प्रकाशक एवं मुद्रक
सुभाष चन्द्र नौटियाल
टूरिस्ट संदेश पब्लिकेशन हाउस, बलूनी कॉम्पलेक्स, गंगादत्त
जोशी मार्ग, कोटद्वार, जिला- पौड़ी गढ़वाल(उत्तराखण्ड)
पिन - 246149
मो0 - 8477937669
प्राक्कथन
भारतीय दर्शन के अनुसार जल वस्तुतः ब्रह्म है, सृष्टि का मूल तत्व है। आत्मतत्व का कारक, जल ही जीवन है। सृष्टि में जीव की उत्पत्ति से लेकर विलीन होने तक जल मूल तत्व है। जल वैज्ञानिकों के अनुसार जल मूलतः प्राणदायी ऑक्सीजन(O) के एक अंश तथा हाइड्रोजन(H) के दो अंश से मिलकर बनता है। अर्थात् जल में हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन का क्रमशः दो-एक का अनुपात (H2O) का संयोग होता है। वेदों में भी सोमदेव तथा पवस्वमान देव के संयोग से जल की उत्पत्ति होना माना गया है परन्तु अनुपात का जिक्र नहीं है। वास्तव में जल चराचर जगत में सभी जीवधारियों के लिए जीवनाधार है। सृष्टि का आरम्भ भी जल में ही माना गया है तथा विनाश भी ‘जल प्रलय’ या ‘जल प्लावन’ के रूप में माना जाता है। यानि कि, सृष्टि की उत्पत्ति, जीव का जीवन प्रवाह तथा विनाश के लिए जल महत्वपूर्ण अवयव है।
आधुनिक विज्ञान का ‘विकासवाद का सिद्धान्त’ भी इसी अवधारण पर आधारित है तथा जीवों की उत्पत्ति प्रथमतः सूक्ष्म जीवों के रूप में जल में मानता है। पुराणों में प्रथम अवतार मत्स्यावतार भी जल में ही माना गया है।
जीवन में जल की महत्ता के कारण ही सनातन धर्म, वैदिक संस्कृति में जल का यशोगान यत्र-तत्र मिल जाता है। वैदिक संस्कृति, मानव मात्र के कल्याण के लिए जल की महत्ता एवं संरक्षण का ज्ञान देती है। यदि आज का विश्व मानव भारतीय दर्शन के उस मूल तत्व से आत्मसात् करते हुए अपने आचार-विचार तथा व्यवहार को उसी के अनुरूप करता है तो निश्चित ही पृथ्वी में न जल की कमी होगी और न ही जल प्रलय की स्थिति उत्पन्न होगी। ज्ञात हो कि, सजीव प्राणियों में लगभग 70 प्रतिशत जल की मात्रा होती है तथा पृथ्वी के दो-तिहाई भाग में जल है परन्तु फिर भी धरती में मात्र तीन प्रतिशत जल ही पीने योग्य है।
भारतीय दर्शन में अनेक माध्यमों से जल के महत्व का प्रदर्शित किया गया है। प्रस्तुत पुस्तक ‘आत्मसत्ता का कारक जल’ में भारतीय दर्शन के इसी भाव को प्रदर्शित करने का प्रयास किया गया है। अपने इस प्रयास में, मैं कितना सफल हुआ हूं इसका निर्णय में जागरूक विद्वत जन पाठकगणों पर छोड़ रहा हूं। आशा है कि, विद्वतजन पुस्तक के भाव को समझते हुए लेखन में हुई त्रुटियों के लिए लेखक को क्षमा करेगें तथा भविष्य के लिए मार्गदर्शन करेगें।
अन्त में, मैं उन सभी ज्ञात-अज्ञात महान श्रेष्टजनों का हृदय की गहराईयों से आभारी हूं जिन्होंने प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से इस पुस्तक के प्रकाशन में सहयोग तथा मार्गदर्शन किया। मेरे द्वारा रचित ‘जल वन्दना’ को मेरे अनुरोध पर संस्कृत भाषा में अनुवाद करने के लिए में शिक्षक श्री कुलदीप मैन्दोला जी का सहृदय आभार व्यक्त करता हूं तथा उनके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूं।
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