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घेन्जा : मोटे अनाजों को समर्पित उत्तराखण्ड का लोकपर्व
घेन्जवाड़ी से तैयार पकवान

सुभाष चन्द्र नौटियाल
शान्त स्वभाव, मृदुभाषी, कर्मठ, राष्ट्रीय हितों के लिए समर्पित, सदैव सजग जागरूक नागरिक तथा स्थानीय लोकपरम्पराओं के जानकार शान्ति प्रसाद नौटियाल(सेवानिवृत ज्वांइट कमिश्नर,राज्य कर विभाग उत्तराखण्ड) मोटे अनाजों को समर्पित उत्तराखण्ड का स्थानीय लोकपर्व ‘घेन्जा’ को पुनर्जीवित करने के लिए सोशल मीडिया में निरन्तर सक्रिय हैं। श्री नौटियाल ‘घेन्जा’ के प्रचार-प्रसार के लिए न केवल सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं बल्कि राज्य तथा केन्द्रीय शासन-प्रशासन को विद्यिवत् जानकारी उपलब्ध कराने के लिए सम्बन्धित अधिकारियों से पत्राचार भी कर रहे हैं। जैसा की विदित ही है कि, भारत के प्रयासों से वर्ष 2023 को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मोटे अनाज वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है। पौष्टिकता से भरपूर मोटे अनाजों का न सिर्फ नियमित सेवन पर जोर दिया जा रहा है बल्कि उनके उत्पादन बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है।
भारत देश सांस्कृतिक विविधता वाला देश है। भारत देश के सम्बन्ध में एक कहावत प्रचलित है- कदम-कदम पर बदले पानी, कोश-कोश पर बानी। यहां रीति-रिवाज, भाषा, खान-पान, परम्परा थोड़ी-थोड़ी दूरी पर बदल जाती हैं। देश की यही विविधता सम्पूर्ण विश्व में भारत को अद्वितीयता प्रदान करती है। यहां पर मनाये जाने वाले पर्व, व्रत, त्यौहार न सिर्फ मौसम की अनुकूलता लिए हुए हैं बल्कि प्रकृति से आत्मसात् भी करते हैं।
देश की आध्यात्मिक संस्कृति का केन्द्र हिमालयी राज्य उत्तराखण्ड भारत की इस विविधता में श्रेष्ठता के चार चांद लगाता है। इस राज्य के कण-कण में देवत्व का वास होने के कारण ही भारत का यह क्षेत्र देवभूमि कहता है। यहां पर मौसम के अनुकूल मनाये जाने वाले व्रत, पर्व, त्यौहार प्रकृति का संरक्षण एवं सम्वर्द्धन करते हुए किसी न किसी लोकहितकारी देवता के लिए समर्पित हैं। इस क्षेत्र की फसल चक्र तथा बारह नाजा पद्धति वास्तव में प्रकृति के साथ अनुकूलता लिए हुए हैं। कभी इस क्षेत्र में मोटे अनाजों का बहुत अच्छा उत्पादन हुआ करता था परन्तु क्षेत्र में पलायन होने के कारण उत्पादन में निरन्तर गिरावट आयी है तथा फसल चक्र भी बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। आधुनिकता की चकाचौंद ने इस क्षेत्र में अपनाये जाने वाले फसल चक्र के साथ-साथ परम्परागत त्यौहारों का वास्तविक स्वरूप भी बदल कर रख दिया है।
भारत की पहल पर सम्पूर्ण विश्व वर्ष 2023 को मोटे अनाज वर्ष के रूप में मना रहा है। ऐसे समय में पुनः उन त्यौहारों को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है जिन्हें कभी इस क्षेत्र में धूमधाम से मनाया जाता रहा है परन्तु क्षेत्र से पलायन होने के कारण विलुप्ति के कगार पर हैं। मोटे अनाजों का उत्पादन बढ़ाने के लिए इस प्रकार के पर्व न सिर्फ हमारे प्रेरणा स्रोत बन सकते हैं बल्कि पौष्टिकता से भरपूर गुणवत्ता पूर्ण इन अनाजों का दैनिक जीवन में सेवन करने से मानसिक तथा शरीरिक रूप से स्वस्थ तथा समृद्धि को भी प्राप्त किया जा सकता है।
कब मनाया जाता है घेन्जा पर्व?
