उत्तराखण्डी व्यजंन
स्वाद में मजेदार, पोष्टिकता से भरपूर सिंगोड़ी
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सिंगोरी |
उत्तराखण्ड की परम्पराएं एंव खान-पान प्रकृकिसम्मत हैं। यहां के रीति-रिवाज प्रकृति संरक्षक और खान-पान न सिर्फ स्वाद की दृष्टि से अच्छा है बल्कि पोष्टिकता से भी भरपूर हैं। इसी क्रम में उत्तराण्ड की लोक संस्कृति में रची-बसी सिंगोड़ी(सिंगोरी) मिठाई न सिर्फ स्वाद में मजेदार है बल्कि पोष्टिकता से भी भरपूर है। पहाड़ी पेड़ा के नाम से प्रसिद्ध इस मिठाई की शुरूआत कब और कैसे हुई इसका कोई नियत काल तो ज्ञात नहीं है परन्तु आम धारणा है कि इसकी शुरूआदी काल सातवीं-आठवीं सदी के आस-पास रहा होगा। कभी उत्तराण्ड में मिठाई की दुकानों में आमतौर पर सजने वाली मिठाई सिंगोरी भले ही अब प्रचलन कम हो गया हो परन्तु यदि उत्तराखण्ड में आकर आप ने सिंगोरी का स्वाद नहीं लिया तो उत्तराखण्ड की बेहतरीन मिठाईयों में सुमार शानदार मिठाई के स्वाद से अभी तक आप वंछित हैं। मालू के पत्तों के अन्दर ’पतबाड़ी’ के ढाल में ढली सिंगोरी एक तरह का पेड़ा है, जिसे पहाड़ी पेड़ा भी कहा जा सकता है। सिंगोरी की विशेषता यह है कि इसे बनाने के लिए नौ से दस घंटे तक मालू के पत्ते में लपेट कर रखा जाता है। इस कारण पत्ते की खुश्बू तथा गुण सिंगोरी में समाहित हो जाते हैं। यही इस मिठाई की विशेषता ह ैकि, इस में स्वादिष्टता के साथ-साथ पोष्टिकता का समावेश हो जाता है। सिंगोरी की यही विशेषता अन्य मिठाईयों से इसे अलग करती है।
सिंगोरी बनाने के लिए सामग्री
एक किलोग्राम खोया
एक कि.ग्रा. खोया के लिए 300 ग्राम चीनी
कद्दूकस किया नारियल -200 ग्राम
इलायची पाउडर -एक ग्राम
मालू के पत्ते
बनाने की विधि
एक कड़ाही में खोये को धीमी आंच पर चीनी डालकर पकांए, जब चीनी अच्छी तरह मिल जाए तो कद्दूकस किया हुआ नारियल और छोटी इलायची पाउडर डालकर मिला दें। 2 से 3 मिनट तक इसे भूनें अब आंच से मिश्रण को हटा दें।
तिकोने आकार में मालू के पत्ते को मोड़ कर सीख को इस प्रकार से लगाऐं कि तिकाना आकार बरकरार रहे। अब पत्ते के अन्दर खोया मिश्रण भर दें तथा 9 से 10 घंटे तक पत्ते में लपेट कर रखें जिससे मालू के पत्ते की खश्बू सिंगोरी मिठाई में समाहित हो जाए। आप की स्वादिष्ट, लाजबाब तथा पोष्टिकता से भरपूर मिठाई तैयार है।
उत्तराखण्डी व्यजंन
स्वाद में मजेदार, पोष्टिकता से भरपूर सिंगोड़ी
उत्तराखण्ड की परम्पराएं एंव खान-पान प्रकृकिसम्मत हैं। यहां के रीति-रिवाज प्रकृति संरक्षक और खान-पान न सिर्फ स्वाद की दृष्टि से अच्छा है बल्कि पोष्टिकता से भी भरपूर हैं। इसी क्रम में उत्तराण्ड की लोक संस्कृति में रची-बसी सिंगोड़ी(सिंगोरी) मिठाई न सिर्फ स्वाद में मजेदार है बल्कि पोष्टिकता से भी भरपूर है। पहाड़ी पेड़ा के नाम से प्रसिद्ध इस मिठाई की शुरूआत कब और कैसे हुई इसका कोई नियत काल तो ज्ञात नहीं है परन्तु आम धारणा है कि इसकी शुरूआदी काल सातवीं-आठवीं सदी के आस-पास रहा होगा। कभी उत्तराण्ड में मिठाई की दुकानों में आमतौर पर सजने वाली मिठाई सिंगोरी भले ही अब प्रचलन कम हो गया हो परन्तु यदि उत्तराखण्ड में आकर आप ने सिंगोरी का स्वाद नहीं लिया तो उत्तराखण्ड की बेहतरीन मिठाईयों में सुमार शानदार मिठाई के स्वाद से अभी तक आप वंछित हैं। मालू के पत्तों के अन्दर ’पतबाड़ी’ के ढाल में ढली सिंगोरी एक तरह का पेड़ा है, जिसे पहाड़ी पेड़ा भी कहा जा सकता है। सिंगोरी की विशेषता यह है कि इसे बनाने के लिए नौ से दस घंटे तक मालू के पत्ते में लपेट कर रखा जाता है। इस कारण पत्ते की खुश्बू तथा गुण सिंगोरी में समाहित हो जाते हैं। यही इस मिठाई की विशेषता ह ैकि, इस में स्वादिष्टता के साथ-साथ पोष्टिकता का समावेश हो जाता है। सिंगोरी की यही विशेषता अन्य मिठाईयों से इसे अलग करती है।
सिंगोरी बनाने के लिए सामग्री
एक किलोग्राम खोया
एक कि.ग्रा. खोया के लिए 300 ग्राम चीनी
कद्दूकस किया नारियल -200 ग्राम
इलायची पाउडर -एक ग्राम
मालू के पत्ते
बनाने की विधि
एक कड़ाही में खोये को धीमी आंच पर चीनी डालकर पकांए, जब चीनी अच्छी तरह मिल जाए तो कद्दूकस किया हुआ नारियल और छोटी इलायची पाउडर डालकर मिला दें। 2 से 3 मिनट तक इसे भूनें अब आंच से मिश्रण को हटा दें।
तिकोने आकार में मालू के पत्ते को मोड़ कर सीख को इस प्रकार से लगाऐं कि तिकाना आकार बरकरार रहे। अब पत्ते के अन्दर खोया मिश्रण भर दें तथा 9 से 10 घंटे तक पत्ते में लपेट कर रखें जिससे मालू के पत्ते की खश्बू सिंगोरी मिठाई में समाहित हो जाए। आप की स्वादिष्ट, लाजबाब तथा पोष्टिकता से भरपूर मिठाई तैयार है।
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