लाल बहादुर शस्त्री - TOURIST SANDESH

Breaking

गुरुवार, 27 सितंबर 2018

लाल बहादुर शस्त्री

लाल बहादुर शस्त्री 
जय जवान, जय किसान का नारा बुलंद करने वाले भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री भारत के ऐसे लाल हुए जिनकी ईमानदारी, सत्य निष्ठा, कत्तर्व्य परायणता तथा जुझारूपन की मिशालें पूरे विश्व में प्रतिष्ठित हुई। इस लाल ने न सिर्फ भारत को बल्कि पूरे विश्व को अपनी ईमानदारी एवं कत्तर्व्य निष्ठा के ज्ञान से पूरे विश्व को आलौकिक किया। जय जवान, जय किसान का नारा देकर देश में जवान और किसान की महत्ता का एहसास पूरे जनमानस को कराया लाल बहादुर शास्त्री जानते थे कि सीमा का प्रहरी तथा अन्नदाता किसान वास्तव में देश की रीढ़ है  यदि देश का विकास करना है तो हमें अपनी इस रीढ़ को मजबूत करना होगा। जवान और किसान की इसी महत्ता का दृष्टिगत रखते हुए देश के इस लाल ने जय जवान जय किसान का नारा दिया। लाल बहादुर शास्त्री द्वारा दिये गये इस नारे की गूंज आज भी सुनाई दे रही है तथा आम जन द्वारा महसूस की जा रही है। वास्तव में शास्त्री देश के ऐसे प्रधानमंत्री हुए जिनका बाल्यकाल गरीबों की गलियों से गुजरकर सत्ता के शीर्ष तक पहुंचा। 
  लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में हुआ था। उनके पिता का नाम शारदा प्रसाद व माता का नाम रामदुलारी देवी थी। शास्त्री जी के पिता एक स्कूल के अध्यापक थे बाद में उन्होंने अध्यापक की नौकरी छोड़ कर आयकर विभाग में क्लर्क की पोस्ट पर नौकरी की। गरीब होने के बावजूद शारदा प्रसाद अपनी ईमानदारी व शराफत के लिए जाने जाते थे। शास्त्री जी के जन्म के 1 वर्ष के बाद ही उनके पिता का देहांत हो गया उनकी माता रामदुलारी ने ने ही शास्त्री जी व उनकी दोनों बहनों का पालन पोषण किया। शास्त्री जी जब मात्र छः वर्ष के थे तब उनके साथ एक घटना घटित हुई। वह जब विद्यालय से अपने दोस्तो के साथ घर जा रहे थे तो दोस्तों के कहने पर वह सब आम के बगीच.े में आम तोड़ने चले गये। जैसे ही वह सब आम तोड़ रहे थे बगीचे का माली वहां आ गया और उसने शास्त्री जी को पकड़ लिया। उन्होंने जैसे ही शास्त्री जी को डाटना और मारना शुरू किया तो वैसे ही शास्त्री जी ने कहा मुझे जाने दे मैं एक अनाथ हूं। तब माली ने शास्त्री जी पे दया दिखाते हुए कहा कि ‘चूंकि तूम अनाथ हो इसलिए तूम्हारे लिए यह जरूरी है कि तूम अच्छा आचारण सीखो‘ इन शब्दों ने शास्त्री जी पर एक गहरी छाप छोडी व शास्त्री जी ने उस दिन से एक बेहतर व्यवहार करने की कसम खाई। शास्त्री जी ने अपनी छः तक की पड़ाई अपने दादा के घर से की उसके बाद वह पढ़ने के लिए वाराणसी चले गये।  1921 में जब महात्मा गांधी ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ असहयोग आंदोलन की शुरुआत की तब लाल बहादुर शास्त्री मात्र 17 साल के थे। जब महात्मा गांधी ने युवाओं को सरकारी स्कूलों और कॉलेजों, दफ्तरों और दरबारों से बाहर आकर आजादी के लिए सब कुछ न्योछावर करने का आह्वान किया तब उन्होंने अपना स्कूल छोड़ दिया। लाल बहादुर को असहयोग आंदोलन के दौरान गिरफ्तार भी किया गया पर कम उम्र के कारण उन्हें छोड़ दिया गया।
जेल से छूटने के पश्चात लाल बहादुर ने काशी विद्यापीठ में चार साल तक दर्शनशास्त्र की पढाई की। वर्ष 1926 में लाल बहादुर ने “शास्त्री” की उपाधि प्राप्त कर ली। तत् पश्चात वो “द सर्वेन्ट्स ऑफ़ द पीपल सोसाइटी” से जुड़ गए जिसकी शुरुआत 1921 में लाला लाजपत राय द्वारा की गयी थी। इस सोसाइटी का प्रमुख उद्देश्य उन युवाओं को प्रशिक्षित करना था जो अपना जीवन देश की सेवा में समर्पित करने के लिए तैयार थे। 1927 में लाल बहादुर शास्त्री का विवाह ललिता देवी के साथ हुआ। 
1930 में गांधी जी द्वारा चलाये गये सविनय अवज्ञा आंदोलन में ने बढ ़चढ़ की प्रतिभाग किया। उन्होंने लोगों को सरकार को भू-राजस्व और करों का भुगतान न करने के लिए प्रेरित किया। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और ढाई साल के लिए जेल भेज दिया गया। जेल में वो पश्चिमी देशों के दार्शनिकों, क्रांतिकारियों और समाज सुधारकों के कार्यों से परिचित हुए। वह बहुत ही आत्म सम्मानी व्यक्ति थे। एक बार जब वह जेल में थे उनकी एक बेटी गंभीर रूप से बीमार हो गयी। अधिकारीयों ने उन्हें कुछ समय के लिए इस शर्त पर रिहा करने की सहमति जताई कि वह यह लिख कर दें कि वह इस दौरान किसी भी स्वतंत्रता आंदोलन में भाग नहीं लेंगे। लाल बहादुर जेल से कुछ समय के लिए रिहा होने के दौरान स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के इच्छुक नहीं थे फिर भी उन्होंने कहा कि वह यह बात लिख कर नहीं देंगे। उनका मानना था कि लिखित रूप में देना उनके आत्म सम्मान के विरुद्ध है।
