हॉकी के जादूगर -मेजर ध्यानचंद - TOURIST SANDESH

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बुधवार, 28 अगस्त 2019

हॉकी के जादूगर -मेजर ध्यानचंद

हॉकी के जादूगर -मेजर ध्यानचंद

राजीव थपलियाल

                                                      (खेलदिवस पर विशेष

29 अगस्त को,भारत वसुंधरा की एक महान हस्ती हॉकी के जादूगर -मेजर ध्यानचंद का जन्म सन 1905 में इलाहाबाद(प्रयागराज) के राजपूत घराने में हुआ था।समूचे विश्व में ध्यानचंद को फुटबॉल में पेले और क्रिकेट में ब्रैडमैन की बराबरी का दर्जा दिया जाता है और उनका नाम बड़े आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है। अपने हुनर के अनुरूप खेल के मैदान में जब वे हॉकी लेकर  उतरते थे तो गेंद इस तरह उनकी स्टिक से चिपक जाती थी मानो वे किसी जादू की स्टिक से हॉकी खेल रहे हों। दूर से बैठकर मैच देखने वालों को तो ऐसा जादुई करतब देखकर बड़ा आनंद आता था। एक बार तो हॉलैंड में एक मैच के दौरान हॉकी में चुंबक होने की आशंका में उनकी स्टिक तोड़कर देखी गई और तो और जापान में एक मैच के दौरान उनकी स्टिक में गोंद लगे होने की बात भी कही गई। बस यही तो कमाल की बात थी हमारे देश के इस जादूगर में जिसकी वजह से लोग अचरज भरी निगाहों से उनके खेल को देखते थे,ध्यानचंद ने हॉकी में जो कीर्तिमान बनाए, उन तक आज भी कोई खिलाड़ी नहीं पहुंच सका है। शायद इसके लिए खिलाड़ियों को भगीरथ प्रयास करने होंगे।ध्यानचंद के बचपन में खिलाड़ीपन के कोई विशेष लक्षण दिखाई नहीं देते थे। इसलिए यह कहने में तनिक भी संकोच नहीं है कि ,हॉकी के खेल की प्रतिभा उनके अंदर जन्मजात नहीं थी, बल्कि उन्होंने इसको निरंतर साधना, अभ्यास, लगन,निष्ठा, संघर्ष और संकल्प के सहारे प्राप्त किया।जिसके कारण उन्हें सारे विश्व में प्रतिष्ठा मिली।ध्यानचंद अपनी प्रारंभिक शिक्षा के बाद 16 साल की उम्र में साधारण सिपाही के तौर पर सेना में भर्ती हो गए। जब ‘फर्स्ट ब्राह्मण रेजीमेंट‘ में भर्ती हुए उस समय तक उनके मन में हॉकी के प्रति कोई विशेष दिलचस्पी या अभिरुचि नहीं थी। ध्यानचंद को हॉकी खेलने के लिए प्रेरित करने का मुख्य श्रेय उनकी रेजीमेंट के एक सूबेदार मेजर साहब तिवारी को जाता है। चूंकि मेजर तिवारी स्वंय भी हॉकी प्रेमी और अच्छे खिलाड़ी थे तो उनके सानिध्य में रहकर ध्यानचंद हॉकी खेलने लगे और देखते ही देखते वह दुनिया के एक महान खिलाड़ी बन गए।इसीलिये तो पूरा विश्व आज इस खिलाड़ी का हॉकी के खेल के प्रति समर्पण के भाव का कायल है। उनकी हॉकी की जादूगरी को देखकर तो जर्मनी के तानाशाह शासक  हिटलर ने उन्हें जर्मनी की तरफ से हॉकी खेलने की पेशकश कर दी थी। यदि हम उस दौर के आंकड़ों पर अपनी नजर डालें तो पाते हैं कि,ध्यानचंद ने तीन ओलिम्पिक खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व किया तथा तीनों बार देश को स्वर्ण पदक दिलाया। भारत ने 1932 में 37 मैच में 338 गोल किए, जिसमें 133 गोल ध्यानचंद ने किए थे। दूसरे विश्व युद्ध से पहले ध्यानचंद ने 1928 (एम्सटर्डम), 1932 (लॉस एंजिल्स) और 1936 (बर्लिन) में लगातार तीन ओलिंपिक में भारत को हॉकी में स्वर्ण पदक दिलवाये। भारत के प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान पद्मभूषण से सम्मानित ,हॉकी के क्षेत्र में प्रतिष्ठित सेंटर फॉरवर्ड खिलाड़ी  ध्यानचंद ने 42 वर्ष की उम्र तक हॉकी खेलने के बाद सन 1948 में हॉकी से संन्यास ले लिया।कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी को काफी लंबे समय तक झेलते हुए वर्ष 1979 में मेजर ध्यानचंद का देहावसान हो गया। आज के इस शानदार ,राष्ट्रीय खेल दिवस के मौके पर हिंदुस्तान की शान रहे बेहतरीन,दमदार हॉकी खिलाड़ी को हमारा कोटि-कोटि नमन।                                                  
(लेखक सहायक अध्यापक (गणित), राजकीय आदर्श प्राथमिक विद्यालय सुखरौ देवी कोटद्वार,पौड़ी गढ़वाल,उत्तराखंड हैं )

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