लघु सामाचार पत्रों की आवाज सुने सरकार - TOURIST SANDESH

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सोमवार, 24 दिसंबर 2018

लघु सामाचार पत्रों की आवाज सुने सरकार

 लघु सामाचार पत्रों की आवाज सुने सरकार

उत्तराखण्ड राज्य बने 17 साल पूर्ण हो चुके हैं यह विडम्बना की कही जायेगी की जिन उद्देश्यों के लिए उत्तराखण्ड राज्य का निर्माण किया गया है वह अब नेपथ्य में चले गये हैं। राज्य में ज्ञान धाराओं की स्रोत लघु समाचारों पत्रों के लिए राज्य सरकार द्वारा अभी तक कोई स्पष्ट नीति का न बन पाना इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। मध्य हिमालयी क्षेत्र से निकलने वाले लघु समाचार पत्र वास्तव में हिमालय की धड़कन रहे हैं। हिमालयी ग्राम्य संस्कृति के प्रबल पक्षधर यहां के लघु समाचार पत्रों ने ही पर्यावरण संरक्षण की अलख पूरे विश्व में जगायी है। इन पत्रों के कारण ही आज विश्व में मानवता जीवित है। जिस तरह हिमालय की असंख्य जल धारायें निकल कर विश्व में समस्त जीव धारियों का पोषण करती है ठीक उसी प्रकार यहां से प्रकाशित होने वाले लघु समाचार पत्र भले स्थानीय स्तर पर प्रसारित होते हों परन्तु इसमें प्रकाशित होने वाली विषय सामाग्री विश्वव्यापी तथा विशालता लिए हुए है। पर्यावरण संरक्षण में मानसिक प्रदूषण सबसे अधिक बाधक साबित हुआ है। मानसिक प्रदूषण वास्तव औधौगिक विकासवाद की देन है। विकासवाद की नई परिभाषा ने बाजारवाद को जन्म दिया है। बाजारवाद ने जहां भोग और विलासिता को जन्म दिया है वहीं दूसरी ओर उन्माद को चरम पर पहुंचाया है। यहां से प्रकाशित समाचार पत्रों ने समय-समय पर दुष्प्रवृत्ति से मानव को सदा अगाह किया है, दुःखद है कि, संरक्षण के अभाव में राज्य में इस समय लघु समाचार पत्र निरन्तर बन्धी के कगार पर हैं। लघु समाचार पत्रों के लिए राज्य तथा केन्द्र सरकारों की स्पष्ट नीति के अभाव में आंचलिक ज्ञान-धारायें संरक्षण के अभाव में उसी प्रकार सिकुड़ रही हैं जिस प्रकार हिमालयी क्षेत्रों से मूल जल स्रोत सिकुड़ रहे हैं। भारत में नब्बे के दशक के बाद बढ़ते बाजारवाद, उदारवाद, समाचार पत्रों में कॉरपोरेट घरानों का बढ़ता हस्तक्षेप तथा बढ़ती वैश्विक लालच की प्रवृत्ति ने इन ज्ञान धाराओं को गहरा आघात दिया है। इसी आघात के कारण अनेक ज्ञान धारायें काल-कलवित हो चुकी हैं। इस समय सरकार की बेरूखी के कारण आंचलिक पत्र-पत्रिकाओं पर संकट के गहरे बादल छाये हुए हैं। समाचार-पत्रों का प्रकाशन तो दूर उन्हें इस समय रोजी- रोटी के लिए भी गहन संघर्ष करना पड़ रहा है। केन्द्र तथा राज्य सरकारों की बेरूखी तथा प्रकाशन के लिए पूंजी न जुटा पाना इनके लिए सबसे बड़ी बाधा बनता जा रहा है। यदि उत्तराखण्ड के सम्बन्ध में बात की जाए तो यहां ज्ञान धाराओं का उदय अनादि काल से रहा है। इस सिद्ध क्षेत्र में अनादि काल से श्रेष्ठतम ज्ञान का प्रवाह रहा है। इसी मध्य हिमालयी क्षेत्र से सर्वप्रथम वेदों की रचना प्रारंभ हुई यह क्षेत्र अनादि काल से ही ज्ञान धाराओं का प्रवाह क्षेत्र रहा है। इसी मध्य हिमालयी क्षेत्र में समय-समय पर अनेक ऋषि-मुनियों ने अपनी साधना से इस क्षेत्र का पवित्र किया है इसीलिए यह सिद्ध क्षेत्र देवभूमि/तपोभूमि कहलाया है।
‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की उक्ति को हृदय में धारण करने वाले इस क्षेत्र के प्रभाव के कारण ही ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ का संदेश निरन्तर इस क्षेत्र से सम्पूर्ण विश्व में प्रवाहित होता रहता है। हमारा राष्ट्र यदि सम्पूर्ण विश्व में श्रेष्ठ ज्ञान का दाता बन पाया है तो वह इसी सिद्ध क्षेत्र के कारण संभव हो पाया है। वेदवाणी का सम्पूर्ण सृष्टि में गुंजायमान करने वाला यह क्षेत्र वास्तव में अध्यात्म का केन्द्र रहा है। इस क्षेत्र के देवत्व प्रभाव के कारण ही हमारा राष्ट्र विश्व गुरू कहलाया है। बढ़ते भौतिकवाद, लोभ, लालसा ने वर्तमान समय में इस क्षेत्र को प्रदूषित किया है। मानसिक प्रदूषण के कारण आसुरी प्रवृत्ति में बढ़ोत्तरी हुई है जिसके कारण यहां का देव साहित्य जो कि लघु समाचार पत्रों के रूप में प्रवाहित होता है निरन्तर सिकुड़ रहा है, यह भी आश्चर्य ही है देवभूमि की संस्कृति, परम्पराओं तथा उच्च मानवीय गुणों का आत्मसात् करने के लिए उत्तराखण्ड का गठन किया गया है परन्तु विडम्बना ही कही जायेगी कि, वर्तमान में समय में सूचना एवं लोक सम्पर्क विभाग का 99 फीसद बजट कारपोरेट घराने के समाचार पत्रों तक सीमित हो चुका है। यहां का स्थानीय समाचार पत्रों का प्रकाशक स्वयं की आजीविका के लिए तरस रहा है तथा सरकार केवल कॉरपोरेट घरानों के समाचार पत्रों को पोषित करने में लगी हुई है। नकारात्मक समाचारों को प्राथमिकता देने वाले यह समाचार पत्र (प्रिंट मीडिया/इलैक्ट्रॉनिक मीडिया) वास्तव में इस क्षेत्र की संस्कृति को बुरी तरह दूषित कर रहे हैं। एक ओर लघु समाचार पत्रों के स्वामी बुरी तरह शोषित हैं तो दूसरी ओर कॉरपोरेट घरानों के समाचार पत्र (प्रिंट मीडिया/इलैक्ट्रॉनिक मीडिया) इस राज्य में अपसंस्कृति के बीज बो कर जहर घोलने का कार्य कर रहे हैं। जिसके कारण काम, क्रोध, राग, द्वेष, भय तथा अतिविलासिता जैसी आसुरी प्रवृत्तियों समाज में निरन्तर बढ़ रही हैं। देवभूमि में आसुरी प्रवृतियों के बढ़ने के कारण देवत्व सिकुड़ रहा है। बड़े घरानों के इसी मीडिया के बढ़ते जहर के कारण ना सिर्फ इस क्षेत्र  में बल्कि सम्पूर्ण राष्ट्र में अमानवीय घटनायें निरन्तर बढ़ रही हैं। समाचारों के विद्वेषपूर्ण प्रसारण के कारण ही समाज में भ्रान्तियां तथा अविश्वास बढ़ रहा है। इसी विद्वेषपूर्ण वातावरण के कारण आज सम्पूर्ण विश्व में आसुरी प्रवत्तियों का ताडण्व देखने को मिल रहा है। वास्तव में इसके लिए मीडिया की बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। लघु समाचार पत्रों के रूप में मध्य हिमालयी क्षेत्र से बहने वाली यह सूक्ष्म ज्ञान धाराओं किसी भौगोलिक सीमाओं की मोहताज नहीं है, बल्कि अखिल ब्रह्माण्ड में सतत् प्रवाह के लिए ही हैं। विश्व कल्याण से ओत-प्रोत यह ज्ञान धाराऐं ना सिर्फ प्रकृति सम्मत हैं बल्कि सम्पूर्ण मानव के लिए जीने का दिशा निर्देश भी हैं। जिस प्रकार हिमालय से निकलने वाली जल धारायें सम्पूर्ण विश्व का पोषण करती है, उसी प्रकार यहां से प्रकाशित होने वाले आंचलिक पत्र-पत्रिकाएं ज्ञान का श्रेष्ठतम स्रोत हैं। राज्य तथा केन्द्र सरकारों की बेरूखी के कारण यह ज्ञान धाराएं निरन्तर अलोप होती जा रही है। स्वच्छंद ज्ञान के प्रवाह में बाधक सरकारी नीति सतत् ज्ञान प्रवाह में निरन्तर बाधायें उत्पन्न कर रही हैं। राज्य तथा केन्द्र सरकार की जिम्मेदारी है कि, उन बाधाओं को दूर कर लघु समाचार पत्रों को संरक्षण प्रदान किया जाए ताकि इस क्षेत्र की अमूल्य धरोहर को सहेज कर रखा जा सके। लघु समाचार पत्रों की आवाज को महसूस करते हुए राज्य/केन्द्र सरकार को तुरन्त कदम उठाने की आवश्यकता है अन्यथा बहुत देर हो चुकी होगी। 

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