कुदरत का बेमिसाल गुलदस्ता, स्वर्ग सरीखा, ’’पहाड़ों का राजा’ चकराता
डॉ0 मुज़ाहिद हुसैन
फूल इसलिए खिलता है, ताकि तू उसे देखे...............................
बहारें इसलिए आती हैं, ताकि तू सैर करे............................
जब जीवन की आपाधापी और थका देने वाली भाग-दौड़ से हम ऊब जाते हैं, तो प्रकृति की गोद में जाने से ही हमे नयी ऊर्जा मिलती है। प्रकृति, जो पल पल अपना सौन्दर्य बदलती रहती है, और रोज एक नया रूप लेकर हमारे सामने प्रस्तुत रहती है, और कभी भी अपना रंग फीका पड़ने नही देती।
उत्तराखण्ड राज्य में तो प्रकृति इस प्रकार मेहरबान है, मानो ईश्वर ने इस राज्य को बेशकीमती प्राकृतिक ख़ज़ानो से लबरेज कर दिया हो।
आजकल समूचे उत्तर भारत को सर्दियों ने अपने आगोश में ले रखा है, और उत्तराखण्ड के कई इलाकों में भारी बर्फबारी हो रही है। आमतौर पर जनवरी के शुरू में उत्तराखण्ड के ऊपरी हिस्सो में भारी बर्फबारी होती है। इसी बर्फबारी का लुत्फ उठाने सैलानी उमडते हैं।
मैंने भी पिछले सप्ताह अपने चार दोस्तों के साथ देहरादून से लगभग 100 किमी0 दूर उत्तर-पश्चिम में स्थ्ति एक खूबसूरत हिल स्टेशन ’’चकराता’ जाने का निश्चय किया.........
अपनी इस यात्रा के अनुभव मे आपसे साझा करना चाहता हूँ। बीते शुक्रवार शाम लगभग 8 बजे हम पाँच दोस्त नजीबाबाद से कार द्वारा देहरादून के लिए रवाना हुए, लगभग 3 घण्टे की यात्रा के बाद हम तकरीबन 11 बजे देहरादून अपने मित्र के एक रिश्तेदार के यहाँ पर पहुँचे, और हमने 2-4 घण्टे विश्राम करने का निश्चय किया, आराम करने के बाद रात में ही लगभग 3 बजे सुबह हमने अपनी चकराता की यात्रा शुरू करने का फैसला किया, और हम रात को तीन बजे चल पड़े ताकि सुबह जल्दी ही 7 या 8 बजे तक हम चकराता पहुँच जाऐं, और बर्फबारी का आनन्द ले सके। विकास नगर से आगे जाकर जब पहाड़ शुरू होता है तो , हम ने पहाड़ी रास्तों में धीरे-धीरे गाड़ी चढानी शुरू की और हम आनन्द पूर्वक चलते रहे। 2 घण्टे चल चुकने के बाद भी हमें एक भी वाहन सड़क पर आता हुआ ना दिखाई दिया और ना ही जाता हुआ। कुल मिलाकर भीषण ठंड के मौसम में बिल्कुल सुनसान रास्ते पर केवल हमारी ही गाड़ी पहाड़ी रास्तों को नापती हुई आगे बढ़ती जा रही थी।
इस कारण हमारा ये सफ़र एक अनोखे डर मिश्रित रोमांच से भर गया। पहाड़ पर चलते समय बिल्कुल सुनसान सड़क पर सांय-सांय करते सन्नाटे के बीच, एक मोड़ के खत्म होने पर अचानक हमारी गाड़ी की लाइट में एक पुरानी मारूती 800 कार दिखाई पड़ी जो कि पता नहीं कब से खराब हालत में वहाँ पर खड़ी होगी, खिड़कियाँ टूटी हुई और गाड़ी के अन्दर धूल की मोटी परत , और जाले लटके हुऐ, कुल मिलाकर पूरी ’’भूतिया कार’’ जैसी नज़र आ रही थी। उस भूतिया कार के देखकर हम डर गये। फिर तकरीबन और आधा घण्टे चलने के बाद फिर एक मोड़ पर इसी प्रकार से हमारी गाड़ी की रौशनी एक ट्रैक्टर