कण्वाश्रमः जहां स्थित है भारत का राष्ट्रीय तीर्थ - TOURIST SANDESH

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रविवार, 16 फ़रवरी 2020

कण्वाश्रमः जहां स्थित है भारत का राष्ट्रीय तीर्थ

कण्वाश्रमः जहां स्थित है भारत का राष्ट्रीय तीर्थ

- सुभाष चन्द्र नौटियाल
 

 किसी भी राष्ट्र की पहचान उसके राष्ट्र गौरव से होती है। राष्ट्र का गौरव राष्ट्र की ऐसी सांस्कृतिक धरोहर होती है जो सदियों से रीति-रिवाजों, परम्पराओं तथा संस्कारों में ढलकर संस्कृति का अभिन्न अंग बन जाता है। संस्कृति, संस्कारों में ढलकर मानव व्यवहार से पारिलक्षित होती है। कण्वाश्रम न सिपर्फ भारत का बल्कि सम्पूर्ण विश्व का वह स्थान है जहां से सर्वप्रथम मानवीय संस्कृति के बीज प्रस्पफुटित हुए। वसुधैव कुटम्बकम् का मंत्रा हो सर्व भवन्तु सुखिनः सर्व सन्तु निरामया। सर्व भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित दुःख भाग्यभवेत के मंत्रों का प्रस्पफुट सर्वप्रथम इसी कण्वाश्रम की धरती से हुआ है। ज्ञान धाराओं का उद्गम स्थल कण्वाश्रम में नांलदा तथा तक्षशिला से भी पूर्व विश्व का प्रथम विश्व विद्यालय स्थापित था। जहां विश्व के 10,000 विद्यार्थी तत्कालीन समय में विद्याध्ययन हेतु आते थे।
कभी सनातनी संस्कृति का आधार तथा विश्व में मानवीय संस्कृति का प्रथम केन्द्र कण्वाश्रम ना सिपर्फ भारत का राष्ट्रतीर्थ है बल्कि सम्पूर्ण विश्व के लिए मानवीय संस्कृति का प्रथम केन्द्र भी है। भले ही वर्त्तमान समय में देव संस्कृति का यह केन्द्र भी है। भले ही वर्तमान समय में वैदिक संस्कृति का यह केन्द्र उपसंस्कृति का दंश झेलते हुए इतिहास के पन्नों में गुम होता हुआ दिखायी दे रहा हो परन्तु इस सच्चाई से इंकार नहीं किया जा सकता है कण्वाश्रम ही विश्व का वह प्रथम स्थान रहा है जहां से सर्वप्रथम मानवीय संस्कृति के बीज प्रस्पफुति हुए तथा यहीं से पुष्ठता एवं बलिष्ठता को प्राप्त करते हुए सम्पूर्ण विश्व में प्रकीर्णित हुए। मालिनी घाटी से प्रस्पफुटित हुई यही ज्ञान धाराओं की प्रकाश लौ आज सम्पूर्ण विश्व को आलोकित कर रही है। मानवीय संस्कृति को जाग्रत करने वाला यह स्थान भले ही आज उपेक्षित हो परनतु कभी यहां वेद की )चाएं गुंजाएमान हुआ करती थी। )ग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अर्थवेद के कण्व )षियों द्वारा प्रतिपादित मंत्रों का उल्लेख आज भी वेदों में यथावत् है। कण्वसंहिता कण्वाश्रम की धरोहर है। कण्वाश्रम ही भारतीय राष्ट्रीय तीर्थ के रूप में स्थापित किया जा सकता है। कण्वाश्रम के बारे में अनविज्ञता इस राष्ट्र के नागरिकों की सबसे बड़ी समस्या रही है। भारत के चार धार्मिक स्थलों जगन्नाथ पुरी ;ओडीसाद्ध, रामेश्वर ;तमिलनाडुद्ध द्वारिका ;गुजरातद्ध, तथा बद्रीनाथ ;उत्तराखण्डद्ध के साथ ही राष्ट्र का पांचवा धाम राष्ट्रीय तीर्थ कण्वाश्रम ही है। देश के नागरिकों का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि आज इस राष्ट्रीय तीर्थ के बारे में राष्ट्र के अधिकांश नागरिक अनभिज्ञ हैं। अपनी धरोहर के प्रति अनविज्ञता किसी भी देश, समाज तथा राष्ट्र की धरोहर नहीं होती उस की कोई पहचान नहीं होती है। ऐसे समाज तथा राष्ट्र के नागरिक गुलाम मानसिकता का जीवन बसर करते हैं। यही कथन भारत के नागरिकों पर भी लागू होता है। जो राष्ट्र का नागरिक स्वयं की पहचान को भूल चुका हो क्या ऐसा व्यक्ति राष्ट्र का नागरिक कहलाने योग्य है? भारत के बार-बार गुलाम होने की यही कारण रहा है कि हम स्वयं की पहचान भूलते जा रहे हैं। यही गलतियां हम बार-बार करते रहे हैं। यही कारण है कि आज हम गुलाम मानसिकता के शिकार हो चुके हैं। गुलाम मानसिकता के आदि होने के कारण ही हम कण्वाश्रम के वैभवता से अनभ्ज्ञिता प्रकट करते हैं विश्व के मानव को गायत्रा मंत्रा देने वाले )षि विश्वमित्रा तथा अप्सरा मेनका का प्रणय स्थल भी कण्वाश्रम रहा है। जिनके मिलन से शकुन्तला का जन्म हुआ तथा यौवन अवस्था को प्राप्त करने के पश्चात् यही स्थल शकुन्तला तथा हस्तिनापुर नरेश दुष्यंत का प्रणय स्थल भी बना शकुन्तला तथा दुष्यंत के मिलन सर्वदमन की उत्पत्ति हुई। यही सर्वदमन आगे चलकर भरत कहलाया। भारत ने ही सम्पूर्ण भारत वर्ष को एक सूत्रा में पिरोया इसीलिए चक्रवर्ती सम्राट भरत कहलाया। भारत यानि कि भरत का देश। इसी चक्रवर्ती सम्राट भरत के नाम पर ही हमारे देश का नाम भारत पड़ा। मालीनी नदी का उद्गम स्थल मलनियां बडोल गांव की पहाड़ियों से लेकर रावलीघाट तक मालिनी संस्कृति के अवशेष यग-तंत्रा मिल जाते हैं बस आवश्यकता है तो उन्हें समेटने की। इसी मालिनी नदी के तट पर ही मानवीय संस्कृति का केन्द्र तथा भारत का राष्ट्रीय तीर्थ कण्वाश्रम स्थित है। कण्वाश्रम के पास ही आयुर्वेद के जनक चरक )षि विश्व के प्रथम शल्य चिकित्सक सुश्रुत की कर्मस्थली चरेख डांडा भी स्थित है। शिवालिक पर्वत श्रृंखला के माणिद्वीप तथा हेमकूट पर्वतों के मध्य स्थित कण्वाश्रम एवं सुरम्य घाटी में स्थित है। कभी उत्तराखण्ड के चारों धामों गंगोत्रा, यमनोत्रा, केदारनाथ, बद्रीनाथ के लिए यात्रा करने वाले यात्रियों के लिए हरिद्वार के बाद कण्वाश्रम दूसरा पड़ाव हुआ करता था तथा बिना कण्वाश्रम आये यात्रा अधूरी मानी जाती थी परन्तु समय बीतने के साथ ही उसमें परिवर्तन हो चुका है। प्रत्येक भारतीय नागरिक को जिसे अपने भारतीय होने पर गौरव की अनुभूति होती है उसे जीवन में कण्वाश्रम की यात्रा अवश्य करनी चाहिए।

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