कोरोना काल में मानवीय संवेदनाओं का स्पंदन - TOURIST SANDESH

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रविवार, 4 जुलाई 2021

कोरोना काल में मानवीय संवेदनाओं का स्पंदन

 पुस्तक समीक्षा

कोरोना काल में मानवीय संवेदनाओं का स्पंदन 

सुभाष चन्द्र नौटियाल


एक ओर कोरोना कोविड-19 जैसी वैश्विक महामारी ने पूरे विश्व को हिला कर रख दिया है तथा इस महामारी के कारण अब तक करोडों लोग असमय काल के गाल में समा चुके हैं तो वहीं दूसरी ओर आधुनिकता की ओर उन्मुख होता मानव आज के युग में मानवीय संवेदनाओं से विहीन होकर एक मशीन में प्रवर्तित होता जा रहा है। ऐसे समय में जब की मानव अति स्वार्थ के वशीभूत होकर व्यक्तिवाद की चाशनी में डूबता ही जा रहा है तथा वह प्रकृति प्रदत्त सह-अस्तित्व को भूलते हुए आत्ममुग्घता का शिकार हो चुका है तो यह महामारी मानवीय संवेदनाओं के लिए पुनः जागरण काल भी माना जा सकता है। महामारी अभी समाप्त नहीं हुई है बल्कि नित नये रूप धर कर प्रकट हो रही है। इस वैश्विक महामारी को मानवीय संवेदनाओं से जोड़कर पूर्व प्रधानाचार्य बिनोद चन्द्र कुकरेती ने लेखनी के माध्यम से प्रकट किया है। सहज, सरल, ओजस्वी वाणी के धनी, शिक्षाविद् एवं समाज सेवा में सदैव अग्रणी रहने वाले श्री कुकरेती द्वारा रचित लघु विचार पुस्तिका ’’वैश्विक महामारी कोविड-19 तथा मानवीय संवेदनाएं’’ एक विचार परख पुस्तिका है। लेखक द्वारा इस पुस्तिका का लेखन वर्त्तमान में जारी वैश्विक महामारी कोविड-19 तथा मानवीय संवेदनाओं को दृष्टि में रखकर किया गया है। पुस्तिका में सामाजिक के साथ-साथ आध्यात्मिक पक्ष को भी उजागर किया गया है। पुस्तिका में मानवीय संवेदनाओं का स्पंदन को इतिहास की घटना से जोड़कर 1962 के भारत-चीन के युद्ध के समय को याद करते हुए लेखक लिखते हैं - हमें बहुत अच्छी तरह याद है कि, 1962 के चीन सीमा युद्ध के समय भारत के प्रत्येक नागरिक ने देश के हाथों को मजबूत करने के लिए प्राण-पण से कमाई गई अपनी सम्पत्तियां देश को दान कर दी थी। पौड़ी के रामलीला मैदान में तत्कालीन उत्तर प्रदेश के राज्यपाल के आगमन पर महिलाओं ने अपने आभूषण उतार कर उन्हें देश की आपात निधि हेतु दान कर दिये थे। 1971 के साक्षात् खूबसूरत दृश्य तो हम सबके जेहन में है।’’ आज के वर्त्तमान समाज में मौजूद मानवीय संवेदनाओं से विहीन मौजूद कुछ लोग जो आपदा में कमाई का अवसर ढं़ूढ़ रहे हैं। उनको धिक्कारते हुए लेखक सवाल उठाते हुए लिखते हैं - ’’महामारी से लड़ने के दौर में राजनैतिक विद्वेष, अन्धी कमाई के लिए कुछ भी कर लेने की प्रवृत्ति, अपने-अपनों की ही चिन्ता करना कहां इस प्यारे देश को विश्व के सामने खड़ा कर रहा है?’’

मानवीय संवेदनाओं को लेखक ने तीन भागों में बांटा है - पहले प्रकार में वे लोग शामिल हैं जो मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण होकर इस महामारी काल में तन-मन-धन से जनसेवा के कार्यों में जुट गये। दूसरे प्रकार में वे लोग शामिल हैं जो मानवीय संवेदनाओं से विहीन होकर आपदा में गिद्ध दृष्टि जमाये हुए कमाई  का अवसर ढ़ूढ़ रहे हैं तथा मानवता का उपहास उडा रहे हैं। तीसरी श्रेणी में पीड़ित व्यक्ति के परिवारजन हैं। इस मुश्किल घड़ी में संयुक्त परिवार की पुरानी अवधारण को भी बल मिलता है। इसमें भी लेखक ने दो श्रेणियां विभाजित की हैं। पहली श्रेणी में वे परिजन हैं जिहोंने घर के पीड़ित सदस्य की न सिर्फ देखभाल की बल्कि पूर्णरूप से भावनात्मक सहयोग भी प्रदान किया। दूसरी श्रेणी में वे परिवार के जन हैं जिन्होंने घर के संक्रमित व्यक्ति को ही अस्पृश्य मानकर भोजन की थाली तक देहरी से खिसका कर रख दिया।

लेखक ने लघु पुस्तिका में गागर में सागर भरने का कार्य करते हुए सामाजिक, आध्यत्मिक, मनोवैज्ञानिक तथा दार्शनिक पक्ष भी प्रस्तुत करने का शानदार प्रंयास किया है। साद्यारण पन्नों में छपी यह लद्यु पुस्तिका निश्चित रूप से आत्मा को झकझोरती है। लेखक द्वारा पुस्तिका का मूल्य पाठकों का स्नेह और आशीर्वाद रखा गया है।

1 टिप्पणी:

  1. श्रद्धेय नौटियाल जी द्वारा, मेरी लघु विचार पत्रिका पर किये गए सारगर्भित विश्लेषण ने मुझे निश्चित रूप से भावी विचारों को प्रकाशित करने हेतु प्रेरित करने हेतु प्रेरित किया है । आश्वस्त हूं कि यदि परिस्थितियां अनुमति देंगी तो निश्चित रूप से कुछ सार्थक विचार प्रस्तुत करने का प्रयास करूंगा।
    नौटियाल जी को नीर क्षीर विश्लेषण हेतु आभार ।🙏

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