पर पड़ी, जिसके आगे के दोनों पहिये निकले पड़े थे और ऐसा लग रहा था माना वो टै्रक्टर सड़क पर ’’सजदा’’ कर रहा हो। इस प्रकार अब तक के सफ़र के दौरान हमें एक टूटी-फूटी भूतिया कार और एक सज्दे की मुद्रा में खड़े टै्रक्टर के सिवा कुछ भी नही दिखा। थोड़ा आगे चलने पर हम एक नगर ’’सहिया’’ तक पहुँच गये, वहाँ दो रास्ते होने के कारण हम थोड़ा उलझन पर पड़ गऐ, इस कारण हम ने थोड़ी देर रूक कर किसी से पूछने का निर्णय किया।
भारी ठंड के बीच सुबह के करीब साढे पाँच बज रहे थे, थोड़ी देर बाद एक सज्जन आते दिखाई दिये, उन्होने हमें सही रास्ता बताया, और हम एक बार फिर चल पड़े।
सहिया से आगे लगभग 10 किमी0 जाने पर हम गूगल मैप के बताये अनुसार सीधे हाइवे को छोड़कर अचानक एक तीव्र मोड़ पर चढ़कर कच्ची सड़क पर चढ़ गये। पहले हमें अहसास हुआ कि पक्की सड़क के बजाए ये कच्चा रास्ता शायद ठीक ना हो, या खतरनाक हो, पर गूगल मैप के कहे अनुसार हमें लगा कि शायद ये कोई शॉर्टकट होगा, हम उस रास्ते पर आगे की ओर बढ़ चले। नीचे सड़क पर छोटे-छोटे पत्थर-कंकड़, मिट्टी और बड़ी -बड़ी झाडियो से भरे उस पथरीले मार्ग पर हम धीरे-धीरे गाड़ी चढ़ाते हुऐ बढ़ने लगे , पर जल्दी ही पगडंडी जैसा भयानक रास्ता होने के कारण हमें अपनी गलती का अहसास हुआ। 2-3 किमी0 आगे जाने पर अचानक एक व्यक्ति मिला और उसने हमें उस खतरनाक रास्ते की बजाये नीचे हाईवे से जाने की सलाह दी। फिर हम वहाँ से नीचे आये और हाईवे से चकराता कि लिए रवाना हुए, और तकरीबन सुबह 8 बजे हम चकराता पहुँच गये। देहरादून से रात 3 बजे से 8 बजे तक चलकर घुप्प अँधेरी और ठण्डी सुबह मे बिल्कुल सुनसान यात्रा के बाद हमारी गाड़ी चकराता पहुँची। पाँच घण्टे का सफर थोड़ा डरावना, और काफी रोमांचक रहा, और जीवन भर के लिए यादगार भी
चकराता पहुँचकर हमने गाड़ी में ही एक घण्टा आराम किया और फिर बारी थी चकराता और आसपास के सुन्दर नज़ारों को निहारने की। चकराता से लगभग 4 या 5 किलोमीटर ऊपर चारों तरफ , बर्फ ही बर्फ पड़ी हुई थी। सड़क किनारे लगी हुऐ रेलिंग पर बर्फ की परत और सड़क की बीचों बीच गाड़ी के दोनों पहियों के निशान जोकि दूर तक जाते थे, बहुत ही खूबसूरत चित्र प्रस्तुत कर रहे थे। चारों तरफ ऊँची-ऊँची पहाड़ी चोटियाँ, जो कि कहीं- कहीं पर पूरी और कहीं - कहीं पर अधूरी सी बर्फ से ढकी हुई थी। आसपास के सारे नज़ारां की खूबसूरती सीधे दिल मे उतर रही थी, पहाड़ों की चोटियों पर, पेड़ो पर, पेड़ो की पत्तियो पर जमी हुई सफेद बर्फ की चादर इतना खूबसूरत नज़ारा बना रही थी कि, मानों हम किसी और ही ग्रह पर आ गये हों, चारों तरफ का नज़ारा किसी स्वर्गलोक के जैसा, किसी पौराणिक नगर के जैसा दिखाई पड़ रहा था। ये सारे सुन्दर नज़ारे देखकर हम अपनी यात्रा की सारी थकान एक पल में भूल गये और आसपास के शांत और निर्मल वातावरण की सुन्दरता में खो गये.............
