पर्यटन सर्किट बने मालिनी वैली - TOURIST SANDESH

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बुधवार, 1 जुलाई 2020

पर्यटन सर्किट बने मालिनी वैली

पर्यटन सर्किट बने मालिनी वैली

अनसूया प्रसाद काला
मालिनी नदी
 

परम् पवित्र मालिनी नदी स्वयं में ऐतिहासिकता समेटे है। मालिनी सभ्यता के खण्डहर आज भी इस घाटी में यत्र-तत्र बिखरे हुए मिल जाते हैं। मालिनी सभ्यता का इतिहास बहुत पुराना (लगभग 4000-5000 ईसा पूर्व) है।इस  घाटी में जंगल, और चोटियां नैसर्गिक सांदर्य को अपने में समेटे हुए अति आकर्षक और मन का मोहने वाली है। पुराणों में मालिनी को गंगा की छोटी बहन कह कर सम्बोधित किया जाता रहा है। मालिनी का नाम उत्तर भारत की प्रमुख नदियों में है। आदि काल से ही मालिनी की जलधाराओं में ज्ञान की धाराओं का अद्भुत समागम रहा है। इसीलिए यह ज्ञान की घाटी भी कही जाती है। पौडी गढ़वाल के दुगड्डा ब्लाक के अन्तर्गत  चण्डा गाँव की पर्वत श्रृंखला से निकल कर दो पर्वतों के बीच प्राथमिक ग्राम मलनियाँं-बडोलगाँंव में बहती हुई अपनी यात्रा प्रारम्भ करती है। चण्डागाँंव में दो पहाड़ी के बीच (चण्डाखाल)में देवी का एक बहुत पुराना मन्दिर है। यह मन्दिर कब बना, इसका किसी को भी निश्चित ज्ञान नहीं है। जनश्रुति के अनुसार यह मन्दिर किसी रूपवती कन्या का विवाह हठधर्मिता से हो रहा था जो कि माता-पिता भी नहीं चाहते थे। डोली में रख कर एक तरह से अपहण की सी स्थिति में बाराती इस कन्या को ले जा रहे थे। इसके सात भाई लड़ते और प्रतिकार करते इस चण्डाखाल में बहिन की रक्षा में प्राण गंवा चुके थे। डोली से जब उस नवयौवना ने देखा तो अपनी ही कटारी से अपना बलिदान दे दिया। डोली से रक्त बह कर धार नीचे गिरने लगी तो काहरों ने डोली नीचे रख दी। बस तभी से यहाँं पर यह देवी का मन्दिर स्थापित है। चण्डाखाल से दूर-दूर के दृश्य बहुत मनोहर लगते है।पूर्व में दुगड्डा,सिलगाड़ नदी तो वहीं राजमार्ग पर दौडती हुई गाडियां, सामने ही गढ़वाल राइफल्स का प्रशिक्षण केन्द्र लैन्सडौन, तो वहीं सुदुर में चमकती हुई हिमालय की रजत चोटियां मन को मोह लेती हैं। मालिनी(मालन) की घाटी चण्डाखाल के पश्चिम दिशा में है। घाटी में साथ ही महाबगढ़ का प्राचीन मन्दिर उतुंग शिखर पर प्रहरी की भांति खड़ा है। यहां पर्वत और घाटी बाज,बुंरास, चीड़ काफल के वृक्षों से आच्छादित है। तभी तो कविवर सदानन्द जखमोला ने अपने गढ़वाली काब्य रैबार में लिखाः-
उजयनी सरिखी,
मौलि चण्डा कि भूमी।
बासं, बुरांश ,रिगाळ सजदी,
झूम-झूम कि बरसी।
