राष्ट्रीय युवा दिवस पर विशेष
स्वामी विवेकानंद एक महान व्यक्तित्व
संग्रह एवं प्रस्तुति-- राजीव थपलियाल (प्रधानाध्यापक)
.यह तो हम सभी लोग बहुत अच्छी तरह से जानते ही हैं कि, हर वर्ष 12 जनवरी का दिन समूचे भारतवर्ष में पूरे उत्साह,उमंग और खुशी के साथ राष्ट्रीय युवा दिवस, “युवा दिवस“ या यूं कहें कि- “स्वामी विवेकानंद जन्म दिवस“ के रूप में मनाया जाता है। पौष कृष्णा सप्तमी तिथि के मौके पर 12 जनवरी सन 1863 को स्वामी विवेकानंद का जन्म कोलकता में विश्वनाथ दत्त औऱ भुवनेश्वरी देवी के घर में हुआ था।इनके बचपन का नाम नरेंद्रनाथ दत्त था।स्वामी विवेकानंद का जन्म दिवस हर वर्ष रामकृष्ण मिशन के केन्द्रों पर, रामकृष्ण मठ और उनकी कई शाखा केन्द्रों पर भारतीय संस्कृति और परंपरा के अनुसार मनाया जाता है।राष्ट्रीय युवा दिवस के रुप में स्वामी विवेकानंद के जन्म दिवस को मनाने के लिये वर्ष 1984 में भारत सरकार द्वारा इसे पहली बार घोषित किया गया था। तब से पूरे देश भर में राष्ट्रीय युवा दिवस के रुप में इसे मनाने की शुरुआत हुई।
स्वामी विवेकानंद का दर्शन और उनके आदर्शों की ओर देश के सभी युवाओं को प्रेरित करने के लिये भारत सरकार द्वारा ये फैसला किया गया था। हम यह भी भली-भांति जानते हैं कि,हमारे देश की लगभग 65 करोड़ युवा आबादी है।जिनमें से 35.6 करोड़ युवा 15 से 24 वर्ष की आयु वाले हैं। यह आबादी कुल आबादी का लगभग 28þ है।भारत को विकसित देश बनाने के लिये,युवाओं की अनन्त ऊर्जा को जागृत करने के लिये, उन्हें हर समय प्रोत्साहित किये जाने के प्रयास प्रत्येक स्तर पर चलते रहने चाहिए।
राष्ट्रीय युवा दिवस के मौके पर बच्चों और युवाओं को प्रोत्साहित करने के उद्देश्यों को लेकर विभिन्न प्रकार के खेल, सेमिनार, निबंध-लेखन, योगासन, पोस्टर प्रतियोगिता, गायन, संगीत, स्वामी विवेकानंद के जीवनवृत्त पर भाषण प्रतियोगिता, परेड आदि का आयोजन किया जाता है। देश की विभिन्न नामी संस्थाओं द्वारा भारतीय युवाओं/विद्यार्थियों को प्रेरित करने के लिये स्वामी विवेकानंद के विचारों से संबंधित व्याख्यानों का आयोजन किया जाता है ।
देश के कई स्थानों में इस मौके को यादगार बनाने के लिए-- कार्यक्रम की शुरुआत भोर में पवित्र माता श्री शारदा देवी, श्री रामाकृष्णा, स्वामी विवेकानंद और स्वामी रामकृष्णनंदा की पूजा के साथ होती है। भक्तों और पुजारियों के द्वारा पूजा के बाद एक बड़ा हवन किया जाता है। उसके बाद भक्तगण पुष्प अर्पित करते हैं और स्वामी विवेकानंद की आरती करते हैं। और अंत में प्रसाद वितरण किया जाता है।यह दृष्य बड़ा ही आनंददायी होता है।
मिशन भारतीयम के द्वारा सभी उम्र समूह के लोगों के लिये द्वि दिवसीय कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। इस कार्यक्रम में दर्जनों मनोरंजक क्रियाएँ शामिल होती हैं।और इसे बस्ती युवा महोत्सव के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन को सरकारी, गैर-लाभकारी संगठन के साथ ही कॉरपोरेट समूह अपने तरीके से मनाते हैं। स्वामी विवेकानंद के विचार, दर्शन भारत की महान सांस्कृतिक और पारंपरिक संपत्ति है। इसमें तनिक भी संदेह नहीं है कि,युवा देश के महत्वपूर्णं अंग हैं, जो देश को आगे बढ़ाने का काम करते हैं।इसी वजह से स्वामी विवेकानंद के आदर्शों और विचारों के सफल क्रियान्वयन हेतु,सबसे पहले युवाओं को चुना जाता है।
स्वामी विवेकानंद जी सभी को प्रेरित करने के लिए अक्सर कहा करते थे कि-
“उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो“
.स्वामी विवेकानंद के विचार ऐसे हैं कि--एक निराश व्यक्ति भी अगर उन विचारों को पढ़े, और आत्मसात करने का प्रयास करे तो, उसे जीवन जीने का एक नया मकसद मिल सकता है।
आइये हम सब मिलकर स्वामी विवेकानंद जी के अनमोल विचारों से रूबरू होने की कोशिश करते हैं।
1. जब तक जीना, तब तक सीखना, अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है.
2. जितना बड़ा संघर्ष होगा जीत उतनी ही शानदार होगी.
3. पढ़ने के लिए जरूरी है एकाग्रता, एकाग्रता के लिए जरूरी है ध्यान. ध्यान से ही हम इन्द्रियों पर संयम रखकर एकाग्रता प्राप्त कर सकते है.
4. पवित्रता, धैर्य और उद्यम- ये तीनों गुण मैं एक साथ चाहता हूं.
