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मंगलवार, 2 अक्टूबर 2018

एक चिट्ठी देश के नाम
सामूहिक जिम्मेदारी से संवरेगा देश 
देश को आजाद हुए आज 70 साल पूरे हो चुके हैं। इस बीच देशवासियों ने क्या खोया क्या पाया इस पर मनन करने की आवश्यकता है इसलिए कि भारत का संविधान उन हस्तियों के उच्च विचार तथा संविधान निर्माताओं द्वारा आपस में काफी विचार विमर्श व विभिन्न मुद्दों को ध्यान में रखते हुए अनेकता में एकता भारत में निवास करने वाले सभी धर्मावलम्बियों आपस में बिना वर्णभेद, जातिभेद आदि के विपरीत केवल हमस सब भारतीय हैं। सभी देशवासी एक समान रूप से निर्मित कानून का पालन करते हुए देश के प्रति समर्पित भाव से मिलजुल कर देश के आर्थिक, सामाजिक व नैतिक विकास में अपना योगदान यथा समय देते रहेगें। लेकिन आज हम उन महापुरूषों के गौरव पूर्ण इतिहास को भूल चुके हैं किसी भी तरह चुनाव जीतने के बाद कुर्सी की लड़ाई प्रथम मुद्दा है हमारे माननीयों को चुनाव प्रचार के लिए समय है लेकिन चुनाव के पश्चात् आम जनता से मिलने व उनकी समस्याओं को सुनने तथा निराकरण के लिए समय नहीं है, यहां तक कि पत्रोत्तर देने का भी समय नहीं ह,ै समाचार पत्रों व इलेक्ट्रोनिक मीडिया आदि के द्वारा लोक लुभावन बाते प्रसारित होती रहती हैं लेकिन धरातल पर स्थिति पूर्ववत हैं भ्रष्टाचार पूर्व की भांति फल-फूल रहा है।
एक ओर जहां मंहगाई बढ़ी वहीं कमीशन का प्रतिशत भी बढ़ता गया और भारी कमीशन के कारण 50 प्रतिशत से अधिक कार्य की गुणवत्ता ऐसी है कि कोई लाखों रूपये के पुस्ते, पुल आदि मामूली वर्षा  के कारण ध्वस्त होते हो रहें हैं जांच के नाम पर मात्र खाना पूर्ति की कार्यवाही होती है। लेकिन जांच कागजों तक सिमट कर रह जाती है। अधिकारी/कर्मचारी वर्ग अपने अधिकारों के प्रति सचेत होते हुए अपनी मांगों के समर्थन पर हड़ताल, धरना आदि कर अपनी मांगों को तो सरकार से मनवा लेते हैं परन्तु अपने कत्तर्व्यों के प्रति उदासीन हैं। यदि देश का प्रशासनिक अमला अपने कत्तर्व्यों के प्रति भी सजक होता तो देश में समृद्धि आती तथा आम जन सुख चैन से जी रहा होता तथा भारत फिर से सोने की चिड़िया होता। देश में जिम्मेदार वर्ग आकंठ भ्रष्टाचार में डूबा हुआ है। इसकी एक झलक मात्र मैं यहां प्रस्तुत कर रहा हूं।
मैं विभागीय कार्य प्रणाली के सम्बन्ध में अवगत करना चाहूंगा कि हमारे विकास खण्ड द्वारीखाल जनपद पौड़ी गढ़वाल उत्तराखण्ड में वर्ष 1982 में कुछ नहरों के निर्माण कार्य पर लाखों रूपये की धनराशि व्यय की गई उस वक्त नदी में भरपूर पानी हुआ करता था। उसके पश्चात् धीरे-धीरे उक्त जलस्रोत हेड से लगभग दो दर्जन गांव में पेयजल आपूर्ति हेतु पाईप लाईन बिछाई गई और धीरे-धीरे जल श्रोत से पानी में भारी कमी होती गई जिसके फलस्वरूप 20 वर्ष पूर्व बनी समस्त नहरों पर एक भी दिन पानी टेल तक नहीं पहुंचा बावजूद वर्ष 2002 में सरकार द्वारा सिंचाई विभाग में लाखों रूपये का बजट स्वीकृत होने पर विभाग द्वारा उपरोक्त सूखी नहरों पर फील्डगूल व होज निर्माण कर पूरे बजट को ठिकाने लगाया गया लेकिन आज तक किसी भी नहर से पानी की एक बूंद भी प्राप्त नहीं हुई इसके अतिरिक्त कई अन्य सूखी नहरों का निर्माण कार्य लघु सिंचाई विभाग द्वारा भी ऐसी नहरों का निर्माण किया जहां पर सिंचित रकवा नामात्र है इस प्रकार ऐसी योजना से लाभ कास्तकार को नहीं बल्कि ठेकेदार व विभाग को कमीशन के रूप में प्राप्त हुए वर्तमान में देखा जाये तो सिंचाई विभाग के पास शायद ही किसी प्रकार का निर्माण सम्बन्धी कार्य हो शासन से प्राप्त बजट ठिकाने लगाने हेतु सूखी पड़ी नहरों के मरम्मत के नाम पर सरकारी धन का पूर्णरूप से दुर्पयोग हो रहा है।
इसी प्रकार जल संस्थान, जलनिगम स्वजल परियोजना के तहत पेयजल आपूर्ति की जा रही है इसके अलावा क्षेत्र पंचायत पेयजल निधि व जिला पंचायत के माध्यम से उक्त पेयजल  योजनाओं के मरम्मत के नाम पर लाखों रूपये का गोलमाल किया जा रहा है इस सम्बन्ध में शासन को चाहिए कि एक ही विभाग द्वारा उक्त योजनाओं का क्रियान्वन किया जाये। यहां तक देख गया है कि एक ही पाईप लाईन का निर्माण दो विभागों द्वारा सम्पन्न कर दिखाया गया सरकार विकास कार्यो का प्रचार-प्रसार करती है लेकिन धरातल पर किए गये कार्यों की जानकारी नहीं लेती। पहाड़ी क्षेत्रों में अधिकतर चीड़ के जंगल मौजूद हैं जो वनाग्नि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं कभी-कभी भारी आंधी तूफान के कारण सैकड़ों पेड़ धराशाही हो जाते हैं जिनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है  ऐसे पेड़ जंगल में ही सूख कर सड़ते रहते हैं इसके परिणाम स्वरूप गर्मियों में जब जंगलो में आग लगती है तो उक्त गिरे हुए पेड़ महिनों तक जलते रहते है और चिंगारी बन कर पुनः जंगल में आग की लपेट उठने लगती हैं क्या उन पेड़ो की समय रहते स्थानीय ग्राम वासियों को वन निगम द्वारा निस्तारित नहीं की जा सकता? ताकि लाखों रूपये की वन सम्पदा से सरकार को राजस्व  प्राप्त हो सके। इस प्रकार शासन-प्रशासन से अपेक्षा की जाती है कि यदि देश व प्रदेश का विकास के प्रति सच्ची निष्ठा से कार्य किया जाए तो वह दिन दूर नहीं जब अच्छे दिन धरातल पर देखने को मिलेगें। जहां तक सार्वजानिक निर्माण विभाग का प्रश्न है किसी ने सही कहा कि-
ठेकेदार कहता है-मैं भिखारी हूं,
गुनहगार कहता है-मैं पुजारी हूं, 
सालों बीत गये,
 सड़क कहती है-मैं अब भी कुंवारी हूं।
मात्र नियम-कानून बनाने से कुछ नहीं होता जब तक दृढ़ इच्छा शक्ति न हो। देश को भ्रष्टाचार मुक्त, अपराध मुक्त बनाना हो तो सर्व प्रथम भ्रष्टाचारी अधिकारी/कर्मचारी पर दोष सिद्ध होने पर तुरन्त कार्यवाही व दण्ड का प्राविधान होना चाहिए जन प्रतिनिधि का उत्तरदायित्व भी तय होना चाहिए। राजनैतिक पार्टियों की  जिम्मेदारी बनती है कि वह केवल साफ-स्वच्छ छवी वाले व्यक्तियों को ही अपना उम्मीदवार घोषित करते अपराधिक प्रवृत्ति के व्यक्तियों को चुनावां में पार्टी अपना उम्मीदवार ना बनाये। परन्तु वास्तव में अभी तक ऐसा सम्भव नहीं हो पा रहा है। जब कि कोई भी पार्टी वोट बैंक के खातिर उन्हें अपनी पार्टी में स्वीकार कर लेती है कल तक जो नेता विपक्ष में था आज दूसरे पार्टी का पलड़ा भारी देख कर दल बदल कर व जीत हासिल कर दूध का धुला बन जाता है व चुनाव जीतने के बाद देश व राज्य के विकास सम्बन्धी कोई चर्चा न होकर पक्ष-विपक्ष द्वारा आरोप प्रत्यारोप के अलावा किसी भी पार्टी के नेता से प्रायः कहने सुनने में आता है। हमारे माननीय जनता दरबार लगाते हैं जिसकी व्यवस्था पर जिला स्तर के समस्त अधिकारी-कर्मचारी व पुलिस फोर्स पर लाखों रूपये का खर्चा आता है यह ज्ञात नहीं कि उक्त धनराशि किस मद से व्यय ही जाती है।
लेकिन ऐसे दरबार में प्रायः मुख्यमंत्री राहत कोष का पैसा हो या वृद्धा, विकलांग, विधवा पेंशन आदि के चेक माननीय द्वारा वितरित किए जाते हैं व लोक लुभावन भाषण बाजी तक सीमित हो जाता है आम आदमी की शिकायत का कोई निराकरण न हो कर सम्बन्धित शिकायती पत्र एक व्यक्ति के पास जमा होने के बाद उन पर क्या कार्यवाही हुई या नहीं हुई कोई पता नहीं।
