सिद्धपीठ ज्वाल्पा देवी - TOURIST SANDESH

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मंगलवार, 16 जून 2020

सिद्धपीठ ज्वाल्पा देवी

              सिद्धपीठ ज्वाल्पा देवी                   

सुधी पाठकों चलिये आज मैं आपको लिये चलता हूँ अपने  नैसर्गिक सौंदर्य के लिए विश्वविख्यात पुण्यतोया भारत वसुंधरा के 27 वें प्रान्त उत्तराखंड में, राष्ट्र के सजग प्रहरी पर्वतराज हिमालय की सुरम्य और मनमोहक वादियों में अवस्थित पौड़ी गढ़वाल की तरफ।साथ ही कुछ रोचक जानकारियों से अवगत होने का प्रयास करेंगे माँ ज्वाल्पा देवी मंदिर के बारे में।पौड़ी से 34 किलोमीटर तथा कोटद्वार से 73 किलोमीटर की दूरी पर पौड़ी,सतपुली कोटद्वार राष्ट्रीय राजमार्ग पर पाटीसैण से थोड़ी ही दूरी पर सड़क से नीचे की ओर माँ ज्वालपा देवी का बहुत ही पुराना भब्य एवं आकर्षक मंदिर स्थित है और प्राचीन समय से श्रद्धालुओं के लिए धार्मिक आस्था का केन्द्र रहा है। माँ ज्वाल्पा देवी मंदिर के बारे में पौराणिक मान्यतायें हैं कि,यहां  देवी ने 12 साल की कन्या के रूप में जन्म लिया था,और बहुत सारे पुराने लोगों द्वारा यह भी कहा जाता है कि,आदिगुरू शंकराचार्य ने यहां माँ की पूजा की थी, तब माँ ने प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए। कुछ लोगों द्वारा यह भी बताया गया है कि 18 वीं शताब्दी में गढ़वाल के राजा प्रद्युम्न शाह ने ज्वाल्पा देवी मंदिर को 11.82 एकड़ जमीन दान में दी थी। इसका मुख्य कारण था कि, यहां अखंड दीपक जलाने के लिए तेल की व्यवस्था हेतु सरसों का उत्पादन हो सके। मंदिर के एक तरफ मोटर मार्ग और दूसरी ओर नयार नदी बहती है। यहां के बेहतरीन और खूबसूरत नज़ारे को देखकर हर श्रद्धालु तथा पर्यटक मंत्रमुग्ध हो जाता है। इस सिद्धपीठ में चैत्र और शारदीय नवरात्रों में विशेष पूजा-पाठ का आयोजन होता है। इस मौके पर देश-विदेश से बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। खासतौर पर अविवाहित कन्याएं सुयोग्य वर की कामना लेकर यहाँ आती हैं। माँ ज्वाल्पा देवी थपलियाल और बिष्ट जाति के लोगों की कुलदेवी है। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि माँ ज्वालपा देवी का मंदिर धरती के  सबसे जागृत मंदिरों में से एक है।
 यह मंदिर नवालिका नदी जिसे बाल गंगा भी कहते हैं,के किनारे पर स्थित लगभग 350 मीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है | यह मंदिर देवी पार्वती (दुर्गा का अवतार) को समर्पित है , इस मंदिर का निर्माण स्वर्गीय श्री बूथा राम अंथवाल के पिता श्री दत्ता राम अंथवाल ने कराया था। वर्तमान समय में मंदिर की देखभाल और निर्माण कार्य “अंथवाल समिति” और “ज्वाल्पा देवी मंदिर समिति” के द्वारा किया जाता है | माँ ज्वालपा देवी मन्दिर के भीतर उपलब्ध लेखों के अनुसार “ज्वालपा देवी” सिद्धपीठ की मूर्ति “आदिगुरू शंकराचार्य जी” के द्वारा स्थापित की गई थी । मंदिर में श्रद्धा भाव से आने वाले अपने  भक्तों की हर इच्छा को देवी माँ पूर्ण करती है।इस मंदिर में नवरात्रि के अवसर पर बड़ी धूम -धाम से पूजा अर्चना की जाती है और उत्सव मनाया जाता है।यहां पर सुन्दर मन्दिर के अतिरिक्त भव्य मुख्यद्वार, तीर्थयात्रियों की सुविधा हेतु धर्मशालायें, स्नानघाट, शोभन स्थली व पक्की सीढ़ियां बनी हुई हैं।