बुढ्या लोग बोझ नी हुआ करदा
- सुभाष चन्द्र नौटियाल
जब मनखी की उमर मनखी का जीवन की औसत आयु से अधिक ह्वै जांदी त मनखी मां बुढ़ापा की झलक दिखेण लग जांदी। बढ़ती उमर का साथ-साथ शरीर क्षीण हूण लग जांदू तथा शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी धीरा-धीरा घटण लग जांदी। रोग प्रतिरोधक क्षमता घटण का कारण शरीर मा रोग बढ़णैं की सम्भावना भी प्रबल ह्वै जांदी। शरीर बुढ्या होण की एक प्राकृतिक तथा स्वाभाविक घटना च। जू कि समय का साथ-साथ एक सतत् प्रक्रिया च।यदि विज्ञान की भाषा मा बुलै जावु त प्राणीमात्र कु शरीर असंख्य कोशिकाओं का समूह से बणू च। कोशिकाओं की उत्पन्न तथा नष्ट होण की प्रक्रिया जीवन भर सतत् रूप से चलणी रांदी। पुरणी कोशिका नष्ट ह्वै जांदी तथा वैका स्थान मा नयी कोशिका उत्पन्न ह्वै जांदी। सतत् प्रक्रिया होण का कारण कोशिकाओं मा सदा नयुपन बण्यूं रांद परन्तु समय का साथ-साथ जन्नी-जन्नी उमर बढ़ण लग जांदी, तन्नी-तन्नी नयी कोशिकाओं कू बणन कू क्रम कम होण लग जांदू जै का कारण मनखी का अंग धीरा- धीरा शिथिल पड़न लग जदन तथा काम करण की शक्ति भी घटण लग जांदी। धीरा-धीरा, बढ़दा-बढ़दा एक उमर इनी भी आंदी जब मनखी अपड़़ू नित्य क्रम करण मा भी असमर्थ ह्वै जांदू। बुढ़ापा का इना कठिन समय मा बुढ्या लोगों की उदरपूर्ति तथा नित्य क्रम का वास्ता दूसरा लोगूं कू सहारू लेण पड़दू।
मनखी समाज मा यू सदियों बटी चिन्तनीय प्रश्न रायी कि वृद्धावस्था मा बुढ्या लोगों थैं समाज मा बोझ नी समझे जाऊ बल्कि समाज या उंका द्वारा दियूं योगदान का वास्था उथैं उचित सम्मान प्रदान करै जाऊ ना कि उंकू तिरस्कार। उंकी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति तथा हर प्रकार की जरूरी सुविधाओं कू उचित प्रबन्ध करे जाऊ ताकि बुढ्या लोग भी एक सामान्य जीवन-बसर कर सकून। यू सवाल आज का वर्तमान समाज मा भी एक जटिल सवाल का रूप मा समाज का समणी आज भी खड़ू च। जैकू कि उचित समाधान करे जाणू अभी शेष चा। वर्तमान मा मनखी की औसत आयु मा भी आपेक्षित वृद्ध होण का कारण बुढ्या लोगों की संख्या मा प्रसार ह्वै जैका कारण निवास स्थान, उचित देखभाल, सुचारू व्यवस्था एक जटिल समस्या बणी गै। समाज मा परिवर्तन होण का कारण आज कू मनखी स्वयं मा इता ख्वैगी कि वै थैं आस-पास का घटनाक्रम से क्वी मतलब नी रैगी। स्वार्थ का समावेश होण का कारण आज की पीढ़ी बुढ़्या लोगों थैं समाज मा बोझ समझण लगगी। जैका कारण कई घरों मा रोज क्लेश होणू चा। अब समय एैगी कि बुढ्या लोगों थैं समाज मा उचित स्थान दिये जाऊ।
बुढ्या लोग समाज मा बोझ नी हुआ करदा, बल्कि बुढ्या लोग जौंकु अनुभव बड़ा काम कू होंदू जू कि जीवन की जटिलतम समस्याओं का समाधान का वास्ता बहुत ही आवश्यक होंदू। तभी बोले जांदू-
‘न सा सभा यत्र न सन्तिवृद्धा
व सभा, सभा नीं होंदी जैं सभा मा वृ( जनों की उपस्थिति नी होंदीवृद्ध अनुभवी जणा मा अपणी आयु का अनुभव तथा तजुर्बा का कारण सांसारिक परेशानियों थैं समझण तथा समाधान का वास्ता विशेष क्षमता होंदी। अपड़ा अनुभव तथा गहन समझदारी का बल पर बुढ्या लोग बड़ी से बड़ी समस्या कू आसान उपाय बताण की क्षमता रख दन। बोल्न कू मतलब यू च की बुढ़्या लोग समाज मा बोझ नी हुआ करदा। बल्कि जीवन का बगिया थैं सुन्दर बणाण का वास्ता त्याग, तपस्या तथा अनुभव की मूर्ति होंदन। जू भी मनखी अपणा दाना-सयाणा लोगों कू तिरस्कार करदू वै कि जीवन मा कभी भी भल्यार नी होंदी। वृ( जनों कू महत्व तथा समाज मा उपयोगिता थैं हृदय की गहराईयां से महसूस करी कि ठाकुर सुन्दर सिंह चौहान जी न पूर्वी तथा पश्चिमी नयार का संगम स्थल सतपुली ;जिला-पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखण्डद्ध मा एक वृ(ास्थल स्थापित करयुं च। चौहान जी की सेवाभाव तथा समाज का प्रति समर्पण जग जाहिर च । ठाकुर साहबन बतायी कि, जीवन मा व्यस्तता का कारण जू भी भै-बन्ध अपणा वृ(जनों की सेवा कन मा असमर्थ छन। उ सभी लोग अपणा वृ( जनों थैं यख भेज सकदन। उ चाहे गरीब होन या अमीर, कै भी धर्म, जाति, सम्प्रदाय, क्षेत्र का होन यख सभी लोगांं कू समान भाव से स्वागत च। उंकू वृद्धा श्रम कोटद्वार बटी 55 कि0मी0 तथा पौड़ी बटी 52 कि0मी0 की दूरी पर स्थित च। चौहान जी कू बोल्न च की जू लोग अपणा वृ( जनों की सेवा जाण-बूझी की नी करदा वू लोग देश-समाज का अपराधी छन। अतः अपणा दाना- सयाणा लोगों की सेवा पूरा मनोयोग सै करनी चैंदी। तभी देश-समाज तथा मनखी जाति कू हित ह्वै सकदू।
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