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मंगलवार, 4 दिसंबर 2018

प्राणियों के अस्तित्व पर बढ़ता खतरा
प्रभुनाथ शुक्ल
एक कहावत है ‘जैसी करनी वैसी भरनी’ यानी इंसान जो कर्म करता है उसका फल उसे मिलता है। यह प्रकृति निष्पादित सिद्धांत है। लेकिन इंसान की भोगवादी संस्कृति हमें महाप्रलय की ओर धकेल रही है। हम विज्ञान और विकास का हरिकीर्तन कर भले सार्वभौमिक सृष्टि पर जीत का दावा कर रहे हैं लेकिन यह हमारे लिए चुनौती है। अभी हम विचारों के अंधकूप में पड़े हैं। इंसान एक निश्चित वैश्विक विचारधारा की ओर बढ़ रहा है। वह आज की चिंता कर रहा है। कल क्या होगा उसे पता नहीं। वह प्रकृति पर विजय करने या पाने का नग्न तांडव कर रहा है। हमारे सामने उत्तराखण्ड और नेपाल की त्रासदी का कोई समाधान नहीं दिख रहा है। हम ब्रहमांड और उसके रहस्यों के खोज में खुद का अस्तित्व भूलते जा रहे हैं। हमें स्वयं पता नहीं है कि आज की स्थिति में हम जहां पहुंच गए हैं वहां से निकलना संभव नही है। बाजारवाद की संस्कृति और ग्लोबलवाद ने हमें उलझा दिया है। यह मकड़ी का जाला है। जितनी बार हम निकलने का प्रयास करेंगे। उतना अधिक हम फंसते जाएंगे। कल आने वाली पीढ़ी हमें कोसेगी। वह हमारे विकासवाद को खुद के अस्तित्व के संकट के रूप में देखेगी। सवाल उठ रहा है कि क्या धरती महाप्रलय की ओर बढ़ रही है। जीव जंतुओं के लिए खतरा पैदा हो गया है। अगर यह वैज्ञानिक रिपोर्ट सच है तो आने वाला दिन हमारे जीवन और धरातलीय जीवों के लिए संकट का होगा। विज्ञान की मशहूर पत्रिका जर्नल साइंस एडवांस में प्रकाशित रिपोर्ट को अगर सच मान लिया जाय तो यह धरती पर जीवधारियों के लिए बड़ा खतरा है। अमेरिका के वाशिंगटन से छपे शोध में यह तथ्य चौंकाने वाले आए हैं। इस टीम का नेतृत्व नेशनल आटोनोमस यूनिवर्सिटी आपफ मैक्सिकों के वैज्ञानिक ग्रेरार्डो कैबालोस ने किया है। हांलाकि दूसरे वैज्ञानिकों ने कैबालोस की रिपोर्ट को तथ्य से परे बताया है। शोध का खंडन करने वाले वैज्ञानिकों का दावा है कि इस तरह की रिपोर्ट को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया जाता है। यह सच्चाई के उतनी करीब नहीं होती है। लेकिन इस शोध को सिरे से खारिज करना भी हमारी अक्लमंदी नहीं होगी। क्योंकि दुनिया भर में ग्लोबल वार्मिंग का खतरा तेजी से बढ़ा है। जिसका नतीजा है कि धरती के तापमान में कापफी वृ( हुई है। इस साल लू ने जमकर कहर बरपाया है। हजारों लोग लू लगने से अपनी जान गवां चुके हैं। 2040 तक इसमें बारह गुना बढ़ोत्तरी की संभावना जतायी गयी है। हालिया प्रकाशित वैज्ञानिक शोध में कहा गया है कि धरती के इतिहास के विशाल प्राणी डायनासोर का विलुप्त होना हमारे लिए किसी चुनौती से कम नहीं है। आखिर लाखों साल पहले डायनासोर धरती पर पाए जाते थे। यह भी कहा गया है कि इतना विशाल प्राणी आकाश में उड़ता भी था। इससे यह साबित होता है कि धरती पर जलवायु परिवर्तन के कारण डायनासोरों का अस्तित्व खत्म हो गया। बढ़ती आबादी, जंगलों का विनाश इस संकट के लिए जिम्मेदार है। हमारे बीच से कई जीव-जंतुओं का अस्तित्व खत्म हो चला है। पर्यावरण मित्रा नाम से मशहूर गि( एक है। शोध में वैज्ञानिकों की ओर से कहा गया है कि 6.5 करोड़ साल बाद दुनिया महाप्रलय की ओर बढ़ रही है। पृथ्वी के जीव इतिहास में लगभग 3.5 अरब वर्ष 50 से 96 पफीसदी जीवों का विनाश हो चुका है। इसके लिए उल्कापिंडों और ज्वालामुखी को जिम्मेदार ठहराया गया है। यह भी दावा किया गया है कि जीवों के विलुप्त होने की गति एक हजार से 10 हजार गुना तक है। इसमें सभी प्रकार के जीवों जिसमें स्तनपायी, सरीसृप, चिड़िया और दूसरी प्रजातियां हैं। यह शोध पिछले 500 सालों में आए परिवर्तन पर आधारित है। केवल 100 सालों में