चकराता की समुद्र तल से ऊँचाई 2118 मी0 है, और यह टोन्स नदी और यमुना नदी के बीच स्थित है। चकराता जौनसार जनजातीय क्षेत्र के अन्तर्गत आता है, जिसे ब्रिटिश शासन काल में कर्नल ह्यूम द्वारा बसाया गया था। जौनसार बावर जनजातीय क्षेत्र की एक घाटी है जो कि 1002 वर्ग किमी0 में फैली है। और इसमें 398 गाँव शामिल है। सहिया बाजार और नगर क्षेत्र के आसपास अलसी, सकानी, कनबुआ और काकड़ प्रमुख गाँव है। इसके उत्तर में उत्तरकाशी जिला लगता है और कुछ हिस्सा हिमाचल प्रदेश का भी है और दक्षिण मे देहरादून तहसील से लगता है अधिकांश जनसंख्या खेती, पशुपालन पर निर्भर करती है और यहाँ की खेती मौसम पर निर्भर करती है, केवल दस प्रतिशत ही सिंचित भूमि है। दूध, ऊन, माँस स्थानीय लोगों की आय का मुख्य साधन है। यहाँ के घर मुख्यतः पत्थर और लकड़ी से बनाये हुऐ है। और छत सीमेंट की टाइल्स से बनाई गई हैं । मुख्यतः दो मंजिला मकान होते हैं , जिन में हर मंजिल पर एक से चार तक कमरें होते हैं। इन मकानो को पहाडा़ें के ढलान पर पहाड़ काट कर समतल की गई भूमि के टुकड़े पर बनाया जाता है। यहाँ पर आमतौर पर बेहद कम तापमान होता है इस कारण मकानो की छतें शंक्वाकार होती है। भगवान महासू के प्रभाव और भक्ति के चलते यहाँ के अधिकांश मन्दिर महासू देवता को समर्पित है। सुपर हिट फ़िल्म ’’बजरंगी भाई जान’’ के गीत ’’जिन्दगी कुछ तो बता’’ से चर्चा में आए बॉलीवुड गायक जुबिन नौटियाल भी इसी क्षेत्र से आते हैं।
चकराता का पुराना नाम चकोरखाता था, जिसे ब्रिटिश शासकों ने बदल कर चकराता कर दिया। चकराता के आसपास लाखामँडल, रामताल गार्डन, देव वन और ब्यासी जैसी जगहें है। छिलमिरी सनसेट प्वाइंट से सूर्य के छिपने का मन भावन नज़ारा देखा जा सकता है।चकराता से बीस किमी0 दूर ’’टाईगर फॉल’’ लगभग 50 मीटर ऊँचाई से गिरने वाला झरना है, जो कि भारत का सबसे ऊँचा झरना है, जो कि ऊँचाई से गिरने पर चीते की दहाड़ जैसी आवाज करता है। प्रकृति ने हमारे लिए कितना कुछ सृजित कर रखा है, और हम हैं कि अपनी चारदीवारी को लाँघना ही नहीं चाहते।
चकराता का पुराना नाम चकोरखाता था, जिसे ब्रिटिश शासकों ने बदल कर चकराता कर दिया। चकराता के आसपास लाखामँडल, रामताल गार्डन, देव वन और ब्यासी जैसी जगहें है। छिलमिरी सनसेट प्वाइंट से सूर्य के छिपने का मन भावन नज़ारा देखा जा सकता है।चकराता से बीस किमी0 दूर ’’टाईगर फॉल’’ लगभग 50 मीटर ऊँचाई से गिरने वाला झरना है, जो कि भारत का सबसे ऊँचा झरना है, जो कि ऊँचाई से गिरने पर चीते की दहाड़ जैसी आवाज करता है। प्रकृति ने हमारे लिए कितना कुछ सृजित कर रखा है, और हम हैं कि अपनी चारदीवारी को लाँघना ही नहीं चाहते।
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