जल संरक्षण है जरूरी - TOURIST SANDESH

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मंगलवार, 28 जून 2022

जल संरक्षण है जरूरी

 जल संरक्षण है जरूरी

सुभाष चन्द्र नौटियाल

 

जल वस्तुतः जीवन हैजल सृष्टि का मूल है और विश्व के सभी धर्मों के अनुरूप जल ही वस्तुतः ब्रह्म भी है। विज्ञान के अनुसार जल मूलतः प्राणदायी ‘ऑक्सीजन’ और ‘हाइड्रोजन’ का एक और दो के के अनुपात में सम्मिलित रूप हैलेकिन सामान्य प्राणी के लिए तो जल सचमुच ही जीवन हैजीवन का आधार है। भारतीय दर्शन और शास्त्रों के अनुसार जब ‘प्रलय’ होता हैतब ‘जल प्लावन’ की स्थिति बनती है और सृष्टि खत्म हो जाती है। जल ही ‘प्रलय’ करता है और पुनः जब सृष्टि का उदय होता हैतो हमारी ‘अवतार-परंपरा’ के अनुसार प्रथम अवतार के रूप में ‘मत्स्यावतार’ होता है। मत्स्य अर्थात् मछली के रूप में ‘ब्रह्म’ अवतार लेकर सृष्टि का शुभांरभ करते हैं। विज्ञान के अनुसार यहीं ‘विकासवाद का सिद्धान्त’ है जिससे सिद्ध होता है कि ‘जल’ ही इस सृष्टि का मूल आधार है। हमारे पूर्वजों ने ‘जल’ को धर्म के मूल में जोड़कर उसे मानव-जीवन की अनिवार्य आवश्यकताओं में सम्मिलित कर दियाजिससे जल का महत्व मानव कभी भी भूल  सकेयह निश्चय हीहमारे दूरदर्शी पूर्वजों की युगान्तरकारी सोच का परिचायक है।पंच तत्वों में जल प्रधान तत्व है।जल के बिना कोई भी सनातनी पूजा पूर्ण नहीं मानी जाती है। आज 21वीं सदी का विश्व मानव प्रकृति की इस अनमोल देन ‘जल’ की निरन्तर होती जा रही कमी को देखकर चिन्तित और भयभीत है। निरन्तर बढ़ती हुई विश्व की जनसंख्या की बढ़ती आवश्यकताओं की आपूर्ति के लिए विश्व भर में जल की माँग भी निरन्तर बढ़ती गई है जिसके परिणाम स्वरूप बेहद मूल्यवान भूमिगत जल का दोहन आदमी करता जा रहा है। वैज्ञानिक आदमी को चेतावनी दे रहे हैं कि इस अंधाधुंध दोहन के कारणआने वाले समय मेंधरती पर जल की बेहद कमी हो जायेगी और जीवन संकट में पड़ जायेगा। विश्व भर के राजनेता भी कह रहे हैं कि यदि अगला विश्व युद्ध होगातो निश्चय ही वह जल के लिए ही होगा।’ तात्पर्य यह है कि आज हर तरफ जल-संरक्षण की अनिवार्यता बताई जा रही है।
 जीवन के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण जल की उपलब्ध्ता पर हम यदि विज्ञानियों द्वारा दी गई जानकारियों पर गौर करें तो आसानी से ‘जल संरक्षण’ का महत्व हम जान सकते हैं। पृथ्वी पर उपलब्ध 2/3 भाग जल में 97 प्रतिशत समुद्र जल का खारा जल हैजो पीने योग्य नहीं होता। पृथ्वी पर जो  3 प्रतिशत पानी हमारे पीने योग्य हैउसमें से 75 प्रतिशत हिमखंडों के रूप में 14 प्रतिशत भूमिगत जल 2500 फीट से 12,500 फीट की गहराई पर हैजिसका दोहन संभव नहीं है। कुल उपलब्ध जल का 11 प्रतिशत भू-जल 2500 फीट तक गहराई में है। जल विज्ञानियों के अनुसार भूमि की सतह पर हमें मात्रा 0.97 प्रतिशत जल ही घरेलू उपयोगसिंचाई