आस्था का प्रतीक माँ दुर्गा देवी मंदिर - TOURIST SANDESH

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शनिवार, 12 अक्टूबर 2019

आस्था का प्रतीक माँ दुर्गा देवी मंदिर

आस्था का प्रतीक माँ दुर्गा देवी मंदिर

माँ दुर्गा देवी का मंदिर,अपने नैसर्गिक सौंदर्य के लिए विश्व विख्यात खूबसूरत राज्य उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले के कोटद्वार और दुगड्डा के बीच वाले रास्ते में स्थित एक प्राचीन एवम् लोकप्रिय मंदिर है | यह मंदिर एक गुफा के अंदर स्थित है और देवी दुर्गा को समर्पित है , मंदिर को प्राचीनतम सिद्धपीठों में से एक माना जाता है | दुर्गा देवी मंदिर , कोटद्वार शहर से,कोटद्वार-पौड़ी राष्ट्रीय राजमार्ग पर लगभग 12 कि.मी. की दूरी पर समु्द्रतल से 600 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।विशेषता की बात यह है कि,यह मंदिर कोटद्वार शहर के और सेवित क्षेत के लोगों के लिए पूजा -अर्चना करने के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान है | माँ दुर्गा देवी का मंदिर बड़े ही खूबसूरत ढंग से कोटद्वार -दुगड्डा सड़क मार्ग के पास एक पहाड़ी की तिरछी जगह पर निर्मित है |पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस पहाड़ी में माँ दुर्गा  प्रकट हुई थी।तभी मंदिर का अस्तित्व सामने आया था। आधुनिक मन्दिर सड़क के पास स्थित है परन्तु प्राचीन मन्दिर ,आधुनिक मन्दिर से थोड़ा सा नीचे लगभग 12 फीट लम्बी गुफा में स्थित है , जिसमें एक शिवलिंग स्थापित है | नवरात्रि तथा अन्य कई मौकों पर बहुत दूर-दूर से आस्थावान भक्त / पर्यटक माँ देवी दुर्गा का आशीर्वाद लेने आते हैं।भक्तों का मानना है कि ,देवी दुर्गा अपने भक्तों की सभी इच्छाओं को पूरा करती है । लोग आस्था और विश्वासस्वरूप पारिवारिक सुख-समृद्धि और खुशहाली के लिए मंदिर में दर्शनार्थ आते हैं और लाल चुनरी भी बांधते हैं।यहां एक भब्य एवं आकर्षक छोटी सी गुफा है,इस गुफा को देखते ही भक्तजन आनंदित होने लगते हैं। इस गुफा में माँ दुर्गा के दर्शन के लिए भक्तों को लेट कर अथवा काफी झुककर जाना पड़ता है | माँ दुर्गा देवी के इस बेहतरीन मंदिर के सम्बन्ध में कई चमत्कारिक कहानियां पुजारियों तथा स्थानीय लोगों द्वारा बताई जाती हैं।इस मंदिर में देवी माँ की एक प्रतिमा है और अन्दर एक ज्योति है , जो कि सदैव जलती रहती है। लोग यह भी कहते हैं कि कई बार माँ दुर्गा का वाहन “शेर” मंदिर में आकर देवी दुर्गा के दर्शन कर बड़े ही शांत भाव से अपने गंतव्य स्थान को लौट जाता है। दुर्गा देवी मंदिर के निर्माण में भी एक रोचक कथा छुपी हुयी है | कहा जाता है कि ,मंदिर प्राचीन समय में बहुत छोटे आकर में हुआ करता था किन्तु दुगड्डा- कोटद्वार के बीच सड़क निर्माण कार्य में व्यवधान आने पर ठेकेदार द्वारा अच्छे ढंग से मंदिर की स्थापना की गई तो कार्य तेजी से संपन्न हुआ | कुल मिलाकर यदि देखा जाय तो इस मंदिर की लोकप्रियता सैलानियों/पर्यटकों तथा आस्थावान भक्तों के लिए बहुत मायने रखती है।हम सभी बस यही चाहते हैं कि लोग इन पौराणिक स्थानों पर आयें प्रकृति की सुरम्य और रमणीक वादियों में आकर घूमें और अपनी सभ्यता तथा संस्कृति से जुड़े रहें और मानवता के इस आंगन में एकता की सहस्त्रधारा प्रवाहित करते रहें।हम सभी लोगों का यह दायित्व बनता है कि,हम लोग अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत की इन धरोहरों के आस-पास के वातावरण को स्वच्छ और स्वस्थ रखने में अपना योगदान देने का समय-समय पर प्रयास करते रहें,अपने रिस्तेदारों,सगे संबंधियों,नजदीकी लोगों ,विद्यालयों में अध्ययनरत विद्यार्थियों को भी अपने आस-पास स्वच्छता,वृक्षारोपण, जलसंकट संबंधी बारीकियों और उनके क्रियान्वयन से संबंधित बातों से हर समय अवगत कराते रहें।मंदिरों और अन्य धार्मिक स्थानों, सार्वजनिक जगहों पर जो गंदगी व कूड़े के ढेर,प्लास्टिक की बोतलों के ढेर इत्यादि पड़े रहते हैं इन सभी पर पूर्णतः अंकुश लगाने का प्रयास अपने-अपने स्तर से करते रहें।इनके उचित ढंग से निस्तारण की व्यवस्था पर भी विशेष ध्यान देने की कोशिश करें।तभी हम सभी गंदगी के कारण होने वाले रोगों और बीमारियों से अपने आप को और आस-पास के लोगों को बचा सकेंगे साथ ही एक स्वच्छ, स्वस्थ और मजबूत समाज का निर्माण करने में सक्षम हो सकेंगे।   प्रस्तुति-- ----------राजीव थपलियाल, सहायक अध्यापक(गणित), राजकीय आदर्श प्राथमिक विद्यालय सुखरौ देवी कोटद्वार, पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड

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