हे मेघ! चण्डा की भूमि उजयनी जैसी है। जहां बांस,बुरांस और रिंगाल के घने जंगलो के वन सजे हैं।तू इस भूमि में झूम-झूम कर बरसना। यहाँं से पश्चिम को पहाड़ी ढ़लान में नीचे उतर कर मालिनी के किनारे प्रथम गाँंव मलनियाँं और बडोलगाँंव हैं। मालिनी के उद्गम से ही दो पर्वत श्रृंखलाये बनाली डांडा और चरेख डांडा है। इन दो पर्वतों के मध्य मालिनी की धारा बहती है। बाल्मीकि रामायण के अनुसार यह पर्वत अपरताल और प्रलम्ब है।
न्यान्ते नापरतरलस्य, प्रलम्बस्योतरं प्रति।
   निषेवमाणास्ते जुग्मुर्नदिमध्येन मालिनी।बा0रा0अयो0 68/12
अपरताल पर्वत मालिन उद्गम से बनालीडांडा से आगे चौकीघाटा तक, जिसमें पौखाल, महाबगढ़ और अन्तिम छोर  चौकीघाट के नजदीक भीम सिंह की पहाड़ी तक है तो वहीं प्रलम्ब पर्वत मालिनी उद्गम चण्डा से चरेखडांडा,  बल्ली, कान्डई, मथाणा और ईड़ और रैण पातळ का अनाच्छादित पर्वत श्रृंखला है। इन्हीं दो पर्वत श्रृखलाओं के बीच मालिन बहती है। चरेखडांडा (पर्वत चोटी) में कालान्तर में चरक ऋषि ने अपना आश्रम बनाया था और निघन्टू जैसे आयुर्वेदिक ग्रन्थ की रचना की थी। इसके आसपास के क्षेत्र को घाड़ के नाम से जाना जाता है। यहां से दूर दूर का नजारा देखने को मिलता है।  इस स्थान से सुदूर कौंलाडांडा, मुरादाबाद, हरिद्वार,रुड़की,कोटद्वार, हिमालय चौखम्बा, आदि अनेक मनमोहक कुदरत की छटा का विहंग अवलोकन होता है। रात्री के समय यहां से चारों जगमगाती बिजली में ऐसा भान होता है मानों हर वृक्ष पर मोती लटक रहे हों और पहाडों पर मणियां छिटक रही गयी हों। मैदान में दूर से आती रेल और मोटरगाडियों की आवाजाही से ऐसा लगता है मानों प्रकृति ने यह सुन्दरता परोस कर दी हो। पेशावर काण्ड के नायक चन्द्र सिंहँं गढ़वाली ने यहां पर राजा भरत के नाम से भरतनगर बनाने की परिकल्पना की थी। परन्तु दुर्भाग्य है कि यह मात्र कल्पना ही रह गयी।  मालिनघाटी चरेखडांडा से ईड-मथाणा और चौकीघाटा तक का पूरा ही क्षेत्र ऋषिकण्व के आश्रम और निवास के लिए जानी जाती है। चरेखडांडा के ठीक उत्तर को मालिन के उत्तरी छोर की पर्वत ऋषि अंचाला बनालीडांडा से प्रारम्भ होती हैं और चौकीघाटा में समाप्त होती है। बनालीडांडा से मालिनीघाटी का नजारा अद््भुत है। घाटी में बसे गांव मलनयिं,बडोलगांव, माण्डई, बिजनूर, सौड, सामने पहाड़ी की ढ़लानों में बसे गांव पाली ,कफल्डी, दूणी और सीडी नुमा खेत मन को मोह लेते है। यहाँं से हिमालय की पर्वत श्रृंखला और चौखम्बा का नजारा अद्भुत है। चोटी का काफी बड़ा भाग कुछ समतल, तो कुछ ढ़लान और खेतों वाला है। वहीं पर्वत श्रृंखला में चीड़,बुरांस, काफल और अनेक प्रकार की औषघीय वनस्पतियों और लताओं से आच्छादित है। इन समतल प्लाटों में पर्यटक चलकर यात्रा का आनन्द ले सकते हैं। यहां पर असलदेव महादेव के नाम से मन्दिर है। साथ ही चोटी