और उद्योगों आदि के लिए उपलब्ध है। वर्षा भारत में अनिश्चित और आसमान होती हैजिसमें आध्े से अधिक पानी वाष्पीकरण के कारण तथा नदियों के द्वारा बहकर समुद्र में चला जाता है। यह स्थिति स्पष्ट करती है कि पृथ्वी पर जल की उपलब्धता निरन्तर बनी नहीं रह सकतीबल्कि दिनों दिन घटती ही जायेगी। वर्ष 1951 में प्रति व्यक्ति जल की उपलब्ध्ता भारत वर्ष में जहाँ 5,177 घनमीटर थीवहीं बढ़ती जनसंख्या के कारण वर्ष 2001 में घटकर केवल 1,869 घनमीटर ही रह गई  जल विज्ञानियों का अनुमान है कि जनसंख्या वृद्धि एवं विकास की गति के चलते सन् 2025 में प्रतिव्यक्ति 1341 घनमीटर और सन् 2050 में और घटकर मात्रा 1140 घनमीटर रह जायेगा।
  यही कारण है कि आज पूरे विश्व में जल विज्ञानियों की सबसे बड़ी चिन्ता ‘जल संरक्षण’ की ही है। जल संरक्षण केवल सरकारी घोषणाओं अथवा योजनाओं का ढ़ोल पीटने से नहीं होगाबल्कि पूरे विश्व में जोर-शोर से जन-जागरण-अभियान चला कर हमें प्रत्येक मनुष्य को जल-सरंक्षण-अभियान’ से जोड़ना होगा। जल-सरंक्षण अनिवार्य कर्त्तव्य बन जाना चाहिए। आज जब विश्व इक्कीसवीं शताब्दी की विकसित मानव पीढ़ी हैतब यह सोचना बेहद जरूरी है कि हम पूरे विश्व की ‘प्यास’ कैसे बुझा पाएँगे। हम आज जिस प्रकार विश्व स्तर पर ‘एड्स’ नाम की बीमारी के लिए अरबों डालर खर्च करके विश्व को जगाने में लगे है। क्या उसी तरह यह भी जरूरी नहीं है कि पूरे विश्व में ‘जल सरंक्षण’ की अनिवार्यता’ को मुददा बनाकर जबरदस्त अभियान चलाया जाए। हमें विश्व स्तर पर और विशेष रूप से अपने भारतवर्ष मेंप्राथमिक और माध्यमिक स्तर की शिक्षा में अनिवार्य रूप से ‘‘जल-सरंक्षण’’ को अनिवार्य विषय के रूप में आगाली पीढ़ी को पढ़ाना होगातभी विकास का हमारा सपना साकार हो सकेगा।
 जल-सरंक्षण के साथ-साथ हमें जल के अपव्यय एवं दुरूपयोग के विषय में भी जबरदस्त अभियान छेड़कर शहरों और गाँवों में घर-घर यह चेतना जगानी होगी कि जल की बरबादी वास्तव में हमारे पूरे समाज के विकास की बरबादी है। इसलिए हर कदम परहर मनुष्य को जागरूक रहकर जल की एक-एक बूंद बचानी ही है। जल की बरबादी के प्रति जागरूक करने की दिशा में कार्य करने की आवश्यकता है ताकि जल सरंक्षण किया जा सके यही समय की मांग है। यदि किसी नल से प्रति सेकेण्ड एक बूंद जल टपकता रहेतो एक दिन में 3.4 लीटर और एक महीने में 715.93 लीटर जल बर्बाद हो जायेगा। निःसन्देह शहरोंगाँवोंकस्बों के घर-घर में अगर ‘टपकते हुए नलों की ही देखभाल हम करना सीख लेंतो लाखों घन लीटर पानी बचाया जा सकता है।
जल-सरंक्षण करें कैसे?
जल हमें प्रकृति ने स्वाभाविक उपहार के रूप में दिया हैजो हमारे जीवन तथा विकास के लिए बेहद जरूरी है। प्रकृति ने ‘वर्षा जल’ के रूप में हमारे द्वारा खर्च किए गए जल की प्रतिपूर्ति का स्वाभाविक प्रबन्ध कर रखा है। खारे समुद्र से भाप बनकर उड़ने वाला जल वर्षा के रूप में ‘जल शुद्ध’ होकर हमें मिलता है। जल विज्ञानियों ने वर्षा जल के संचयन की विधि बताई हैजिससे नगरोंगाँवों और विशेष रूप से पर्वतीय क्षेत्रों में जल का सरंक्षण करके हम देश और समाज का बहुत बड़ा हित कर सकते हैं। 