1939 में दूसरे विश्व युद्ध शुरू होने के बाद सन 1940 में कांग्रेस ने आजादी कि मांग करने के लिए “एक जन आंदोलन” प्रारम्भ किया। लाल बहादुर शास्त्री को जन आंदोलन के दौरान गिरफ्तार कर लिया गया और एक साल के बाद रिहा किया गया। 8 अगस्त 1942 को गांधीजी ने भारत छोड़ो आंदोलन का आह्वान किया। उन्होंने इस आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। इसी दौरान वह भूमिगत हो गए पर बाद में गिरफ्तार कर लिए और फिर 945 में दूसरे बड़े नेताओं के साथ उन्हें भी रिहा कर दिया गया। उन्होंने 1946 में प्रांतीय चुनावों के दौरान अपनी कड़ी मेहनत से पंडित गोविन्द वल्लभ पंत को बहुत प्रभावित किया। लाल बहादुर की प्रशासनिक क्षमता और संगठन कौशल इस दौरान सामने आया। जबगोविन्द वल्लभ पंत उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री बने तो उन्होंने लाल बहादुर को संसदीय सचिव के रूप में नियुक्त किया। 1947 में शास्त्रीजी पंत मंत्रिमंडल में पुलिस और परिवहन मंत्री बने।
भारत के गणराज्य बनने के बाद जब पहले आम चुनाव आयोजित किये गए तब लाल बहादुर शास्त्री कांग्रेस पार्टी के महासचिव थे। कांग्रेस पार्टी ने भारी बहुमत के साथ चुनाव जीता। 1952 में जवाहर लाल नेहरू ने लाल बहादुर शास्त्री को केंद्रीय मंत्रिमंडल में रेलवे और परिवहन मंत्री के रूप में नियुक्त किया। तृतीय श्रेणी के डिब्बों में यात्रियों को और अधिक सुविधाएं प्रदान करने में लाल बहादुर शास्त्री के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। उन्होंने रेलवे में प्रथम श्रेणी और तृतीय श्रेणी के बीच विशाल अंतर को कम किया। 1956 में लाल बहादुर शास्त्री ने एक रेल दुर्घटना की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए मंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया। जवाहरलाल नेहरू ने शास्त्रीजी को मनाने की बहुत कोशिश की पर लाल बहादुर शास्त्री अपने फैसले पर कायम रहे। अपने कार्यों से लाल बहादुर शास्त्री ने सार्वजनिक जीवन में नैतिकता के एक नए मानक को स्थापित किया ।
अगले आम चुनावों में जब कांग्रेस सत्ता में वापस आयी तब लाल बहादुर शास्त्री परिवहन और संचार मंत्री और बाद में वाणिज्य और उद्द्योग मंत्री बने। वर्ष 1961 में गोविन्द वल्लभ पंत के देहांत के पश्चात वह गृह मंत्री बने । सन 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान शास्त्रीजी ने देश की आतंरिक सुरक्षा बनाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
1964 में जवाहरलाल नेहरू के मरणोपरांत सर्वसम्मति से लाल बहादुर शास्त्री को भारत का प्रधान मंत्री चुना गया। यह एक मुश्किल समय था और देश बड़ी चुनौतियों से जूझ रहा था। देश में खाद्यान की कमी थी और पाकिस्तान सुरक्षा के मोर्चे पर समस्या खड़ा कर रहा था। 1965 में पाकिस्तान ने भारत पर हमला कर दिया। कोमल स्वभाव वाले लाल बहादुर शास्त्री ने इस अवसर पर अपनी सूझबूझ और चतुरता से देश का नेतृत्व किया। सैनिकों और किसानों को उत्साहित करने के लिए उन्होंने “जय जवान, जय किसान” का नारा दिया। पाकिस्तान को युद्ध में हार का सामना करना पड़ा और शास्त्रीजी के नेतृत्व की प्रशंसा हुई।
जनवरी 1966 में भारत और पाकिस्तान के बीच शांति वार्ता के लिए ताशकंद में लाल बहादुर शास्त्री और अयूब खान के बीच हुई बातचीत हुई। भारत और पाकिस्तान ने रूसी मध्यस्थता के तहत संयुक्त घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए। संधि के तहत भारत युद्ध के दौरान कब्ज़ा किये गए सभी प्रांतो को पाकिस्तान को लौटने के लिए सहमत हुआ। 10 जनवरी 1966 को संयुक्त घोषणा पत्र हस्ताक्षरित हुआ और उसी रात को दिल का दौरा पड़ने से लाल बहादुर शास्त्री का निधन हो गया।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें