बिन जल कैसे आयेगा कल ?
सुभाष चन्द्र नौटियाल
जल बह्म है, जल में ही सर्वप्रथम जीवन की उत्पत्ति मानी जाती है। जल ही सजीवों में आत्मसत्ता को निरूपित करता है। सनातन धर्म वैदिक संस्कृति में प्रथम मत्स्य अवतार की उत्पत्ति भी जल में ही मानी गयी है। जल से ही अन्न पैदा हो सकता है तथा वायु,जल और अन्न जीवन की सजीवता के लिए आवयश्क माना गया है। धरती पर कोई भी प्राणी तभी सप्राण माना जाता है जब वह वायु,अन्न तथा जल से पोषित हो। सनातन धर्म वैदिक संस्कृति में पंच महा भूतों (पृथ्वी, जल, आकाश, वायु, अग्नि ) में जल प्रधान तत्व है। सम्पूर्ण पृथ्वी के दो तिहाई भाग जल से आछादित है फिर भी धरती में सिर्फ तीन प्रतिशत जल ही पीने योग्य है। इसी से धरती के मानव को जल की महत्ता का आभास होता है।जल की इसी महत्ता को समझते हुए हमारे ऋषि-मुनियों ने वैदिक साहित्य में जल के विषय में विस्तार से वर्णन किया गया है। वेदों में जल को जीवनदायक, अभीष्ट साधक, शुचिता प्रदायक, परम सुखकारक, रोगनिवारक, कल्याणकारक, शीतलतादायक, शान्तिप्रदायक तथा मोक्षकारक कहा गया है। चारों वेदों में बीस हजार मंत्रों में से दो हजार मंत्र जल एवं जल से सम्बन्धित देवताओं के हैं। इसके साथ ही उपनिषदों, पुराणों तथा सभी धार्मिक साहित्य में जल की महत्ता को स्वीकार किया गया है। हमारे नित्य, नैमित्तिक, प्रायश्चित एंव उपासना आदि सभी कार्यो में जल की अनिवार्यता को स्वीकार किया गया है। शुद्विकरण से लेकर विसर्जन तक जल आवश्यक माना गया है। जल की इसी महत्ता को स्वीकार करते हुए कविवर रहीम ने लिखा - रहिमन पानी राखियो, बिन पानी सब सून। जल को प्रलयकारी भी माना जाता है। यानि कि सृष्टि का आरम्भ भी जल है तथा सृष्टि की समाप्ति कारक भी जल से ही है। बिन जल के सृष्टि में कल सम्भव नहीं है। भारतीय दर्शन में जल की महत्ता के कारण ही नदियों को जीवनदायनी मॉं की संज्ञा दी गयी है। भारत की आधी आबादी को अन्न-जल से पोषित करने तथा औषधीय गुणों से भरपूर होने के कारण सभी नदियों में श्रेष्ठ गंगा नदी को नदियों की मॉं के रूप में स्वीकार किया गया है। गंगा मैया तेरा पानी अमृत की सूक्ति भी जीवनदायनी मॉं गंगा का वैभवशाली स्वरूप तथा महत्ता को प्रकट करता है। भारतीय दर्शन में जल की महत्ता को स्वीकार करने के बाद भी बिडम्बना ही कही जायेगी कि आज आधुनिक मानव कहलाने के चक्कर में हमने अपनी पम्पराओं को खो दिया है। जल पूजक होने के बावजूद भी हमने अपने जल स्रोतों को इतना प्रदूषित कर दिया है कि आज इनका जल पीने योग्य नहीं रह गया है। एक ओर जल त्राहि-त्राहि का कारण बन रहा है तो, दूसरी ओर जल तबाही का कारण भी बन कर मानव बिनास कर रहा है। स्पष्ट है कि, मानवीय भूलों के कारण जो असन्तुलन पैदा हुआ है वह जल त्राहि और जल तबाही के रूप में प्रकट हो रहा है। यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार देश का सत्तर प्रतिशत जल हमारी गलत नीतियों के कारण प्रदूषित हो चुका है। देश के साढ़े सात करोड़ लोग आज साफ पेयजल के लिए तरस रहे हैं। भूजल स्तर में निरन्तर गिरावट आ रही है। अगले बीस सालों में यह स्तर लगभग चार मीटर नीचे गिर जायेगा। नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार देश गम्भीर जल संकट के दौर से गुजर रहा है। देश के साठ करोड़ लोग जबरदस्त जल संकट से जूझ रहे हैं। देश में हर साल दो लाख लोग साफ पीने का पानी उपलब्ध न होने के कारण जान गंवा देते हैं। देश का सत्तर फीसदी जल प्रदूषित हो चुका है। सन 2020 तक दिल्ली, बंगलुरू सहित देश के इक्कीस बड़े शहरों से भूजल गायब हो जायेगा। तस्वीर साफ बंया कर रही है कि हालात बद से बदत्तर हो चुके हैं। उपाय किये जाने की आवश्यकता है। परम्पागत जल संरक्षण नीति को अपनाकर जल संकट से निजात पायी जा सकती है। उत्तराखण्ड में खाल-चालों तथा मैदानों में कुवों, तलाबों आदि को पुनर्जीवित करना होगा। बर्षा जल संचयन के लिए व्यापक अभियान चलाने की आवश्यकता है। भूमिगत जल स्तर को बढ़ाने के लिए रेन वाटर हार्वेसि्ंटग पर जोर देने की आवश्यकता है। शहरों, गांवों में वर्षा जल संचयन के लिए पैटर्न तैयार करने की आवश्यकता है। पानी के अपव्यय तथा लीकेज को रोकने के लिए व्यापक स्तर पर कार्य करने की आवश्यकता है। एक-एक बूंद पानी को बचाने के लिए सामूहिक भागीदारी की आवश्यकता है। इसके लिए व्यापक राष्ट्रीय अभियान की आवश्यकता है। हम सभी को राष्ट्र हित में जल संरक्षण अभियान का हिस्सा बनने की आवश्यकता है तभी जल संरक्षित हो पायेगा। आज के जल संरक्षण से ही हमारा आने वाला कल सुरक्षित रह पायेगा। आओ जल संरक्षण करें तथा अपना कल सुरक्षित बनायें।
Very nice nautical j. Water conservation is need of today. You and bhai Sundriyal j feel good is working pn the concept of JAL PRAHARI. KEEP IT UP. WD U PEOPLE
जवाब देंहटाएंRAKESH MOHAN DHYANI.