लालढांग-चिल्लरखाल : बंधी आस, बन पायेगा खास या फिर होगा आमजन निराश
कोटद्वार। कण्वनगरी की फिजा फिर से अंगूरी होने लगी है। गुलाबी सपनों की रंगत फिर हवा में तैरने लगी है। राज्य में धीरे-धीरे बढ़ने वाली चुनाव की ओर बहती बयार अब लालढांग-चिल्लरखाल मार्ग की खबरें साथ लेकर आयी है। राज्य में चुनावी दस्तक होते ही बहुप्रतीक्षित लालढांग-चिल्लरखाल मार्ग का सुदृढ़ीकरण की खबरें सुर्खियां बटोरने लगती हैं। ऐसा पहली बार नहीं है कि,जब राज्य में चुनावी साल में इस मार्ग की बात न हो। चुनाव से पूर्व हर बार लालढांग-चिल्लरखाल का जिन बाहर आ जाता है तथा चुनाव पूरे होते ही किसी कोने में डाल दिया जाता है। इस बार इस मार्ग के निर्माण के लिए केन्द्र सरकार ने भी मानको में शिथिलीकरण कर दिया है। राज्य के अनुरोध पर केन्द्र सरकार की यह एक अच्छी पहल है तथा इस पहल से इस मार्ग के निर्माण में सुगमता आयेगी। केन्द्र सरकार की ओर से मानकों में हुए इन शिथिलीकरण को आधार बना कर राज्य के जनप्रतिनिधियों में श्रेय लेने की होड़ लगी हुई है। यदि केन्द्र सरकार द्वारा निर्धारित मानकों का पालन करते हुए बिना किसी लाग लपेट के इस मार्ग का निमार्ण किया जाता है तो कम से कम दो साल लग सकते हैं जबकि वर्त्तमान राज्य सरकार के पास सिर्फ आठ माह का कार्यकाल ही शेष बचा है। इन आठ माह में राज्य सरकार इस मार्ग का निमार्ण कैसे सम्भव कर पायेगी यह देखने वाला विषय है।
क्या हुआ मानकों में शिथिलीकरण ?
अब जबकि इस मार्ग निर्माण में आ रही बड़ी बाधा को केन्द्र ने दूर कर दिया है तो राज्य सरकार इस छूट का लाभ लेते हुए कितनी जल्दी इस बहुप्रतिक्षित मार्ग का निर्माण कार्य पूर्ण करती है, यह देखने वाला विषय है।
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