जल विज्ञानियों का मानना है कि अगर उत्तराखण्ड में होने वाली वर्षा के केवल 50 प्रतिशत हिस्से को ही हम संरक्षित रूप से संचित कर सकेंतो केवल 525 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र से संचित किए वर्षा जल से प्रतिदिन 100 लीटर जल की आपूर्ति की जा सकती है। निश्चय ही वर्षा प्रकृति द्वारा मानव को दिया जल का ‘प्रथम’ श्रोत हैजिससे नदियाँतालाबआदि जल ग्रहण करते हैं। वर्षा के बाद द्वितीयक स्रोत भू-जल हैजिसकी पूर्ति भी वर्षा जल से होती है। हमें जल विज्ञानियों के बताए अनुसार ‘वर्षा जल संचयन’ करके उसे मनुष्य और पशुओं के उपयोग करने की दिशा में अब तेजी से कदम बढ़ाना जरूरी हो गया है। वर्षा जल संचयन में ही ‘भू-जल’ की प्रतिपूर्ति अर्थात् ‘रिचार्ज’ की प्रक्रिया भी जुड़ी हुई है। वर्षा जल को व्यर्थ गंवा कर हम प्रतिवर्ष राष्ट्र की अपूर्णीय क्षति करते हैंइसलिए ‘वर्षा ‘जल संचयन’  और ‘भूमिगत जल’ की पूर्ति यानि ‘रिचार्ज’ की आवश्यकता पर ही हमें अब पूरा ध्यान देना होगा। ‘जल सरंक्षण’ के कुछ उपाय बेहद सरल और कारगर राष्ट्रीय विकास में जल की महत्ता देखते हुए अब हमें ‘जल सरंक्षण’ को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकताओं में रखकर पूरे देश में कारगर जन-जागरण अभियान चलाने की आवश्यकता है। ‘जल सरंक्षण’ के कुछ परम्परागत उपाय तो बेहद सरल और कारगर रहे हैं। जिन्हें हमजाने क्यों विकास और फैशन की अंधी दौड़ में भूल बैठे हैं एक जागरूक नागरिक के रूप में कुछ उपाय निम्न है।
1. सबको जागरूक नागरिक की तरह ‘जल-सरंक्षण’ का अभियान चलाते हुए बच्चों और महिलाओं में जाग्रति लानी होगी। स्नान करते समय ‘बाल्टी’ में जल लेकर ‘शावर’ या ‘टब’ में स्नान की तुलना में बहुत जल बचाया जा सकता है। पुरूष वर्ग दाढ़ी बनाते समय यदि टोंटी बन्द रखे तो बहुत जल बच सकता है। रसोई में जल की बाल्टी या टब में अगर बर्तन साफ करेंतो जल की बहुत बड़ी हानि रोकी जा सकती है।
2. टॉयलेट में लगी फलश की टंकी में प्लास्टिक की बोतल में रेत भरकर रख देने से हर बार ‘एक लीटर जल’ बचाने का कारगर साबित हो सकता है। इस विधि का तेजी से प्रचार-प्रसार करके पूरे देश में लागू करके जल बचाया जा सकता है।
3. पहलें गाँवोंकस्बों और नगरों की सीमा पर या कहीं नीची सतह पर तालाब अवश्य होते थेजिनमें स्वाभाविक रूप में मानसून की वर्षा का जल एकत्रित हो जाता था। साथ हीअनुपयोगी जल भी तालाब में जाता थाजिसे मछलियाँ और मेंढ़क आदि साफ करते रहते थे और तालाबों का जल पूरे गाँव के पीनेनहानेऔर पशुओं आदि के काम में आता था। दुर्भाग्य यह कि स्वार्थी मनुष्य ने तालाबों को पाट कर घर बना लिए और जल की आपूर्ति खुद ही बन्द कर बैठा है। जरूरी है कि गाँवोंकस्बों और नगरोंमें छोटे-बड़े तालाब बनाकर वर्षा जल का सरंक्षण किया जाए।