से आघा कि0मी0 नीचे पहाड़ के पठार में भैरव गुफा है। बनालीडांडा के पश्चिमी खड़ी ढ़़लान की चट्टानी गुफाओं में मघुमक्खियों के अनेक छत्ते होते है। जो स्थानीय जनमानस के लिए देव स्वरूप है। अतः इन से शहद नहीं निकाला जाता। बनालीडांडा की श्रृंखला में ही पौखाल कस्बा है। यह छोटा सा बाजार है परन्तु आवश्यकता की हर वस्तु यहाँं पर उपलब्घ है। पौखाल से तीन कि0मी0 उत्तर में ह्ंयूलनदी बहती है । इसके किनारे बहुत पुराना आश्रम है जिसे वष्ठिश्रम कहा जाता है। इस स्थान को त्रिपणी या त्रिवेणी के नाम से भी जाना जाता है। क्योंकि यहाँ परं तीन नदियों का संगम है। बैसाखी के दिन हर साल यहां बैसाखी मेला लगता है और लोग संगम में स्नान कर पुण्य करते है। बडोलगाँंव में श्रीकालेश्वर महादेव एवं गौरजा का मन्दिर है । कभी यह धाटी अन्न का कटोरा मानी जाती थी। परन्तु सन् 1928 में मालिनी में भयंकर बाढ़ आई थी। जिसके कारण गाँंव और खेत या तो बह गए या बालूरेत में समा गए। साथ ही मालिनी की धारा भी बाढ़ में भूमिगत हो गई। यहां से तीन कि0मी0 बहाव की दिशा में यह सौड़ जुड्डा नाम के स्थान पर भूमि में अवतरित होती है। उद्गम से जुड्डा तक यदि इसे भू-गर्भ में सोयी नदी कहें तो अतिश्योक्ति न होगी। यहाँं से इसमें पतली किन्तु पर्याप्त मा़त्रा में पानी की धारा बहती है जिससे किनारे के खेतों की सिंचाई होती है। आगे किमसेरा गांव है। जनश्रुतियों के अनुसार यहीं पर कण्वऋषि का आश्रम था। आधा किलोमीटर दूर दाहिने पर्वत घाटी में मयड्डा गाँंव है। वास्तव में यहां मेनका का मयड्डा घर था। जहां देवलोक से आई मेनका ने विश्वमित्र की तपस्या भंग करने के लिए तपस्या और निवास किया। धारा के बांईं ओर मालिनी की पर्वत उपत्यका में सौट्यलधार नाम का गांव है। जो शकुन्तलाधार या कभी शकुन्तला का घर था। यहां शकुन्तला ने निवास किया था। मयड्डा से सीधी चढ़ाई पर चोटी में महाबगढ़ देवालय है। यह गढवाल के 52 गढ़ में एक है। यहां के गढ़पति असवाल जाति के राजपूत थे। जिनका गांव किमसेरा के पास गड़गांव था। यहां पर कहते है पहले किला या गढ़ था। जिसके कारण इसका नाम गढ़़ पड़ा। महाबगढ़ के ही कुछ नीचे मालिनी नदी के किनारे परन्तु समुचित ऊँचाई पर भरपुर नाम का गाँंव है। जहां पर चक्रवर्ती सम्राट भरत का जन्म हुआ था। उसी प्रकार बिस्तन काटळ नाम का गांव है। कहा जाता है यहां पर तपस्यारत विश्वामित्र का आश्रम था और उन की तपस्या भंग करने मेनका आई थी। ये सब पौराणिक स्थल है जिनका नाम समय के बहाव में अपभ्रंशित हो गये। महाबगढ़ यहां के स्थानीय देवता है। कालांन्तर में सामरिक दृष्टि से इन गढ़ों का निर्माण किया होगा। क्यों कि यहाँं से दूर-दूर तक दुश्मन