इको फ्रेंडली शहर विकसित करने की आवश्यकता
उत्तराखण्ड में 84 नगर निकायों के चुनाव की प्रक्रिया जारी है। अपनी जीत को सुनिश्चित करने के लिए प्रत्याशी तरह-तरह के दावे-प्रतिदावे कर रहे हैं। चुनाव मैदान में हर प्रत्याशी जंग जीतने के लिए भरसक प्रयास कर रहा है। अपने इन प्रयासों में उसके द्वारा किये गये वह दावे भी शामिल हैं जिन्हें वह जनता को लुभाने के लिए करता है। उत्तराखण्ड के जनमानस को तय करना है कि किसके दावे सही व खरे है तथा किस पर विश्वास किया जाये। इसके साथ ही आम जनमानस को यह भी तय करना है कि प्रत्याशी द्वारा किये जा रहे दावे इस राज्य की संस्कृति के अनुकुल हैं। ज्ञात हो कि उत्तराखण्ड का आम जनमानस सदियों से प्रकृति का संरक्षक रहा है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण यह ह कि यहां 71 फीसदी वनीय भू-भाग है। यह क्षेत्र जैव विविधता के लिए विश्व प्रसिद्ध है। उत्तराखण्ड की संस्कृति आदिकाल से ही पर्यावरण संरक्षण का संदेश देती आ रही है। आज जबकी शहरी सोच विकसित हो रही है तो इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि ईको फ्रेन्डली शहर विकसित किये जायें। उत्तराखण्ड में ईको फ्रेन्डली शहर विकसित करने का अनुकूलतम महौल है। यदि यह सम्भव हो पाया तो हमारे ईको फ्रेंडली शहर दुनिया के लिए आदर्श होंगे। यहां की संस्कृति मूल रूप से प्रकृतिसम्मत रही है। विकास के नाम पर शहरी सोच हावी होने के कारण आज का मानव प्रकृति के प्रति उदासीन हो चला है। प्राकृतिक संसाधनों का निर्ममता पूर्वक दोहन होने के कारण प्राकृतिक जल स्रोत, नदी, वायु, भूजल आदि पर्यावरण अवयव भयावह स्तर तक प्रदूषित हुए हैं। अत्याधिक शहरीकरण की सोच के कारण आज के मानव का स्वयं के अस्तित्व का संकट आन पड़ा है। उत्तराखण्ड की मूल संस्कृति जिसमें पर्यावरण संरक्षण समाया हुआ है। इस संस्कृति से आत्मसात् कर ईको फ्रेंडली शहरों को विस्तार दिया जा सकता है। उत्तराखण्ड में ऐसे साफ-स्वच्छ शहर विकसित किये जा सकते हैं जिन्हें ऑक्सीजन हब के रूप में जाना जाय ताकि बाहर से आने वाला हर पर्यटक आत्मिक आनन्द की अनुभूति कर सके। यदि शासन-प्रशासन तथा स्थानीयजन इस दिशा में गम्भीर हो कर कार्य करता है तो निश्चित रूप से आने वाले समय में यहां ईको फ्रेंडली शहरों की अवधारणा को मूहर्त्त रूप दिया जा सकता हैं
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