अब का - रोना ? - TOURIST SANDESH

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बुधवार, 17 जून 2020

अब का - रोना ?

पव्वा दर्शन
                                                    
                              अब का - रोना ?
चैते की चैत्वली की हन्त्या कोरोना के रूप में जगत भर में नाच रही है। अब तक कई जिन्दगियों को लील चुकी ये हन्त्या जाने क्या गुल खिलायेगी कहना मुश्किल है। वैसे तो माना जाता है कि, हन्त्या भारत में नाचती थी तथा इसके लिए पहले जागरी बुलाये जाते थे। हन्त्या की विशेष अवसरों पर पूजा की जाती थी। तब जाकर हन्त्या शान्त होती थी। अब समय बदल चुका है। इसीलिए अबके भारत में ही नहीं बल्कि अमेरिका, इटली, ब्रिटेन सहित विश्व के सभी देशों में हन्त्या के भयक्रान्त कराती कोरोना प्रचंड वेग पर है। सुना है कोरोना रूपी हन्त्या का जन्म चीन मे हुआ तथा वहीं सें विश्वभर में इसका विस्तार हुआ। वैज्ञानिकों ने चमगादड़ों से कोरोना रूपी हन्त्या की उत्पति का कारण माना है। हमारा मानना है कि, ये शायद वही चमगादड़ रहे होगें, जो पव्वा के रूप में सत्ता प्रतिष्ठानों से चिपक कर अन्धेरा कायम रहे का सन्देश पूरे विश्व को देते रहे हैं। चमगादड़ो के मेहमान भी चमगादड़ो के समान ही रात्रिचर होते हैं तथा दिन में उल्टा लटक कर आराम फरमाते है। कोरोना रूपी हन्त्या से विश्व का मानव भयभीत होकर डरा-सहमा घर में ताले के अन्दर बन्ध होने पर मजबूर हैं। कहते हैं,जान है तो जहान है, इसी वाक्य का अक्षरसः अक्षर पालन करते हुए सभी जन तालाबन्धी को ही सही मान रहे हैं। सरकार भी खुश है, कि जनता के ताले की चाबी उनके हाथ में है। जब चाहे खोल दें, जब चाहे बन्ध कर दें। सरकार अपनी सुविधानुसार चाबी का प्रयोग कर रही है। क्योंकि आर्थिकी भी आवश्यक है इसलिए सरकार किसी को तो आर्थिक डोज के रुप में पैकेज दे रही है,तो किसी को रेल की पटरियों पर मरने के लिए छोड देती है। आखिर सरकार तो सरकार है। चाबी भी उसके हाथ है तो जब चाहे तब वो कर दो। अब सरकार ही हमारी भाग्य-विधाता है कि, आम जन इस तालाबन्धी से कब मुक्त होगें ? वही तय करेगी। जो रंग-बिरंगे सपने आमजन ने अपने-अपने लिए देखे थे, कोरोना रूपी हन्त्या ने उन्हें अपना ग्रास बना लिया है। जब जीवन में सपने ही नहीं रहें तो फिर अब का-रोना? अब जीने का एक ही मकसद बचा है खाना-पीना और सोना। परन्तु खाने की जुगत तो भिड़ानी ही पड़ती है। सो हमें दिन-रात ये चिन्ता सताये जा रही है कि, अब क्या होगा कैसे घर-ग्रहस्थी चलेगी? तो राजनीति के पव्वे हमें निरन्तर घर में रहने की नसीयत दे रहे हैं। सरकार का भय दिखा रहें है। चाहे स्वयं मौज-मस्ती में व्यस्त हों परन्तु हमारे लिए दिन-रात ज्ञान की धाराऐ बहा रहे हैं। हम सोच रहे कि, करें तो क्या करें ना निगलते बन रहा है, ना उगलते बन रहा है। हम कभी बाहर आने का साहस भी करते हैं तो राजनीति के पव्वे का ज्ञान हमें फिर चुप करा देता है। हम डरे-सहमें अन्दर ही अन्दर दुबके हुए हैं। सुना है कभी सार्वजनिक स्थानों पर चोर-डाकू मुंह ढक कर आते-जाते थे। परन्तु समय का फेर देखिये आज हर कोई मुंह ढके हुए है यानि कि सारी मानव जाति; मानव जाति के प्रति ही शंकित हो चुकी है। जरा सा बाहर निकलो तो आस-पास के लोग मुंह ढक कर ऐसी नजरों से देखते है कि, शायद इन्हीं पर हन्त्या नाचने वाली हो। बाहर हन्त्या नाच रही है और अन्दर राशन के डब्बें उल्टे लटक रहे हैं। श्रीमती जी रोज कह रहें अजी सुनते हो राशन कब लाओगे। अब क्या बतायें कोई जबाब हो तो बतायें। बदरु दिदा से चलभाष पर कल ही बात हुई तो बता रहे थे देखो क्या जमाना आ गया है। कभी सुना था, आज देख भी लिया। करे कोई और भरे कोई। बीमारी तो लाये अमीर और भुगत रहे हैं गरीब। तभी ठीक ही कहा गया है - 
 समरथ को दोष नहीं गांसाईं  
सामर्थ्यवान का कभी दोष नहीं होता। लोकतंत्र में दोषी तो बेचारी जनता ही होती है। अब देखो ना जो धरा का संरक्षण करने के बजाय दोहनवादी बने वही अब हमें संरक्षण का ज्ञान बांट रहे हैं। नौ सौ चूहे खा के बिल्ली हज को चली।
सेनेटाइज करने तथा मास्क पहनने से कुछ नहीं होगा। यदि बीमारी से बचना है तो शाकाहार और संस्कारित जीवन जीने की आवश्यकता है। जीवन में आवश्यकताओं को कम करते हुए स्वच्छ, साफ और शुद्धता की आवश्यकता है। वास्तव यही कोरोना रूपी हन्त्या को भागाने का आसान तरीका है। परन्तु क्या हम इसके लिए तैयार हैं? अब हम आधुनिक हो चुके हैं, संरक्षणवादी से दोहनवादी हो चुके हों, अध्यात्म से भौतिकवादी हो चुके हैं। मालिक और मजदूर बन चुके हैं। जिन्होंने येन-केन-प्रकारेण  प्राकृतिक संन्साधनों पर कब्जा जमा दिया  वो मालिक कहलाये तथा जो दिन-रात मेहनत करते रहे वो कामगार शिल्पी मजदूर कह लाये। कामगार कोल्हू के बैल की तरह 12  धंटे तक जुता रहेगा तथा अपने मालिक की जेब भरता रहेगा। उसे जिन्दा रखने के लिए मालिक उस पर एहसान जतायेगा। यदि मर ही गया तो बाजार से सस्ते भाव में दूसरा बैल खरीद लायेगा। हमने कोरोना भगाने के लिए ताली बजायी, थाली बजाई, टॉर्च चमकाई, मोमबत्ती तथा दीया भी जलाया फिर भी कोरोना तुम न गये, अब आ ही गये हो तो अब का-रोना। रामराज आते-आते  जब रावण राज आ ही गया तो फिर अब का-रोना। भौतिकता के रस-राग में डूबे आराम परस्त इस जीवन शैली में जब कोरोना आ ही चुका है तो अब का-रोना।

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