की हरकत को देखा जा सकता है। महाबगढ़ दिव्य स्थान है। यहां से हरिद्वार, ऋषिकेश रुड़की और मैदान में गंगा की अविरल धारा की चांदी जैसी रेखा दिखाई देती है तथापि हेंवलघाटी और हिमालय के अलौकिक दृश्य भी दिखाई देते हैं। जो मन को मोह लेते है। मालिनी के उद्गम से लेकर पूरी मालनघाटी का सुन्दर नजारा और चौकीघाट से आगे की मालिन यात्रा का पथ के साथ पूरे भाबर क्षेत्र का सजीव दृश्य बहुत सुन्दर लगता है। वैसे तो मालन की यह उपत्यका अपने में अद्भुत और अलौकिक तो है ही परन्तु इस की घाटी और पर्वतीय वनों में विचरण करने वाले शाकाहारी से लेकर शिकारी हिंसक जंगली जानवरों से लेकर अनेकों प्रकार के जन्तुओं से सज्जित यह वन अति शोभायमान हो जाता है। मैंनें मालिन की उपत्यका में अपना बालपन बिताया है। चण्डा से लेकर चौकीघाट तक का मालिन का प्रत्येक कंकड़-पत्थर, झरना, घाटी, वृक्ष, लतायें और प्रमुखता से इसके निर्मल जल की धारा के अमृतनीर का रसास्वादन किया है। न जाने क्यों इस घाटी से मेरा मोह कुछ ज्यादा ही है। अपनी 36 साल की राजकीय सेवा के बाद जब मैं सेवानिवृत हुआ तो अपने मूल गांव आने की अति उत्कण्ठा मन में उठी। मेरा परिवार दिल्ली में है परन्तु मै अपना झोला उठाए चल पडा मालिन घाटी मे अपने गांव मलनियां/ बडोलगांव की ओर। गांव में काफी बदलाव आ गया है। जलवायु और वनस्पति में भी परिवर्तन देखने को मिल रहा है। यहां पर लोगों के साथ मिलकर हमने पवि़त्र मालननदी के उद्गम स्थल होने के कारण शिव और गौरजा मन्दिर का निर्माण किया। जिसमें हर वर्ष जून के प्रथम सप्ताह में कार्यक्रम होता है और दूर-दूर से लोग यहां पर आते है। उद्गम से मालिनी नदी कुछ दूर जाते ही भूमिगत हो जाती है और जुड्डा गांव में सतह पर आती है। इस घाटी की यात्रा बहुत ही चित्ताकर्षक और रोमांच से भरा होता है। वैसे तो मालन की पूरी घाटी अनेक प्रकार के जीवजन्तुओं से भरपूर है,परन्तु मयड्डा से आगे चौकीघाटा का अरण्य में शेर, बाघ, गुलदार, हिरण, काकड़, चीतळ, सुअर,मोर आदि झुण्ड या अकेले भी दिखाई देते है। घाटी घने वनों से आच्छादित है। सभी वनचर मालननदी में पानी पीने आते हैं। मथाणा गांव के खेत मरण खेत नाम के स्थान पर है। मरणखेत में कुछ समय पहले तक जलपान की दुकानें हुआ करती थी और स्यालना जौरसी के रास्ते कांडी तक जिलाबोर्ड का पैदल मार्ग था। चौकीघाटा पहाड़ और मैदान को मिलाने वाला एक व्यापारिक केन्द्र था। यहां से ख्च्चरों में सामान कांडी मार्ग से ले जाया जाता था। स्याळना जौरसी, सिमलना से तीन या चार किं0मी0 पश्चिम और चौकीघाटा से लगभग तीस कि0मी0 पूर्व उत्तर की ओर घनघोर रिकचा नाम का जंगल है। यहां पर पहाड़ियों से घिरे प्लाटां में दो तालाब है। जिसमें शेर से लेकर हिरण तक के जंगली जानवर पानी पीते है। अनेक वनप्रेमी इन वनचर की रोज की दिनचर्या को निहारने के लिये यहां पेड़़ों पर मचान बांध कर दिन और रात बिताते हैं। परन्तु अपनी सुरक्षा का भी ख्याल रखना पड़ता है। मरणखेत से सम्भव लगभग 2 कि0मी0 नदी की बहाव की दिशा में और चौकीघाट से चार कि0मी0 लगभग पूर्व की ओर मालन के दाहिने किनारे सहस्रधारा है। यहां पहाड़ का पठारी भाग छत की नुमा आगे आया हुआ है और उससे सहस्र जलकीबूंदे और धारायें निकल कर गिरती है। इसी के कारण इसे सहस्रधारा का नाम दिया गया है। श्रद्धालु यहां पर आकर स्नान कर पुण्य लाभ लेते हैं। यहाँं पर मालिनी का तट बहुत संकरा है। सम्भव है 15 फिट हांगे। नीचे गहरी खाई है। कालान्तर में यह सुगम आम रास्ता था और इसमें यात्रियों की चहल-पहल होती थी। परन्तु आज बहुत ही विकट हो गया है। सरकार से निवेदन है कि इस रास्ते की सुध ले और इसे सुगम बनायें। चौकीघाटा से दोनो किनारों से दो नहरें मालन से निकाली गई हैं । जिससे भाबर क्षेत्र की सिंचाई होती है। वर्तमान में चौकीघाटा में महाऋषिकण्व का आश्रम के नाम से स्मारक बनाया गया है और हर वर्ष बसंतपंचमी को यहां मेला लगता है। कण्वाश्रम में ही शकुन्तला और राजा दुष्यन्त का मिलन और गंधर्व विवाह हुआ था।महाभारत के आदिपर्व में वर्णन हैः-
 महाकच्छैर्बृहद्भिश्च बिभ्राजित मतीव च।
मालिनीमभितो राजन् नदीपुण्यां सुखोदकम्।
आश्रम में बडे़-ंबडे तून के वृक्ष थे और मालिननदी के किनारे कण्व का आश्रम था। मालिन का जल बहुत मधुर
और स्वादिष्ट था।
तस्यास्तीरे भगवतः काश्यपस्य महात्मन।
चकाराभिप्रवेशाय मतिं सा नृपस्तदा।
इस नदी के किनारे कश्यप् गोत्रीय महात्मा कण्व का उत्तम और रमणीक आश्रम था। जहां ऋषियों के समूह निवास करते हैं। इसी आश्रम में राजा दुंष्यन्त ने प्रवेश किया। मालन घाटी में आज भी दोनों किनारे पर तून के ऊँंचे-ऊँंचे वृक्ष हैं।हालांकि मालन घाटी के जनमानस किमसेरा मयडा को कण्व का आश्रम मानते हैं। परन्तु किसी ठोस प्रमाण के कुछ नहीं कहा जा सकता है। परन्तु फिर भी यह कहना होगा कि जनश्रुतियों में अतिश्योक्ति हो सकती है परन्तु मिथ्या नहीं। मालन घाटी ही वास्तव में पूरी कण्वघाटी है। इससे सम्बधित गांवें का नाम समय के अनुसार अभ्रंश हो गए। कुछ भी हो,यह तो निश्चत ही है कि ऋषिकण्व का आश्रम इसी मालन नदी के किनारे था। चाहे वह चौकीघाटा हो या किमसेरा मयडा, सौट्यळघार। लेकिन सभी तथ्यों को देखते हुए यह विश्वास तो मन में जगता ही है कि चौकीघाटा में कण्वाश्रम का विश्वविद्यालय रहा होगा। इसी चौकीघाट को कण्वाश्रम के नाम से वर्तमान में विकशित किया जा रहा है। जो एक सार्थक पहल है। चौकीघाट में ही योगिराज विश्वपाल जयन्त ने कण्वाश्रम के नाम से महाविद्यालय खोला हुआ है।