जिंदगी माँगती रहती है सांसो का हिसाब - TOURIST SANDESH

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गुरुवार, 28 नवंबर 2019

जिंदगी माँगती रहती है सांसो का हिसाब

जिंदगी माँगती रहती है सांसो का हिसाब

कवि कुंभ और बिंग वूमन की तरफ से मुशायरा का आयोजन

कवि कुंभ और बिंग वूमन की तरफ़ से देहरादून में प्रख्यात शायरा परवीन शाक़िर की याद में रंग-ए- परवीन शाक़िर के उन्वान से मुशायरा आयोजित किया गया और साथ ही प्रख्यात लेखिका शायरा रंजीता सिंह "फ़लक" की प्रथम पोथी शब्कवि कुंभ का लोकार्पण किया गया जिसमें दो सत्रों में कार्यक्रम हुए राष्ट्रीय और अंर्तराष्ट्रीय स्तर के मशहूर शायर /शायरा
कवि कवयित्री और स्थानीय साहित्यकारों ने शिरकत की महफ़िल के मुख्य अतिथि हिमालय ड्रग्स के चेयरमैन डॉ .एस. फारूख रहे कार्यक्रम के दोनों सत्र में सदारत फ़रमा इंदू कुमार पांडेय ने की ,गेस्ट ऑफ़ ऑनर दिल्ली से आई राशिदा बाक़ी हया शायदा रही ,विशिष्ट अतिथियो में उत्तराखंड हिंदी सहित्य समिति के अध्यक्ष डॉ राम विनय सिंह , एम डी डी ए चीफ अभियंता संजीव जैन "साज" , ब्रिगेडियर के.जी. बहल रहे .
आमंत्रित शायर/ शायरात में प्रशिद्ध शायरा राशिदा बाक़ी हया अलीना इतरत ,गजाला ख़ान , विवेक बादल "बाज़पुरी" ,पुष्पेंद्र पुष्प  कानपुर
देहरादून की मुकामी शायरा जस किरण चोपड़ा , मीरा नवेली , रंजीता सिंह "फ़लक़" रहीं

दोनो सत्रों का संचालन  ,रंजीता सिंह  फ़लक ने किया स्थानीय आमंत्रित साहित्यकारों में  नदीम बर्नी, रईस फ़िगार , राकेश जैन ,शोहर जलालाबादी,परवेज  गाजी ,शादाब  अली ,दर्द  गढवाली ,कविता  बिष्ट ,निकी ,और  अन्य  लोगों  ने किया .
आमंत्रित अथितियों में आर  के बख्शी ,रजनीश त्रिवेदी,एम  एल  सकलानी, गौरव कुमार , विश्वम्भर नाथ बजाज और अन्य गण मान्य लोग रहे l गंगाजमुना तहज़ीब की मिसाल पेश करती यह बज़्म देहरादून ने अपने आप में एक संदेश दे गई। किस तरह से अनेकता में एकता रखी जाए देहरादून की शांत वादियों में अमन व चैन का पैगाम रहा। शहर में साहित्य की खुशबू घोलने के इरादे से रखी गई यह शाम अपने आप में ऐतिहासिक रहा। हिंदी उर्दू व आंचलिक भाषा के प्रखर वक्ता महान हस्ताक्षर इस कार्यक्रम में समाज को भाईचारे का संदेश देने में कामयाब रहे।

रंजीता सिंह फ़लक
मौला मुझे इत्र सा महकने का हुनर दे
जिस सिम्त भी जाऊं खुश्बू सी बिखर जाऊं

गज़ाला खान
जिंदगी माँगती रहती है सांसो का हिसाब
कोई आराम नही मौत के आराम के बाद

राशिदा बाक़ी हया
जब टूटा तमन्नाओ का शीशा मेरे आगे ll
मेरा ही सरापा था जो बिखरा मेरे आगे ll

पुष्पेंद्र पुष्प
ख़ूब रोका ठगा खिजाँ ने क्या करें
हम बहारो के कहे में आ गए ll

अलीना इतरत
अभी तो चाक पे  मिट्टी  का रक़्स  जारी है ll
अभी कुम्हार ही नीयत बदल भी सकती है ll

विवेक बादल बाज़पुरी
बेटियों से गुरेज़ है जिनको
उनके आँगन ख़ुशी को तरसेंगे

जसकिरन चौपडा

कुछ लोग अब यहां के सुल्तान हो गये ll
उन्ही के हवाले ये शहर मेरा हो गया ll

ममता वेद
दर्द ए दिल तब भी था लेकिन तुम कभी न रोये
आज अश्को का समंदर क्यो बहाया तुमने ll

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