नहीं रहे पूर्व वरिष्ठ वैज्ञानिक बृजमोहन
विभिन्न सामाजिक संगठनों ने जताया शोक
कोटद्वार | पूर्व वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं रक्षा अनुसंधान विकास संगठन (डी0आर0डी0ओ0) में नेवल सेक्रेटरी के पद से सेवानिवृत्त कण्वनगरी कोटद्वार निवासी बृजमोहन का 20 मार्च को निधन हो गया है, वे 66 वर्ष के थे। उनके निधन पर कोटद्वार के विभिन्न सामाजिक संगठनों ने शोक व्यक्त कर भावभीनी श्रद्धांजलि दी है। क्षेत्र के समाज सेवी स्वर्गीय सागर चंद के द्वितीय पु़त्र बृजमोहन ने अपनी इंटरमीडिएट की शिक्षा कण्वनगरी कोटद्वार से प्राप्त की थी। इसके पश्चात रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज वारंगल से इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में स्नातक की डिग्री प्राप्त करने के बाद डी0आर0डी0ओ0 में वैज्ञानिक (बी) के पद से शानदार कैरियर की शुरूआत की। इसी दौरान उन्होंने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली से एम0टेक किया। मेहनत, निष्ठा, लगन और ईमानदारी से कार्य करते हुए बृजमोहन ने विभिन्न महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन करते हुए वैज्ञानिक (जी) के पद तक पहुंचे । इस दौरान रक्षा अनुसंधान से जुड़ी अनेक महत्वपूर्ण परियोजनाओं में उन्होंने अपनी दूरदर्शिता का परिचय देते हुए अभूतपूर्व योगदान दिया। उनकी कार्यकुशलता और दक्षता को देखते हुए रूस के सहयोग से संचालित महत्वकांक्षी ब्रहृमोस परियोजना में उनको महत्वपूर्ण जिम्मेदारी प्रदान की गई। जिसे उन्होंने पद्मभूषण शिवथानुपिल्लै के नेतृत्व में निष्ठापूर्ण पूर्ण किया। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन में उन्होंने सेवाकाल के दौरान तत्कालीन अध्यक्ष डा0 ए0पी0जे0 अब्दुल कलाम के साथ नज़दीकी रूप से कार्य किया। इसी दौरान पूर्व राष्ट्रपति, भारतरत्न डॉ0 ए0पी0जे0 अब्दुल कलाम द्वारा लिखी पुस्तक के Envisioning an empowered Nation लिये उनकी विशेषज्ञता से संबंधित विषय पर लिखने का अवसर मिला जिसका उल्लेख स्वयं पूर्व राष्ट्रपति डा0 कलाम द्वारा पुस्तक की भूमिका में किया गया है। पत्नी श्रीमती पुष्पा की असामयिक मृत्यु के पश्चात वैज्ञानिक बृजमोहन ने जुलाई 2016 स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली। वैज्ञानिक बृजमोहन एक बेहतरीन गायक भी थे। उनकी एक गढ़वाली कैसेट उमाळ काफी लोकप्रिय हुई थी। वे आकाशवाणी के ग्रेडेड लोकगायक भी थे।
सेवानिवृत्ति के पश्चात वैज्ञानिक बृजमोहन लगातार सक्रिय रहे।अपने दिल्ली प्रवास के दौरान उन्होंने उत्तराखण्ड के मूलनिवासियों को एकजुट करने का निरंतर प्रयास किया। कण्वनगरी कोटद्वार के झण्डीचौड़ (पूर्वी) से निकल कर देश के प्रतिष्ठित रक्षा संस्थान के विभिन्न महत्वपूर्ण पदों को सुशोभित करने वाले बृजमोहन का जीवन शून्य से शिखर तक का सफ़र रहा है। जीवन काल में उन्होंने अनेक युवाओं को शिक्षा लेने के लिए प्रेरित किया। उनके निवास स्थान विज्ञान सदन और बाद में द्वारिका एक बेसकैम्प के रूप में था, जहां से अनेक युवाओं ने सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त कर अपने कैरियर की उड़ान भरी। अपने पिता सागर चंद के पदचिन्हों पर चलते हुए उन्होने बेहद सादगीपूर्ण जीवन व्यतीत किया। वे अपने पीछे दो पुत्र आशीष, मनीष, पुत्रवधु शिवानी, अंशिका तथा बेटी मुक्ता और दामाद प्रदीप को छोड़ गये हैं।
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