जिसमें वेद और वेदान्त की शिक्षा दी जाती है।चौकीघाट से मालन आगे के लिये लगभग जलशून्य हो जाती है। क्यों कि इसका जल नहरों में चला जाता है। मालिन का आगे का पथ जल विहीन सूखा हो जाता है।गर्मियों में तो यह सूखे नाले में परिवर्तित होजाती है। चौकीघाटा से यात्रा करती हुई मालन हल्दूखाता-मोटाढ़ाक के बीच से होते हुए जिला बिजनौर में प्रवेश करती है और मंडावर पहुंचती है। मंडावर से आगे नजीबाबाद से तीन कि0मी0 दूर पश्चिम में बहती हुई रावली में गंगा में संगम बनाती है। और यहां पर मालन की यात्रा गंगा में मिल कर गंगा के साथ सामूहिक हो जाती है। मालिन की घाटी में पर्यटन की अपार संभावनाये है। जहां इसका बहुत बड़ा पौराणिक महत्व है वहीं शैलानियों के लिये प्रकृति का अवलोकन और रोमांचक भी है। अतः निम्न कुछ बिन्दुओं पर ध्यान देने और अमल करने की जरूरत है। ताकि क्षेत्र को पर्यटन सर्किट के रुप में विकसित किया जा सके- 
1-ं बडोलगांव से मयडा-मरणखेत होते हुए सीधा मोटर मार्ग चौकीघाटा/कण्वाश्रम को जोड़ जाए।
2-ं भरत ,शकुन्तला, दुष्यन्त ,मेनका , कश्यप ऋषि से सम्बन्धित स्थानों का पर्यटन केन्द्रों के रुप में विकसित किया जाए।
3-ंचरेकडांडा का आयुर्वेद के हब के रूप में समुचित विकाश हो और इसे मालन घाटी से जोड़ा जाये। चरेख से ईड़ तक मोटर मार्ग बने।
4-ंबनालीडांडा में आने-जाने की सुविधा के लिये मोटर मार्ग से जोड़ा जाए।
5- वष्ठिश्रम गैरा भंवासी को तीर्थाटन में शामिल जाए।
6‘- दुगड्डा से चण्डाखाल का मोटर मार्ग पूरा किया जाए।
7-ं मालन नदी का नमामि गंगे के अन्तर्गत संरक्षण किया जाये। जिससे लुप्त हो रही नदी पुनर्जीवित हो सके।
उपरोक्त स्थानों की कोटद्वार से दूरी।
1-ं 35 कि0मी0 चरेकडांडा ऊँंचाई समुद्रतल से 66661 फिट।
2-ं चण्डाखाल-दुगड्डा होते हुए। मोटर और पैदल 30
कि0मी0।
3 बनाली डांडा 45 कि0मी0 दुगड्डा-काण्डाखाल होते हुए।
4- महाबगढ़-कोटद्वार-ंदुगड्डा-ंकाण्डाखाल-ंपौखाल-
महाबगढ़-। लगभगग 65 कि0मी0 मोटर मार्ग।
5- वषिठाश्रम भंवासी। 4 कि0मी0 पौखल से।
6-ं बडोलगांव पौखाल से 8 कि0मी0। मोटर मार्ग।
7-ं किमसेरा मयडा-ं पौखाल से तीन कि0मी0 मोटर मार्ग।
8-ं ईड/मथाणा आश्रम, कोटद्वार से पुलिन्डा बल्ली तक
मोटर मार्ग। बल्ली से तीन कि0मी0 पैदल।
9-ं चौकीघाट-ंकण्वाश्रम-ंकोटद्वार से 12 कि0मी0मोटर मार्ग।
10 सहस्रघारा-ं चौकीघाट से लगभग चार कि0मी0 पैदल।
11-ं रीछ का डांडा-ंचौकीघाट से 10 कि0मी0 पैदल।
12-ं देवीडांडा - नालीखाल- पौखाल से 8 कि0मी0 मोटर मार्ग 

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