ऐसी स्थिति में यदि शासन द्वारा जिला स्तर पर जिला अधिकारी/उपजिलाधिकारी व सक्षम अधिकारी कम से कम माह में एक बार न्याय पंचायत स्तर पर आम जनता की शिकायत आदि का निराकरण किया जा सकता है व उनके द्वारा विशेष परिस्थिति में जनता द्वारा दिए गये सुझावों को शासन को अवगत किया जा सकता है।
पहाड़ में पलायन को रोकने के लिए शासन द्वारा बार-बार रट लगाई जा रही है। लेकिन वास्तविक स्थिति क्या है उस पर कोई विचार करने वाला नहीं। पहले पहाड़ में मुख्य व्यवस्था खेती व पशुपालन के क्षेत्र भी विशेष रूचि हुआ करती थी। खेती की जुताई होने से वर्षा का पानी खेतों में समायोजित होने से नंदियों में बाढ़ बहुत कम आती थी। परन्तु वर्तमान में पहाड़ों के बंजर पड़े खेतों में पानी का समायोजन ना होने के कारण पानी बाढ़ के रूप में सीधे बह जाता है। जिससे मैदानी भागों में बाढ़ जैसी समस्या उत्पन्न हो रही है। जबकि जमीन द्वारा पानी न सोखे जाने के कारण भूजल की स्थिति गम्भीर होती जा रही है पानी के श्रोत समाप्त होते जा रहे हैं।  खेत बंजर होने के कारण लैन्टाना, गाजार घास आदि घुसपैठिये वनस्पतियां यहां कि जैव विविधता को ग्रहण लगा रहे हैं। इसके साथ ही उत्तराखण्ड बनने से पूर्व यहां पर उत्तर प्रदेश परिवहन निगम की बसें लगभग सभी रूटों पर चला करती थी लेकिन आज मुख्य राष्ट्रीय राजमार्ग के अतिरिक्त नाम मात्र ही किसी सहायक रूट पर ही उत्तराखण्ड परिवहन निगम की बसें चलती हों पूर्ववर्ती सरकार द्वारा कॉलेज में पढ़ने वाली छात्राओं व वरिष्ठ नागरिकों को उत्तराखण्ड परिवाहन निगम की बसों में किराया छूट का प्रविधान किया गया है यह एक अच्छी पहल है क्योंकि पहाड़ में कई जगह डिग्री कॉलेज 30 से 40 किमी. की दूरी पर हैं, लेकिन निगम की बसों का संचालन न होने के कारण परिवार शहर की ओेर पलायन करने पर मजबूर हैं इसी प्रकार यहां के वरिष्ठ नागरिकों को भी परिवहन विभाग द्वारा बसों का संचालन न होने के कारण सुविधा से वंचित रहना उनकी मजबूरी है इसका लाभ केवल मैदानी क्षेत्रों के वरिष्ठ नागरिक ही उठा सकते है उसमें भी सरकार को निम्न आय वर्ग के वरिष्ठ नागरिकों को ही सुविधा प्रदान की जानी चाहिए, न कि सर्व सम्पन्न व्यक्ति को। यदि सरकार पहाड़ में पलायन रोकना चाहती है तो सरकार नहरें न खुदवा कर पाईप लाईन बिछाये व जगह-जगह पर रिजर्व टैकों का निर्माण किया जाय। पहाड़ों में सामुहिक खेती को बढ़ावा दिया जाये। 
देश में समग्र विकास के लिए राजनैतिक दलों को अपनी छवी में सुधार करना होगा। ऐसे लोगों के हाथ में पार्टी की कमान होनी चाहिए जो नैतिक रूप से सशक्त हों। भले ही आज माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश विदेश में काफी चर्चित हैं परन्तु अकेला चना भाड़ नही फोड़ सकता। हम सभी भारतीयों को सामुहिक प्रयास करने होंगे। तभी देश में समृद्धि आ सकती है। देश की संसाद और विधानसभाओं में साफ-स्वच्छ छवी के ईमानदार  व्यक्तियों को भेजना होगा। देश के विकास में प्रत्येक व्यक्ति की जिम्मेदारी है। यदि हम अपने देश के प्रति जिम्मेदार नागरिक हैं तो हमे देश हित में कार्य करना होगा। यह हम सब की सामुहिक जिम्मेदारी है। 
धीरज सिंह रावत
ग्राम-तोली, पो0ओ0-दिउसा
वया-द्वारीखाल, जिला-पौड़ी गढ़वाल
(उत्तराखण्ड)

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