5. उठो और जागो और तब तक रुको नहीं जब तक कि तमु अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं कर लेते.
6. ज्ञान स्वयं में वर्तमान है, मनुष्य केवल उसका आविष्कार करता है.
7. एक समय में एक काम करो , और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमे डाल दो और बाकी सब कुछ भूल जाओ.
8. जब तक आप खुद पे विश्वास नहीं करते तब तक आप भागवान पे विश्वास नहीं कर सकते.
9.ध्यान और ज्ञान का प्रतीक हैं भगवान शिव, सीखें आगे बढ़ने के सबक
10. लोग तुम्हारी स्तुति करें या निन्दा, लक्ष्य तुम्हारे ऊपर कृपालु हो या न हो, तुम्हारा देहांत आज हो या युग में, तुम न्यायपथ से कभी भ्रष्ट न हो.
शिकागो में स्वामी विवेकानंद जी द्वारा दिए गए भाषण के कुछ अंश........... अमेरिका वासी मेरे भाइयों और बहनों आपने जिस स्नेह के साथ हम लोगों का स्वागत किया हैं उसके प्रति आभार प्रकट करने के निमित्त खड़े होते समय मेरा हृदय हर्ष से पूर्ण हो रहा हैं. संसार में संन्यासियों की सबसे प्राचीन परम्परा की ओर से मैं आपको धन्यवाद देता हूँ, और सभी सम्प्रदायों एवं मतों के कोटि कोटि हिन्दुओं की ओर से भी धन्यवाद देता हूँ मैं इस मंच से बोलने वाले उन कतिपय वक्ताओं के प्रति भी धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ जिन्होंने आपको यह बतलाया है कि सुदूर देशों के ये लोग सहिष्णुता का भाव विविध देशों में प्रचारित करने के गौरव का दावा कर सकते हैं।
मैं एक ऐसे धर्म का अनुयायी होने में गर्व का अनुभव करता हूँ जिसने संसार को सहिष्णुता तथा सार्वभौम स्वीकृत- दोनों की ही शिक्षा दी है।हम भारतीय लोग सब धर्मों के प्रति केवल सहिष्णुता में ही विश्वास नहीं करते वरन समस्त धर्मों को सच्चा मान कर स्वीकार करते हैं।
मुझे ऐसे देश का व्यक्ति होने का अभिमान है जिसने इस पृथ्वी के समस्त धर्मों और देशों के उत्पीड़ितों और शरणार्थियों को आश्रय दिया है , मुझे आपको यह बतलाते हुए गर्व होता हैं कि हमने अपने ह््रदय में उन यहूदियों के विशुद्धतम अवशिष्ट को स्थान दिया था जिन्होंने दक्षिण भारत आकर उसी वर्ष शरण ली थी जिस वर्ष उनका पवित्र मन्दिर रोमन जाति के अत्याचार से धूल में मिला दिया गया था।
ऐसे धर्म का अनुयायी होने में, मैं गर्व का अनुभव करता हूँ जिसने महान जरथुष्ट जाति को शरण दी और जिसका पालन वह अब तक कर रहा है। भाईयों मैं आप लोगों को कुछ पंक्तियाँ सुनाता हूँ जिसकी आवृति मैं बचपन से कर रहा हूँ और जिसकी आवृति प्रतिदिन लाखों मनुष्य किया करते हैं।
रुचीनां.वैचित्र्यादृजुकुटिलनानापथजुषाम्। नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव।।
अर्थात जैसे विभिन्न नदियाँ भिन्न-भिन्न स्रोतों से निकलकर समुद्र में मिल जाती हैं उसी प्रकार हे ईश्वर, भिन्न- भिन्न रुचि के अनुसार विभिन्न रास्ते से जाने वाले लोग अन्त में तुझमें ही आकर मिल जाते हैं।
यहां पर यह कहना समीचीन होगा कि,यह सभा, जो अभी तक आयोजित सर्वश्रेष्ठ पवित्र सम्मेलनों में से एक है स्वतः ही गीता के इस अद्भुत उपदेश की घोषणा करती है।
ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्। मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः।।
अर्थात जो कोई मेरी ओर आता है,
चाहे किसी प्रकार से हो,
मैं उसको प्राप्त होता हूँ,
लोग भिन्न-भिन्न मार्गों द्वारा प्रयत्न करते हुए अन्त में मेरी ही ओर आते हैं।
साम्प्रदायिकता, हठधर्मिता और उनकी वीभत्स वंशधर धर्मान्धता इस सुन्दर पृथ्वी पर बहुत समय तक राज्य कर चुकी है।
ये सब वो कारक हैं जो पृथ्वी को हिंसा से भरते रहे हैं।सभ्यताओं को नष्ट करते हुए पूरे के पूरे देशों को निराशा के गड्डे में डालते रहे हैं।
यदि ये राक्षसी शक्तियाँ न होती तो मानव समाज आज की अवस्था से कहीं अधिक उन्नत हो गया होता, पर अब उनका समय आ गया है और मैं आन्तरिक रूप से आशा करता हूँ कि आज सुबह इस सभा के सम्मान में जो करतल ध्वनि हुई है वह समस्त धर्मान्धता का,तलवार या लेखनी के द्वारा होने वाले सभी उत्पीड़नों का तथा एक ही लक्ष्य की ओर अग्रसर होने वाले मानवों की पारस्पारिक कटुता का मृत्यु निनाद सिद्ध हो।
(नोट-- इस आलेख को तैयार करने में इंटरनेट तथा अन्य संदर्भों की मदद भी ली गई
(लेखक राजकीय प्राथमिक विद्यालय मेरोड़ा विकासखंड- जयहरीखाल जनपद-- पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड हैं।)
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