जात न पूछो साधु की
राम लला हम आयेंगे मंदिर वहीं बनायेंगे से शुरू हुई यह यात्रा सब को परखा बार-बार हमको परखो एक बार से होते हुए सत्ता का स्वाद चखने के बाद इंडिया शायनिंग के रसताल में डूबते हुए अच्छे दिन आयेंगे का सफर तय करते हुए अब यात्रा भगवान की जाति चालीसा तक आन पहुंची है। गिरवासी हैं, दलित हैं, बनवासी हैं, वंछित हैं, आदिवासी हैं, ब्राह्मण हैं, नहीं-नहीं वे सिर्फ आर्य जाति के हैं। रामभक्त हनुमान कौन सी जाति के हैं इस पर बहसों का दौर निरन्तर जारी है और शायद लोकसभा चुनाव 2019 तक जारी रहने की उम्मीद है। शब्द बाणों से कौतुहल पैदा कर राजनीति करने की यही भारतीय विद्या है जिसमें कुछ भारतीय नेताओं ने महारत हांसिल कर ली है। यही नेता कभी हनुमान जी को दलित बताकर राजनीति के पटल पर छा जाते हैं तो कभी आर्य बनकर राजनीति की नई परिभाषा गढ़ते हैं। चुनाव बाजों ने हनुमान जी को चुनावी दलदल में घसीटते हुए नयी-नयी, परिभाषायें बनाना शुरू कर दिया है। हनुमान जी को कभी दलित, कभी वंचित, कभी वनवासी तो कभी आर्य बताकर जाति चालीसा के ज्ञान का बांटने का कार्य देश में जारी है। भारतीय राजनीति के क्षितिज पर चुनाव आते ही जाति चालीसा का उदय हो चुका है ऐसा नहीं कि भारत में चुनावों के समय जाति चालीसा का गुणगान पहली बार किया जा रहा हो ऐसा हरबार हर चुनावों में किया जाता रहा है परन्तु इस बार भगवान का भी जाति विभाजन किया जा रहा है, यह नई बात है। इसी जाति चालीसा के दम पर पहले भी कई क्षत्रप राज कर चुके हैं। भले ही आज उन में से कुछ हासिये पर खड़े हों परन्तु भगवान के जातिगत विभाजन के बाद एक बार पुनः उनकी बांछे खिल गयी हैं। जैसे भारत के कुछ प्रगतिशील प्रबुद्ध जन इसका उदय काल मनुस्मृति को मानते हैं तथा अपनी राजनीति को चमकाने के लिए दिन-रात पानी पी-पी कर मनुवाद को कोसते हैं। भले ही यह उन लोगों की करिस्तानी है जिन लोगों ने मनुस्मृति को कभी पढ़ा ही नहीं फिर भी उन्हें मनुवाद में दोष ही नजर आता है।अभी कल की ही बात है जब फुरकी भुला का फोन आया तो राजी-खुशी पूछने के बाद फुरकी भुला बोला भाई साहब आप कौन सी जाति के हो? आप की जाति क्या है? मैं बोला भुला आप तो सब जानते हो फिर भी आज अचानक जाति की बात क्यों? फुरकी बोला भाई साहब भारतीय राजनीति में जाति चालीसा की नयी खोज हुई हैं। इस खोज को आगे बढ़ाने के लिए कुछ ऐसे खोजकर्त्ताओं की आवश्यकता है जो प्रत्येक भगवान की जाति खोज सके। प्रत्येक खोजकर्त्ता को अच्छा खासा नगद अनुदान दिया जायेगा तथा साथ ही राष्ट्रीय पार्टी में शामिल होने का सुनहरा अवसर भी प्रदान किया जायेगा। परन्तु मैं बोला भुला ऐसी कोई योजना मेरे संज्ञान में नहीं है और यदि होती भी तो मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं है। वर्तमान में केन्द्र में साढ़े चार साल से अधिक शासन करने के बाद गहन मन्थन प्रक्रिया के उपरान्त प्रभु जाति चालीसा की नई खोज हुई है,इस के मुख्य सूत्रधार योगी जी हैं। संत् कबीर कहा करते थे कि, जात न पूछे साधु की पूछ लीजिए ज्ञान परन्तु अब कलयुग में सब उल्टा है ‘ज्ञान न पूछो साधु की पूछ लीजिए जात’ राजनीति के धरातल पर यही सफलता का मंत्र है। प्रभु की जाति पर शोध निरन्तर जारी है यह आने वाला समय ही बतायेगा कि कौन सा भगवान किस जाति से सम्बन्धित था परन्तु इसके लिए 2019 के लोकसभा चुनावों के नतीजों तक तो इंतजार करना पड़ेगा।
जब से हनुमान जी के दलित होने की चर्चा आम हुई है तब से चैतु बोड़ा कह रहे हैं कि, मैं तो पहले ही जानता था कि, कोटद्वार का सिद्धबली मंदिर भी सदियों से दलितों का था, परन्तु तब कोई मानने को तैयार ही नहीं था अब साफ हो गया है ना कि, वास्तव में यह मंदिर दलितों का था। अब तो दलितों का अधिकार मिलना चाहिए। उधर अषाढु़ काका ने मांग की है कि, यदि हनुमान जी कि जाति दलित या आर्य थी तो, उत्तराखण्ड के भूत, पिचास, खबेस, मसाण, जगस्, आक्षरीयां आदि किस जाति की रही होगीं। इस पर उत्तराखण्ड की धरती पर लम्बा चौड़ा शोध कार्य किया जा सकता है बल्कि इसके लिए केन्द्र तथा राज्य सरकार को मिलकर पहल करते हुए कुछ शोधार्थियों को इस पुनीत-पुण्य कार्य में शीघ्र लगा देना चाहिए ताकि इस सच्चाई का पता लगाया जा सके कि, उत्तराखण्ड के मसाण, जगस् किस जाति सम्बन्धित थे। राजनीति रहेगी तो जाति रहेगी, बिन राजनीति के कैसी जाति? किसकी जाति क्या थी पता लगाना आवश्यक है। बिन जाति के तो राजनीति के कई चूल्हे उजड़ जायेंगे। इसलिए जाति पूछ कर ही पानी पिलाने का धर्म निभाते रहिये, फिर देखए राजनीति के धरातल पर आप कैसे चमक बिखेरते हैं।
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