आसुरी शक्तियों पर विजय प्राप्त करने का पर्व है विजय दशमी - TOURIST SANDESH

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शुक्रवार, 15 अक्तूबर 2021

आसुरी शक्तियों पर विजय प्राप्त करने का पर्व है विजय दशमी

 आसुरी शक्तियों पर विजय प्राप्त करने का पर्व है विजय दशमी 

    राजीव थपलियाल                                                       


यह तो हम सभी लोग जानते ही हैं कि,हमारी भारत वसुंधरा बहुत से त्योहारों और पर्वों को मनाने वाले लोगों से सुसज्जित है।इनमें से एक बहुत ही महत्वपूर्ण पर्व है दशहरा याने कि, विजयदशमी इस दिन लोग शस्त्र-पूजा भी करते हैं और नया कार्य प्रारम्भ करते हैं जैसे अक्षर लेखन का आरम्भ, नया उद्योग आरम्भ, बीज बोना आदि।हमारी पुरानी मान्यतायें हैं कि, इस दिन जिस कार्य का शुभारंभ किया जाता है उसमें विजयश्री का वरण अवश्य होता है। पुराने समय में राजा -महाराजा लोग इस दिन विजय की प्रार्थना कर,रण-यात्रा के लिए प्रस्थान किया करते थे। इस दिन जगह-जगह मेले लगते हैं।रावण का विशाल पुतला बनाकर उसे जलाया जाता है। हम में से बहुत से लोग मानते हैं कि,विजयदशमी का पर्व भगवान राम की विजय के रूप में मनाया जाए अथवा दुर्गा पूजा के रूप में, दोनों ही रूपों में यह शक्ति-पूजा का पर्व है, शस्त्र पूजन की तिथि है साथ ही हर्ष और उल्लास तथा विजय का पर्व है।                           यह बात भी हमको अच्छी तरह से मालूम है कि, हमारी भारतीय संस्कृति वीरता की पूजक है, शौर्य तथा पराक्रम की उपासक है। अतः हिंदुस्तान के हर  समाज के व्यक्ति और उनके रक्त में वीरता का भाव प्रकट हो इसलिए दशहरे का उत्सव बड़े जोश,उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाता है।कुछ मान्यताओं के अनुसार दशहरा का पर्व दस प्रकार के पापों जैसे काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी के परित्याग की सद्प्रेरणा प्रदान करता है,और जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आगे बढ़ने की सीख भी देता है।इस पर्व को असत्य पर सत्य की विजय के रूप में भी देखा जाता है। कुछ लोगों का मत  है कि, यह त्योहार एक कृषि का उत्सव भी है। अतः यहाँ पर यह कहना समीचीन होगा कि,दशहरे का सांस्कृतिक पहलू भी है।भारत कृषि प्रधान देश है।जब किसान अपने खेत में सुनहरी फसल उगाकर अनाज रूपी संपत्ति घर लाता है तो उसके उल्लास और उमंग का ठिकाना नहीं रहता। इस प्रसन्नता के अवसर पर वह भगवान की कृपा को मानता है और उसे प्रकट करने के लिए वह उसका पूजन करता है। कुछ लोगों के मत के अनुसार यह त्योहार रणयात्रा का द्योतक है, क्योंकि दशहरा के समय वर्षा लगभग समाप्त हो जाती है नदियों की बाढ़ थम जाती है, धान आदि सहेज कर रखे जाने वाले हो जाते हैं।इस उत्सव का सम्बन्ध नवरात्रि से भी है क्योंकि नवरात्रि के उपरांत ही यह उत्सव होता है और इसमें महिषासुर के विरोध में देवी के साहसपूर्ण कार्यों का भी उल्लेख मिलता है। दशहरा या विजयदशमी नवरात्रि के बाद दसवें दिन मनाया जाता है। इस दिन भगवान राम ने रावण का वध किया था। रावण भगवान राम की पत्नी देवी सीता का अपहरण कर लंका ले गया था। भगवान राम युद्ध की देवी माँ दुर्गा के भक्त थे, उन्होंने युद्ध के दौरान पहले नौ दिनों तक माँ दुर्गा की पूजा की और दसवें दिन रावण का वध किया।शहरों तथा गांवों में रहने वाले कई लोग विजयदशमी के मौके पर दशहरा मेला देखने जाते हैं,बच्चे भी उनके साथ में होते हैं बच्चे त्योहारों से संबंधित कई प्रकार की नई-नई जानकारियों से अवगत होते रहते हैं।खिलौने तथा खाने-पीने की चीजों का भरपूर आनंद लेते हैं।अतः हम सभी लोगों को चाहिए कि, हम अपनी आने वाली पीढ़ी को अपने पर्वों, त्योहारों तथा सांस्कृतिक विरासत के बारे में अधिक से अधिक जानकारी देने का प्रयास करें,ताकि हमारी भावी पीढ़ी अच्छी समझ बनाते हुए जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आगे बढ़ सके,अपने अंदर अच्छे संस्कारों और सद्गुणों का विकास कर सके,तथा राष्ट्र निर्माण और चतुर्दिक विकास में अपनी सक्रिय सहभागिता का भली-भांति निर्वहन कर सके।

नोट- इस आलेख को तैयार करने में अन्य संदर्भों की मदद भी ली गई है।                                                              (लेखक प्रधानाध्यापक राजकीय प्राथमिक विद्यालय मेरुड़ा, संकुल केंद्र- मठाली, विकासखंड -जयहरीखाल, जनपद -पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड हैं)

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