यह बताया गया है कि 477 प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं। यह आंकड़ा महज साल 1900 से है। इससे भी चौंकाने वाली बात यह है कि जानकारी में रहने वाली 75 पफीसदी प्रजातियां दो पीढ़ियों के बीच में समाप्त हो चली हैं। इसके पीछे कार्बन उत्सर्जन मुख्य कारण माना जा रहा है। धरती पर होने वाले जलवायु परिवर्तन में इसकी खास भूमिका है। समय रहते अगर इंसानों इस तरह की वैज्ञानिक शोधों पर गौर नहीं किया तो डायनासोर जैसे विशालकाय प्राणी की तरह धरतीर पर जीवों और मानव का अस्तित्व खत्म हो जाएगा। शोध में यह बताया गया है कि इससे पहले पांच बार में धरती पर निवास करने वाले बहुतायत जीव समाप्त हो चुके हैं। साढ़े छह करोड़ साल पहले आए पहले महाविनाश में डायनासोर विलुप्त हो गए थे। जिसमें पेड़ पौधे और दूसरे जीवजंतु शामिल थे। दूसरा महाविनाश 20 करोड़ पूर्व आया जिसमें 34 पफीसदी जलचर और अन्य प्रजातियों का विनाश हुआ। जबकि 25.2 करोड़ वर्ष पहले 96 प्रतिशत जलचर और 70 पफीसदी रीढ़ वाली थलचर प्रजातियां समाप्त हो गयी। 36 से 37 करोड़ वर्ष पूर्व आया इस महाविनाश में शोध के अनुसार 19 जीव समूहों की 50 पफीसदी प्रजातियां धरती से जल से महाविनाश की जद में आकर खत्म हो चली। पांचवी बार जो तबाही जीवजंतुओं के लिए आयी वह 44 करोड़ वर्ष पहले आयी। जिसमें सबसे अधिक समुद्री अकशेरुकी समुद्री जीवों का विनाश हुआ। इंसान अगर प्रकृति से तालमेल नहीं बना सका तो उसका अस्तित्व खत्म हो जाएगा। प्रकृति की चेतावनी को हमें समझने की जरुरत है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं। समुद्र के जलस्तर में वृ( हो रही है। जबकि जमीन के अंदर का पेयजल घट रहा है। शु( पेयजल के संबंध में आयी हालिया रिपोर्ट हमें चौकाने वाली हैं इस तरपफ सरकार, सामाजिक संस्थाएं और इंसान का कोई ध्यान नहीं दे रहा है। नदी की तलहटियों में दरारें पड़ गयी हैं। दक्षिण और मध्य भारत की नदियों की स्थिति और कुछ को छोड़ बुरी हो सकती है। धरती पर बढ़ता प्रकृति का गुस्सा हमारे लिए खतरा बन गया है। भूकंप, बाढ़, सूखा, भू-स्खलन के बाद अब लू अस्तित्व मिटाने को तैयार है। प्राकृतिक विनाशलीला का सबसे बड़ा उदाहरण हमारे सामने पुणे का मलिन गांव हैं। जहां पिछले साल पहाड़ खिसकने से पूरा गांव जमीनदोज हो गया था। गांव का पता ही नहीं चला। नेपाल में आए भूकंप की तबाही हम देख चुके हैं। प्रकृति हमें अपने तांडव से बार-बार चेतावनी दे रही है। लेकिन हम हैं की उसकी ओर ध्यान ही नहीं दे रहे हैं। जिससे स्थिति बुरी हो चली है। औद्योगिक संस्थानों, सड़कों, पुलों और शहरीकरण के चलते वनों का सपफाया हो रहा है। वन भूमि का विस्तार घट रहा है। राष्ट्रीय राजमार्ग निर्माण के लिए आम और दूसरे पुराने वृक्षों को धाराशायी किया जा रहा है। जिसका असर है कि धरती का तापमान बढ़ रहा हैं इस पर हमें गंभीर चिंतन और चिंता करने की आवश्यकता है। वरना इंसान का वजूद अपने आप मिट जाएगा। जिसकी नींव इंसान ने डाल दी है। साल दर साल धरती पर प्रकृति का नग्न तांडव बढ़ता जाएगा। यह स्थिति अभी बन रही है। धरती का कोई न कोई हिस्सा इस प्राकृतिक आपदा से प्रभावित हो रहा है। लेकिन हम इस ओर ध्यान नहीं दे पा रहे हैं। हमें विकास के बदले विनाश का जो तोहपफा मिल रहा है। उस ओर हमारा ध्यान नहीं है। यह मानव जीवन और उसकी सभ्यता के लिए बड़ा खतरा है। इस स्थिति में हम वैज्ञानिक शोधों को एकदम से झूठला नहीं सकते हैं। यह शोध हमारे लिए चेतावनी और चुनौती हैं। वक्त रहते इस पर विचार नहीं किया गया तो वह समय दूर नहीं जब पूरी मानवता और उसकी सभ्यता पर संकट खड़ा हो जाएगा। यह हमारे लिए सबसे विचारणीय बिंदु है। -नवोत्थान लेख सेवा 

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