4. नगरों और महानगरों में घरों की नालियों के पानी को गढढ़े बना कर एकत्र किया जाए और पेड़-पोधें की सिचांई के काम में लिया जाएतो साफ पेयजल की बचत अवश्य की जा सकती है।
5. अगर प्रत्येक घर की छत पर ‘वर्षा  जल’ का भंडार करने के लिए एक या दो टंकी बनाई जाए और इन्हें मजबूत जाली या फिल्टर कपड़े से ढ़क दिया जाए तो हर नगर में ‘जल सरंक्षण’ किया जा सकेगा।
6. घरोंमुहल्लों और सार्वजनिक पार्कोस्कूलोंअस्पतालोंमन्दिरों आदि में लगी जल की टोंटियाँ खुली या टूटी रहती हैतो अनजाने ही प्रतिदिन हजारों लीटर बेकार हो जाता है। इस बरबादी को रोकने के लिये नगरपालिका एक्ट में टोंटियों की चोरी को दण्डात्मक अपराध बनाकरजागरूकता भी बढ़ानी होगी।
7. विज्ञान की मदद से आज समुद्र के खारे जल को पीने योग्य बनाया रहा है। गुजरात कें द्वरिका नगरों में प्रत्येक घर में ‘पेयजल’ के साथ-साथ घरेलू कार्यों के लिए ‘खारेजल’ का प्रयोग करके शुद्ध जल का सरंक्षण किया जा रहा हैइसे बढ़ाया जाए।
8. गंगा यमुना जैसी सदानीरा बड़ी नदियों की नियमित सफाई बेहद जरूरी है। नगरों और महानगरों का गन्दा पानी ऐसी नदियों में जाकर प्रदूषण बढ़ाता है जिससे मछलियाँ आदि मर जाती है और यह प्रदूषण लगातार बढ़ता ही चला जाता है। बड़ी नदियों के जल का शोधन करके पेयजल के रूप में प्रयोग किया जा सकेइसके लिए शासन-प्रशासन को लगातार सक्रिय रहना होगा।गंगा सफाई अभियान से जन-जन को जोड़ा जाना चाहिए।
9. जंगलों का कटान होने से दोहरा नुकसान हो रहा है। पहला यह कि वाष्पीकरण  होने से वर्षा नहीं हो पाती और दूसरे भूमिगत जल सूखता जाता है। बढ़ती जनसंख्या और औद्योगिकरण के कारण जंगल और वृक्षों के अंधाधुंध कटान से भूमि की नमी लगातार कम होती जा रही हैइसलिए वृक्षारोपण लगातार किया जाना जरूरी है।
10. पानी का दुरूपयोग हर स्तर पर कानून के द्वारा प्र्रचार माध्यमों से कारगर प्रचार करें और विद्यालयों में ‘पर्यावरण’ की ही नहीं ‘जल सरंक्षण’ विषय को अनिवार्य रूप से पढ़ा कर रोका जाना बेहद जरूरी है। अब समय  गया है कि केन्द्रीय और राज्यों की सरकारें ‘जल सरंक्षण’ को अनिवार्य विषय बना कर प्रारम्भिक से लेकर उच्च स्तर तक नई पीढ़ी को पढ़वाने का कानून बनाएँ।
 निश्चय ही जल सरंक्षण आज के विश्व-समाज की सर्वोपरि चिन्ता होनी चाहिएचूंकि उदार प्रकृति हमें निरन्तर वायुजल प्रकाश आदि का उपहार देकर उपकृत करती रही हैलेकिन स्वार्थी आदमी सब कुछ भूल कर प्रकृति के नैसर्गिक सन्तुलन को ही बिगाड़ने पर तुला हुआ है। आज विश्व-समाज को यही सन्देश है-

जल सरंक्षण’ कीजिएजल जीवन का सारजल  रहे यदि जगत मेंजीवन है बेकार!!

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