कफोलस्यूं पट्टी के ग्राम अणेथ में पूर्वी नयार के तट पर स्थित माँ ज्वाल्पा देवी का यह धाम भक्तों व श्रद्धालुओं के लिए पूरे वर्षभर खुला रहता है।  इस एक मंजिला मंदिर में माता अखंड जोत के रुप में गर्भ गृह में विराजमान है। मंदिर परिसर में यज्ञ कुंड भी है।अण्थवाल जाति के ब्राह्मण यहां के मुख्य पुजारी होते हैं।माँ के धाम के आस-पास हनुमान मंदिर, शिवालय, काल भैरव मंदिर, माँ काली आदि का मंदिर भी स्थित हैं।ज्वालपाधाम की स्थापना कब और कैसे हुई इस प्रश्न को लेकर कई विद्वानों के विभिन्न मत हैं। बहुत से पुराने लोग कांगड़ा की ज्वालामाई से ज्वालपा देवी के आगमन को मानते हैं।  तो कुछ लोग नमक के बोरे में लिंग रूप में माता के उत्पन्न होने की कथा का वर्णन करते हैं। परन्तु विभिन्न विद्वानों द्वारा जनश्रुतियों के आधार को न मानकर स्कन्दपुराण के अनुसार पुलोमा पुत्री शची प्रकरण को इस धाम की महत्ता का आधार माना गया है।
स्कन्दपुराण के अनुसार सतयुग में दैत्यराज पुलोम की पुत्री शची ने देवराज इन्द्र को पति रूप में प्राप्त करने के लिये ज्वालपाधाम में हिमालय की अधिष्ठात्री देवी पार्वती की तपस्या की थी। माँ पार्वती ने शची की तपस्या से प्रसन्न होकर उसे दीप्त ज्वालेश्वरी के रूप में दर्शन दिये और शची की मनोकामना पूर्ण की। देवी पार्वती का दैदीप्यमान ज्वालपा के रूप में प्रकट होने के प्रतीक स्वरूप अखण्ड दीपक निरंतर मन्दिर में प्रज्वलित रहता है। अखण्ड ज्योति को प्रज्वलित रखने की परंपरा आज भी लगातार चल रही है। इस प्रथा को यथावत रखने के लिये प्राचीन काल से ही निकटवर्ती गांव से तेल एकत्रित किया जाता है। इसी भूमि पर आज भी सरसों की खेती कर अखण्डज्योति को जलाये रखने के लिये तेल प्राप्त किया जाता है।
ज्वाल्पा धाम में सुन्दर मन्दिर के अतिरिक्त भव्य एवं आकर्षक मुख्यद्वार,और इस द्वार के आस-पास नजदीकी गांवों अनेथ कोला, पिपली, पल्ली आदि के ग्रामीणों द्वारा अपनी आजीविका हेतु स्थापित दुकानें,तीर्थयात्रियों की सुविधा हेतु धर्मशालायें, स्नानघाट, शोभन स्थली व पक्की सीढ़ियां बनी हुई हैं। इसके अलावा प्रतिष्ठित संस्कृत विद्यालय भवन, छात्रावास व विद्यालय में अध्ययनरत लगभग 200 विद्यार्थियों के लिये सुविस्तृत क्रीड़ास्थल,आस-पास के गांवों के लिए पीने योग्य पानी पहुंचाने के लिए  पम्पिंग योजना,बागवानी आदि का भी निर्माण किया गया है। यहां शिवरात्रि, नवरात्र व बसंतपंचमी के मौके पर मेले लगते हैं। माँ ज्वालपा मन्दिर के भीतर उपलब्ध जानकारियों के अनुसार ज्वालपा देवी सिद्धिपीठ की मूर्ति आदिगुरू शंकराचार्य जी के द्वारा स्थापित की गई थी। माँ ज्वालपा की एतिहासिकता की वास्तविकता कुछ भी हो परन्तु,आज यहां यह शक्तिपीठ गढ़वाल के देवी भक्तों का एक पूजनीय सिद्धपीठ बन चुका है। लोग यहां श्रद्धास्वरूप अपनी मनोकामनायें लेकर आते हैं,माता के दर्शन करते हैं, माँ का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं,और यहाँ की प्राकृतिक सुषमा को निहारने के बाद प्रफ्फुल्लित होकर अपने-अपने गंतब्य स्थानों की ओर लौट जाते हैं।                                                 प्रस्तुति एवं संग्रह -- 
राजीव थपलियाल 
सहायक अध्यापक गणित 
राजकीय आदर्श प्राथमिक विद्यालय सुखरौ देवी कोटद्वार  पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड

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