घेन्जा, घेन्जड़ी, घुरड़ तथा दणयोण के नाम जाने जाने वाला पर्व घेन्जा पौष या धर्नुमास के अन्तिम तीन दिन 28, 29 तथा 30 गते(जनवरी माह में लगभग 11, 12, 13 तारीख) को या मकर संक्रान्ति से पूर्व के तीन दिनों में मनाया जाता है।
किस देवता को समर्पित है लोकपर्व घेन्जा?
यह पर्व मूल रूप से भूदेवी को समर्पित है। भूदेवी की विधिवत् पूजा अर्चना कर घेन्जा का भोग प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। पृथ्वी को भगवान विष्णु की पत्नी माता लक्ष्मी के स्वरूप में माना गया है। मान्यता है कि, इस काल में बारिश से पूर्व धरती माता रजस्वला होती है तथा भूदेवी को आराम देने के लिए इस काल में खेती-बाड़ी से सम्बन्धित सभी कार्य बन्द कर दिये जाते हैं तथा माता लक्ष्मी की समर्पण भाव से पूजा-अर्चना की जाती है। माना जाता है कि, ऐसा करने से पृथ्वी की उपजाऊ क्षमता में वृद्धि होती है तथा अनाजों का उत्पादन भी बढ़ जाता है।
कहां मनाया जाता है घेन्जा पर्व?
उत्तराखण्ड राज्य के उच्च हिमालयी क्षेत्रों मूलतः टिहरी, उत्तरकाशी, चमोली तथा रूद्रप्रयाग के केदारघाटी क्षेत्र में यह त्यौहार मनाया जाता है।
कैसे बनता है घेन्जा पर्व का भोग?
मंडुवा, झंगोरा, कोणी, ज्वार, चिणा, बाजरा, मक्का तथा चावल की कनकी को या घर पर उपलब्ध मोटा अनाज को चक्की में पिसाई कर तैयार किया जाता है, जिसे स्थानीय भाषा में घेन्जवाड़ी कहा जाता है। इस प्रकार से तैयार घेन्जवाड़ी के विभिन्न प्रकार के पकवान तैयार किये जाते हैं। घेन्जवाड़ी से विभिन्न प्रकार पकवान तैयार कर माता लक्ष्मी का भोग बनाया जाता है। घेन्जवाड़ी से विभिन्न प्रकार के नमकीन, मीठा तथा सादे पकवान बनाये जाते हैं। इस प्रकार के पकवानों को बनाने में घी, तेल तथा किसी भी प्रकार के ऑयल या वनस्पति घी का प्रयोग नहीं किया जाता है बल्कि पकवान भाप से तैयार किये जाते हैं। घेन्जा के दोनों तरफ नींबू/गलगल/सन्तरा/माल्टा के हरे पत्ते लगाकर भाप दी जाती है।
स्थानीय लोकपरम्परा
स्थानीय लोकपरम्परा के अनुसार ध्याणियों( शादीशुदा बेटियों या बहनों) को साल में दो बार मायके बुलाकर उन्हें कलयो-कण्ड़ी(मायके की सौगात) भेंट की जाती है। जिसमें पूष माह का यह त्यौहार भी शामिल है।
सरकार क्या करे?
मोटे अनाजों के उत्पादन में वृद्धि करने के लिए सरकार पूरे भारत वर्ष में स्थानीय स्तर पर मनाये जाने वाले इस प्रकार के पर्वो को प्रोत्साहन दे सकती है साथ ही प्रत्येक राज्य सरकार की भी जिम्मेदारी बनती है कि, मोटे अनाजों का उत्पादन बढ़ाने के लिए एक रोड मैप तैयार करे तथा अपने कृषको को प्रोत्साहित करने के लिए सब्सिडी की व्यवस्था भी की जा सकती है। साथ ही मोटे अनाजों के सेवन से होने वाले लाभों का जनसामान्य में अधिक से अधिक प्रचार-प्रसार करे।
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