चैत्र नवरात्रि
वैसे तो एक वर्ष में मुख्य रूप से दो नवरात्रियां मनायी जाती हैं,
शारदीय नवरात्रि और चैत्र नवरात्रि। नवरात्रि के इस पवन पर्व को पूरी भारत वसुंधरा में बड़े ही धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। इस दिन को लेकर कई सारी मान्यताएं प्रचलित है।
एक प्रमुख मान्यता के अनुसार चैत्र नवरात्रि के पहले दिन माँ दुर्गा का जन्म हुआ था और उनके कहने पर ही भगवान ब्रम्हा ने संसार की रचना की थी। यहीं कारण है कि, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा यानि चैत्र नवरात्रि के पहले दिन हिंदू नववर्ष भी मनाया जाता है। इसके अलावा पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु के सातवें अवतार भगवान श्री रामचंद्र जी का जन्म भी चैत्र नवरात्रि में ही हुआ था।माँ दुर्गा को आदि शक्ति के नाम से भी जाना जाता है और हिंदू धर्म में उन्हें सबसे प्राचीन दैवीय शक्ति का दर्जा प्राप्त है, क्योंकि माँ दुर्गा का जन्म बुराई का नाश करने के लिए हुआ था। इसलिए चैत्र माह में उनकी पूजा-अर्चना करने के कारण हमारे अंदर सकारात्मकता का संचार होता है। यहीं कारण है कि, चैत्र नवरात्रि का यह महत्वपूर्ण पर्व समूचे भारत वर्ष में इतने भव्य एवं आकर्षक तरीके से मनाया जाता है।माँ दुर्गा को समर्पित चैत्र नवरात्रि के इस पर्व को मनाने का एक अलग ही तरीका है, जो इसे अन्य त्योहारों से भिन्न बनाता है। उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, हिमांचल प्रदेश, हरियाणा जैसे भारत के उत्तरी राज्यों में यह पर्व काफी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। इसके साथ ही चैत्र नवरात्रि के समय से ही महाराष्ट्र में गुड़ी पाड़वा पर्व की भी शुरुआत होती है।चैत्र नवरात्रि के पहले दिन को प्रतिपदा भी कहा जाता है, इस दिन से माँ दुर्गा के मंदिरों में मेलों तथा विशेष कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।हमारी संस्कृति के अनुसार चैत्र नवरात्रि की कुछ रस्में इस प्रकार से हैं..
नौ दिनों के लिए, उपासक अपने घर के मंदिरों के अंदर देवी की अलग-अलग मूर्तियों को स्थापित करते हैं। प्रार्थना और उपवास करने से चैत्र नवरात्रि उत्सव मनाया जाता है। उत्सव शुरू होने से पहले, अपने घर में देवी के स्वागत के लिए घर की सफाई की जाती है। पूजा करने वाले भक्त पूरे नौ दिनों तक उपवास रखते हैं। उपवास के दौरान केवल सात्विक भोजन जैसे आलू, कुट्टू का आटा ,दही और फल का सेवन किया जा सकता है। नवरात्रि की अवधि के दौरान, भोजन में सख्त अनुशासन बनाए रखते हुए, एक व्यक्ति को अपने व्यवहार की निगरानी भी करनी चाहिए। भक्त अपना दिन देवी की पूजा और नवरात्रि मंत्रों का जाप करने में बिताते हैं। नौवें दिन हवन ’के बाद व्रत तोड़ा जाता है और प्रसाद देवी को अर्पित करने के बाद परिवार के अन्य सदस्यों के साथ खाया जाता है।
सभी 9 दिनों के लिए नवरात्रि पूजा विधान लोग इस प्रकार से किया करते हैं।....
नवरात्रि दिवस 1: इस दिन किए जाने वाले अनुष्ठानों में घृतपर्ण, चंद्र दर्शन और शैलपुत्री पूजा है।
नवरात्रि दिवस 2: दिन के अनुष्ठान सिंधारा दूज और ब्रह्मचारिणी पूजा हैं।
नवरात्रि दिवस 3: इस दिन को गौरी तीज या सौहार्द तीज के रूप में मनाया जाता है और दिन का मुख्य अनुष्ठान चंद्रघंटा पूजा है।
नवरात्रि दिवस 4: वरद विनायक चौथ के रूप में भी जाना जाता है, इस दिन भक्त कुष्मांडा पूजा का पालन करते हैं।
नवरात्रि दिवस 5: इस दिन को लक्ष्मी पंचमी के रूप में भी जाना जाता है और इस दिन मनाई जाने वाली मुख्य पूजाएँ नाग पूजा और स्कंदमाता पूजा हैं।
नवरात्रि दिवस 6: इसे यमुना छठ या स्कंद षष्ठी के रूप में जाना जाता है और कात्यायनी पूजा मनाया जाता है।
नवरात्रि दिवस 7: इस दिन को महा सप्तमी के रूप में मनाया जाता है और देवी की कृपा प्राप्त करने के लिए कालरात्रि पूजा की जाती है। नवरात्रि दिवस 8- महागौरी माता की पूजा : नवरात्रि के आठवें दिन महागौरी की अराधना की जाती है.
नवरात्रि दिवस 9- सिद्धिदात्री माता की पूजा : नवरात्रि के आखिरी दिन माता सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, माता सिद्धिदात्री भक्तों की अराधना से प्रसन्न होकर सिद्धियों का वरदान देती हैं।शक्ति की सर्वोच्च देवी माँ आदि-पराशक्ति, भगवान शिव के बाएं आधे भाग से सिद्धिदात्री के रूप में प्रकट हुईं। माँ सिद्धिदात्री अपने भक्तों को सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करती हैं। यहां तक कि भगवान शिव ने भी देवी सिद्धिदात्री की सहयता से अपनी सभी सिद्धियां प्राप्त की थीं। माँ सिद्धिदात्री केवल मनुष्यों द्वारा ही नहीं बल्कि देव, गंधर्व, असुर, यक्ष और सिद्धों द्वारा भी पूजी जाती हैं। जब माँ सिद्धिदात्री शिव के बाएं आधे भाग से प्रकट हुईं, तब भगवान शिव को अर्ध-नारीश्वर का नाम दिया गया। माँ सिद्धिदात्री कमल आसन पर विराजमान हैं।नवरात्रि का नौवां दिन अंतिम दिन होता है। यह महानवमी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन घरों में कन्या पूजन होता है। जिसमें नौ कन्याओं की पूजा होती है। इन नौ कन्याओं को देवी दुर्गा के नौ रूपों का प्रतीक माना जाता है। कन्याओं का सम्मान तथा स्वागत करने के लिए उनके पैर धोए जाते हैं। पूजा के अंत में कन्याओं को उपहार भी प्रदान किए जाते हैं।
संग्रह एवं प्रस्तुति-- राजीव थापलियाल
सहायक अध्यापक (गणित), राजकीय आदर्श प्राथमिक विद्यालय सुखरौ(देवी) कोटद्वार पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड
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