भैरवगढ़ी - TOURIST SANDESH

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सोमवार, 28 जनवरी 2019

भैरवगढ़ी

भैरवगढ़ी : जहां बसते हैं भय नाशक काल भैरव

सुभाष चन्द्र नौटियाल

प्रतिम प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण उत्तराखण्ड भगवान शंकर की भूमि मानी जाती है। यहां कंकर-कंकर में शंकर का वास माना गया है। देवत्व के कारण ही भारत भूमि का यह भू-भाग देवभूमि के नाम से सम्बोधित किया जाता है। इस देवभूमि में कल्याणकारी भगवान शिव के मंदिर पग-पग पर स्थित है। जनपद पौड़ी गढ़वाल के जयहरीखाल विकासखण्ड के अन्तर्गत गढ़वाल राइफल्स मुख्यालय लैंसडोन से 17 किलोमीटर की दूरी पर राजखील गांव की पहाड़ी पर स्थित भैरवगढ़ी मंदिर है। मंदिर पहुंचने के लिए कीर्तिखाल तक मोटर मार्ग है। कीर्तिखाल मण्डल मुख्यालय पौड़ी से 77 किमी. तथा कोटद्वार से वाया गुमखाल 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मान्यता है कि भैरवगढ़ी मंदिर भयनाशक काल भैरव का है। काल भैरव रूद्र के पांचवे अवतार माने जाते हैं। भैरव का अर्थ भय का हरण करने वाला होता है। जहां एक ओर काशी में भैरव नाथ को काशी का कोतवाल माना जाता है तो वहीं देवभूमि में भैरवनाथ को द्वारपाल के रूप में मान्यता है। भय नाशक काल भैरव भैरवगढ़ी में अपने भक्तों का भय हरने के लिए विराजमान हैं। आस-पास के 84 गांवों के देव द्वारपाल काल भैरव राजखील की पहाड़ी पर स्थित हैं। भैरव के अनुयायी-साधक आज भी काल भैरव की साधना करने तथा सिद्धि हासिल करने के लिए भैरवगढ़ी आते हैं। समुद्रतल से लगभग 1800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह स्थान बहुत ही रमणीक है। यहां से चारों ओर को खूबसूरत नजारे देखे जा सकते हैं। साथ ही यहां से हिमालय पर्वत श्रृंखला की मनोहारी दृश्य बहुत ही सुंदर प्रतीत होता है। गढ़वाल के द्वारपाल काल भैरव को मण्डवे का रोट प्रसाद के रूप में स्वीकार्य है।

भैरवगढ़ी का अपना एक ऐतिहासिक महत्व भी रहा है। गढ़वाल के 52 गढ़ों में भैरवगढ़ी भी एक गढ़ रहा है। तब इसका वास्तविक नाम लंगूरगढ़ या आज भी कुछ स्थानीय लोग इस लंगूर गढ़ी के  नाम से जानते हैं। सन् 1790 में कुमाऊं जीत से उत्साहित गोरखा फौज ने 1791 में लंगूरगढ़ पर आक्रमण कर दिया। महाबगढ़ तथा लंगूर गढ़ के गढ़पति असवालों ने गोरखाओं के इस हमले को विफल कर दिया। लगातार दो बर्षों 1793 तक गोरखा सेना ने लंगूरगढ़ पर घेराबंदी की परन्तु उन्हें सफलता न मिल सकी। आखिरकार 28 दिनों के युद्ध के पश्चात् गोरखा सेना को वापसी कूच के लिए मजबूर होना पड़ा था लंगूरगढ़ में भैरव की महिमा को देखते हुए गोरखा सेनापति अमर सिंह थापा ने 1793 में भैरवगढ़ी में ताम्रपत्र भैरवनाथ को अर्पित किया था। इस ताम्रपत्र का वजन एक मन (40 किलो) है। गढ़वाल के आदि द्वारपाल भैरवनाथ, भैरवगढ़ी में भैरव गुमटी के स्थित है। गुमटी के बाहर बायें हिस्से में शक्तिकुण्ड स्थापित है। मनोकामना पूर्ण होने पर भैरव भक्तों द्वारा यहां श्रद्धा अनुसार चांदी के छत्र चढ़ाये जाते हैं। भैरव में आस्थावान श्रद्धालु भक्तजन यह नित्य पहुंचते है। भय नाशक काल भैरव आस्थावानों के भय हरने के लिए भैरवगढ़ी की सुन्दरतम् पहाड़ी में वास करते हैं।

कब आएं ?

वैसे तो यह मंदिर वर्ष भर यात्रियों के लिए खुला रहता है परन्तु विशेष तीज-त्यौहार पर इस मंदिर में रौनक देखने लायक है। प्राकृतिक दृश्यों को निहारने तथा कैमरों में कैद करने के लिए भी यह स्थान आर्दश माना जा सकता है।

कैसे पहुंचे ?

भैरव गढ़ी देश के सभी स्थानों से सीधे जुड़ा हुआ है
निकटतम हवाई अड्डा जौलीग्राण्ट (देहरादून)
निकटतम रेलवे स्टेशन - कोटद्वार
प्रमुख स्थानो से दूरी
    देहरादून से 180 किमी.
    कोटद्वार से 40 किमी.
    पौड़ी से 77 किमी.

    दिल्ली से 257 किमी.

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