सबकी सहभागिता से ही हो सकता है सह-अस्तित्व - TOURIST SANDESH

सोमवार, 21 जून 2021

सबकी सहभागिता से ही हो सकता है सह-अस्तित्व

 सबकी सहभागिता से ही हो सकता है सह-अस्तित्व

कैसे हो स्थापित मानव-वन्यजीवों में सह-अस्तित्व विषय पर टूरिस्ट संदेश ने किया वेबिनार का आयोजन

कोटद्वार। जन सहभागिता से ही सह-अस्तित्व का भाव जाग्रत हो सकता है। यह बात टूरिस्ट संदेश द्वारा आयोजित वेबिनार में वक्ताओं ने कही. टूरिस्ट संदेश द्वारा कैसे हो स्थापित मानव-वन्यजीवों में सह-अस्तित्व विषय पर आयोजित वेबिनार में वक्ताओं ने वन विभाग की कार्य शैली पर सवाल उठाते हुए कहा कि, विभाग में बनने वाली नीतियों में आमजन कहीं भी शामिल नहीं होता, अधिकांशतः देखा गया है कि, वन विभाग के उच्चाधिकारी आमजन के प्रति उदासीनता का भाव तथा संवादहीनता  रखते हैं। जिसके कारण आमजन से जुड़ी अनेक समस्याऐं उत्पन्न होती हैं तथा वनों को भी नुकसान होता है। वन तथा जन एक-दूसरे के पूरक हैं। सबकी सहभागिता से ही सह-अस्तित्व स्थापित हो सकता है। परन्तु वन अधिकारियों की उदासीनता तथा संवादहीनता के कारण आमजन की समस्याओं का निराकरण समय पर नहीं हो पाना गहन चिन्ता का विषय है। चर्चा को आरम्भ करते हुए वनाधिकार अन्दोलन से जुड़े प्रेम बहुखण्डी ने कहा कि, आज आवश्यकता वन पंचायतों को पुनः मजबूत करने की है। वन पंचायतों को सशक्त किये बिना मानव तथा वन्य जीवों में सह-अस्तित्व स्थापित नहीं किया जा सकता है। यदि वन विभाग के उच्चाधिकारी नियमित रूप से स्थानीय जनों से जन संवाद स्थापित करें तो मौजूदा समस्या का निदान सम्भव है। आज वन नीतियों में नीतिगत परिवर्तन की आवश्यकता है। चर्चा में भाग लेते हुए बंजर खेतों को आबाद करो आन्दोलन के प्रणेता सुधीर सुन्दरियाल ने कहा कि, वन प्रबन्धन में आमजन की भागीदारी सुनिश्चित की जाए तथा अधिक से अधिक बंजर भूमि को आबाद किया जाए इसके सरकार स्थानीय जनों को अनुदान की व्यवस्था भी कर सकती है। जंगली जानवरों के आतंक से बचने के लिए प्रत्येक गांव में पिंजरा उपलब्ध कराया जाए तथा उच्च वनाधिकारियों की क्षेत्र में नियमित भ्रमण के कार्यक्रम रखे जायें ताकि उच्च वनाधिकारियों को क्षेत्र की वास्तविक स्थिति का ज्ञान हो सके। पूर्व आई एस एस अधिकारी डॉ कमल टावरी ने कहा कि जन को वन से जोड़े विना समस्या का समाधान नहीं हो सकता है। यदि मानव- वन्यजीव संघर्ष का स्थायी समाधान करना है तो वनों को स्थानीय जनों की आजीविका से जोड़ने की आवश्यकता है। ओएनजीसी के सेवानिवृत्त अधिकारी नरेश चन्द्र कुलासारी ने वन नीतियों में परिवर्तन करने की मांग करते हुए वन पंचायतों को सशक्त करने पर जोर दिया। उत्तराखंड के वनों पर शोध करने वाले शोधार्थी जन्मजय मिश्रा ने स्थानीय जनों को प्रशिक्षित किये जाने पर जोर देते हुए कहा कि आज पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली के लिए जैव विविधता को बचाने की आवश्यकता है। पत्रकार दिनेश गुसाईं ने वन प्रबंधन में जन भागीदारी पर जोर दिया। वेबिनार में वन क्षेत्रीयाधिकारी पोखडा राखी जुयाल ने भी प्रतिभाग किया। आयोजक सुभाष चंद्र नौटियाल ने वेबिनार में उपस्थित सभी जनों का आभार व्यक्त करते वन विभाग के उच्च अधिकारियों के द्वारा जन संवाद स्थापित न करने तथा मानव-वन्यजीव संघर्ष  के स्थायी समाधान के प्रति उदासीन रहने पर चिन्ता व्यक्त की।


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें