंका में पशुबलि प्रथा को बंध करने के उद्देश्य से इस क्षेत्र का भ्रमण किया था तो समलौण के तहत यानि कि उनकी यात्रा को यादगार बनाने के लिए उनके द्वारा एक काफल का वृक्ष रोपित करवाया गया था। उस कार्यक्रम में तत्कालीन गढ़वाल जिलाधिकारी दलीप जावलकर भी उपस्थित थे। वही काफल का वृक्ष 30 जुलाई को 10 वर्ष की आयु पूर्ण कर 11 वें वर्ष में प्रवेश कर गया है। उक्त कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में श्रीनगर विधानसभा के पूर्व विधायक गणेश गोदियाल ने प्रतिभाग किया। उन्हांने संस्था को एक नई पहल के लिए बधाई देते हुए कहा कि वृक्षों के संरक्षण एंव संवर्द्धन के लिए इस प्रकार के कार्यक्रम व्यापक स्तर पर आयोजित किये जाने की आवश्यकता है। वृक्षजन्मोत्सव को ऐतिहासिक बताते हुए उन्होंने कहा कि समलौंण संस्था पर्यावरण की सच्ची प्रहरी है। वृक्ष जन्मोत्सव से मानव समाज में वृक्षों के प्रति संरक्षण का भाव जाग्रत होगा। इस प्रकार पर्यावरण संरक्षण की दिशा में रोपित वृक्षों का प्रतिवर्ष जन्मदिवस मनाया जाना एक अच्छी पहल मानी जा सकती है। ऐसी पहल हमें पर्यावरण संरक्षण की ओर ले जाती है। ऐसी पहल निश्चित रूप से रोपित वृक्षों के संरक्षण के लिए जिम्मेदारी के भाव का एहसास भी कराती है। जिन पौधों का हम रोपण करते हैं उनके संरक्षण की जिम्मेदारी भी हमारी है। जब तक वह वृक्ष न बन जाए। जिस प्रकार हम प्रतिवर्ष अपने बच्चों का जन्मदिवस मनाते है। ठीक उसी प्रकार हमें पौधों का रोपण दिवस जन्म दिवस के रूप में भी मानाना चाहिए। तभी संरक्षण का भाव मानव मन मस्तिष्क में जाग्रत होगा। यदि यह पहल व्यापक रूप से मानव समाज द्वारा अपनायी जाती है तो निश्चित रूप से समाज में एक सकारात्मक संदेश जायेगा कि हमारा कार्य मात्र पौधरोपण नहीं है। बल्कि रोपित पौध का संरक्षण एवं सुरक्षा प्रदान करना भी हमारी जिम्मेदारी है। जब रोपित पौध सुरक्षित रहेगी तभी जन्मदिन मनाना संभव है। मात्र पौधरोपित कर अपनी जिम्मेदारी का इतश्री न करें बल्कि सुरक्षा एवं संरक्षण के प्रति भी जिम्मेदारी लें। यदि संरक्षण का यह भाव मानव समाज को जाग्रत करने में सफल रहता है तो हम अपना  पर्यावरण संरक्षण का लक्ष्य हासिल कर सकते हैं। अन्यथा बिना संरक्षण के हर साल पौधरोपण की फोटो मीडिया में प्रेषित कर देने तथा पर्यावरण का क्षरण होते देखना कोई नई बात नहीं है। पर्यावरण संरक्षण के लिए वातानूकुलित कमरों में बड़ी-बड़ी विचार गोष्ठियों का आयोजन करना सब व्यर्थ है। धरती को बचाना है तो मन में प्रकृति  संरक्षण का भाव जाग्रत कीजिए तभी धरा सुरक्षित रह सकती है। आओ! हम सब मिलकर पौध रोपण के साथ-साथ संरक्षण का संकल्प लें तथा हर साल वृक्षजन्मोत्सव मनायें। 

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