पुस्तक समीक्षा
जीवन एक पाठशाला
समीक्षक - सुभाष चन्द्र नौटियाल
केन्द्रीय रिर्जव पुलिस बल में रेडियो ऑपरेटर के पद पर कार्यरत युवा गोपी प्रसाद पसबोला ‘शाण्डिय’ द्वारा रचित कृति ‘जीवन एक पाठशाला’ अपने नाम की सार्थकता सिद्ध करने में सफल रही है। लेखक ने व्यक्ति को जीवन में सफल व्यक्तित्व बनने के लिए पुस्तक में सभी सार तत्व समाहित करने का सुन्दर प्रयास किया है। मानव जीवन को आदर्श तथा प्रेरणादायी जीवन बनाने के लिए पुस्तक ‘जीवन एक पाठशाला’ में आदर्शता के कैनवास में सभी रंग भरने का लेखक द्वारा अच्छा प्रयास किया गया है। युवा लेखक द्वारा पुस्तक को श्रेष्ठ कृति बनाने के लिए ‘सार सार की गयी रथि, थोथा दे उड़ाय’ की उक्ति को चरित्रार्थ किया गया है। वास्तव में जीवन जीना भी एक कला है तथा निरन्तर अभ्यास से जैसे-जैसे व्यक्ति इस कला में प्रवीणता हासिल करता है, वैसे-वैसे वह जीवन में परम् आनन्द की ओर अग्रगामी होता है। युवा लेखक इस पुस्तक के माध्यम से यही संदेश देना चहाता है।
जीवन में सफलता हासिल करने के लिए निरन्तर नया सीखने की जिज्ञासा की प्रवृति पैदा करना आवश्यक है। सीखने की प्रवृति हमें जीवन के वास्तविक आनन्द की ओर ले जाती है। पुस्तक के प्रथम अध्याय ‘सीखने की प्रवृत्ति पैदा करें’ में लेखक इसी भाव को प्रकट करते हुए पृष्ठ 11 में कहता है- ‘‘ आइए! सीखने की ऐसी ही कुछ प्रवृत्तियों से रूबरू होने का प्रयास करते हैं। जिसे स्वयं के जीवन में आत्मसात् कर हम जीवन में वास्तविक आनन्द की ओर अपना एक कदम बढ़ा सकें।’’
लेखक जीवन जीने की कला को सीखने के लिए अनेक मार्गों का उल्लेख करता है। लेखक आत्ममंथन तथा आत्मचिन्तन को सफल जीवन का आधार मानता है। लेखक महान व्यक्तित्वों से सीखने के लिए भी पाठकों को प्रेरित करता है तथा अनेक उदाहरणों से जीवन को सफल बनाने के लिए भी विभिन्न उदाहरण प्रस्तुत करता है। लेखक का मानना है कि, जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए लक्ष्य का निर्धारण होना चाहिए तथा लक्ष्य प्राप्ति के लिए निरन्तर प्रयास ही सफलता के लिए किया गया निवेश है। लेखक के अनुसार आशावादी बनकर जीवन में लक्ष्य प्राप्ति के लिए जितनी तीव्रता तथा निरन्तरता होगी हम लक्ष्य के उतने ही निकट पहुंचते जाते हैं। लक्ष्य वेदन के लिए सही दिशा में किया गया निरन्तर प्रयास सफल जीवन की पहली शर्त है।
आत्मचिन्तन के बारे में लेखक पृष्ठ 35 में मानता है- ‘‘सही दिशा में किया गया हमारा आत्मचिन्तन, हमें भविष्य में आने वाली ऐसी कई आत्मग्लानियों से बचा लेता है। जहां जीवन जैसी अमूल्य चीज भी हमें उस स्थिति में व्यर्थ लगने लगने लगेगी।
सही मायनों में आत्मचिन्तन मनुष्य के अन्दर की वह अलौकिक ज्योति है जो जितनी अधिक प्रज्वलित होगी हमारा जीवन उतना ही प्रकाशमय होता चला जायेगा।’’
पुस्तक में सफल तथा आनन्दमय जीवन की प्राप्ति के लिए 21 अध्यायों के रूप में 21 सरलतम सूत्र दिये गये हैं। लेखक द्वारा रचित पुस्तक में यही 21 सूत्र पुस्तक को श्रेष्ठ कृति बनाने में सहायक हैं। यदि आमजन जीवन के इन 21 सूत्रों को चिन्तन-मनन करने के साथ आत्मसात् करता है तो एक बेहतर मानव समाज का निमार्ण किया जा सकता है। पुस्तक स्कूल, कॉलेजों में अध्ययनरत छात्र-छात्राओं के लिए उत्तम पठनीय कृति है।
पुस्तक में सैन्य पृष्ठ भूमि के युवा लेखक द्वारा किये गये प्रयास अनेक स्थानों पर बाल प्रयासों की भांति दृष्टिगोचर होते हैं। जिस प्रकार एक बालक कई बार स्वप्रयासों से कोई वस्तु हासिल कर लेना चहाता है परन्तु अवयस्क एवं अपरिपक्वता के कारण हासिल नहीं कर पाता है परन्तु फिर भी निश्चल, निष्कपट सक्रिय मानसिकता के कारण निरन्तर बाल चेष्टाऐं कर सबका ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करता है। ठीक उसी प्रकार सैन्य पृष्ठभूमि के युवा गोपी प्रसाद पसबोला ने पुस्तक की रचना कर रचनाकारों/ साहित्यकारों का ध्यान अपनी ओर खींचा है। उनके द्वारा पुस्तक की रचना कर समाज को श्रेष्ठतम देने का स्वतुल्य प्रयास किया गया है परन्तु अनेक स्थानों पर उचित मार्गदर्शन तथा अनुभव की कमी भी पुस्तक में दृष्टिगोचर होती है परन्तु फिर भी मानव समाज में हमेशा बाल चेष्टाओं को सहर्ष तथा सहृदयता से स्वीकार किया जाता है तथा उनके द्वारा किये गये निश्चल तथा निष्कपट प्रयासों को जिज्ञासा एवं उत्सुकता से देखा जाता है। पुस्तक रचना कर युवा लेखक ने बीज रूप में अपने अन्दर उपस्थित सृजनात्मक शक्ति का परिचय दिया है। अपने अन्दर छिपी हुई सृजनात्मक शक्ति का उपयोग समाज हित में करते हुए यदि लेखक निरन्तर प्रयास जारी रखेगें तो आने वाले समय में उनका लेखन निश्चित ही वट वृक्ष का आकार ग्रहण करेगा तथा लेखक समाज हित में अपना श्रेष्ठतम देने में सफल होगें। उत्तम पठनीय कृति के लिए लेखक गोपी प्रसाद पसबोला को बधाई एवं भविष्य की शुभकामनाओं के साथ!
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