गणेश सिंह गरीब : उत्तराखण्ड में चकबन्दी का नायक - TOURIST SANDESH

Breaking

सोमवार, 28 जून 2021

गणेश सिंह गरीब : उत्तराखण्ड में चकबन्दी का नायक

 गणेश सिंह गरीब : उत्तराखण्ड में चकबन्दी का नायक

गणेश सिंह गरीब देश के सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण क्षेत्र उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों से पलायन को रोकने, क्षेत्र को आत्मनिर्भर, स्वाभिमान, स्वावलम्बी तथा स्वरोजगार की अलख जगाने वाले एक सशक्त हस्ताक्षर हैं। 70 के दशक से  ही क्षेत्र में पलायन को रोकने के लिए वोकल फॉर लोकल के लिए प्रयासरत तथा भूमि सुधार एंव चकबन्दी के माध्यम से स्वावलम्बी, आत्मनिर्भर पहाड़ को ही जीवन का मिशन बनाने वाले गणेश सिंह गरीब 84 साल की आयु में आज भी निरन्तर सक्रिय हैं। तत्कालीन उत्तर प्रदेश तथा 9 नवम्बर सन् 2000 को नवसृजित राज्य उत्तराखण्ड में अब तक गठित सभी सरकारों ने उनके मिशन को सैद्धान्तिक स्वीकृति प्रदान कर उनके कार्य को न सिर्फ मान्यता प्रदान की बल्कि पलायन को रोकने के लिए प्रभावी भी माना है। 

उन्होंने सन् 1974 से निरन्तर पहाडों से पलायन को रोकने के लिए भूमि सुधार एवं चकबन्दी के लिए ना सिर्फ आवाज बुलन्द की बल्कि चकबन्दी का स्वयं भी एक उदाहरण प्रस्तुत किया। विषम भौगोलिक परिस्थितियां, पहाड़ीनुमा खेत, ढलान वाले बुग्याल, रपटीली राहें और गाड-गधेरों की विरासत वाले उत्तराखण्ड प्रदेश के पहाड़ी भूभाग में कई दशकों से खण्ड-खण्ड में विभाजित होकर काश्तकारों के खेत टुकड़े-टुकड़े होकर आज कई खण्ड़ो में विखर गये हैं। वर्तमान में कई खण्डों में बटें खेती के टुकडों में खेती, बागवानी, उद्यानगी, वानकी तथा कृषि से सम्बन्धित अन्य कार्य करना पशुपालन आदि भी न तो परम्परागत तरीके से सम्भव हो पा रहा है और न ही वैज्ञानिक दृष्टिकोण से लाभ का सौदा बन पा रहा है। ऐसी स्थिति में खेती में आधुनिक तकनीकी का प्रयोग एक सपना जैसे लगता है। इसी विडम्बना के कारण पहाडों में निरन्तर खेत बंजर होते जा रहे हैं तथा अनचाहा पलायन का दंश भी इस पहाड़ी प्रदेश को झेलना पड़ रहा है। पर्वतीय जनो की इसी पीड़ा को महसूस करते हुए तथा उसके समाधान के लिए सन् 1974 में दिल्ली सेवानगर में रेडियो वर्कशॉप चलाने वाले एक युवक के मन में उत्तराखण्ड के पहाड़ों अवस्थित बिखरे खेतों को तोक में बदलने की तीव्र इच्छा जाग्रत हुई। दरअसल पलायन और निरन्तर बंजर होते खेतों का दर्द महसूस करते हुए आपने यह बीड़ा उठाया जिसे आज भी आप आगे बढ़ा रहे हैं। सन् 1974 से आपने देश की राजधानी नई दिल्ली से अपने प्रयास शुरू किये तथा चकबन्दी की बारीकियों को समझने के लिए उत्तर प्रदेश तथा हिमाचल प्रदेश के चकबन्दी कानूनों के साथ-साथ केन्द्र सरकार तथा विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा समय-समय पर किये गये भूमि सुधारों का अध्ययन किया तथा पाया कि यदि पहाडों में पूर्ण चकबन्दी की जाती है तो पहाड़ों में फिर से आर्थिक, राजनैतिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक समृद्धि लौट सकती है । पहाड़ो से पलायन की समस्या का स्थायी समाधान भूमि सुधार एवं चकबन्दी ही है। यही कारण है कि, पर्वतीय क्षेत्रों में चकबन्दी को ही आपने अपने जीवन का लक्ष्य बना दिया। आपके प्रथम प्रयास के तहत् आप की पहल पर सन् 1975 मे पहली बार अखिल भारतीय गढ़वाली प्रगतिशील संगठन ने पर्वतीय क्षेत्रों में चकबन्दी किये जाने की मांग रखी। अपने मिशन को सफल बनाने के लिए तथा उत्तराखण्ड में आमजनमानस को चकबन्दी के प्रति जागरूक करने के लिए अपने अभियान शुरू किया तथा भूमि सुधार एवं चकबन्दी जागृति के लिए आन्दोलन का स्वरूप दिया। आपके द्वारा शुरू किया गया चकबन्दी आन्दोलन आज पर्वतीय जनमानस के पटल पर अंकित हो चुका है।

अपने जीवन में कर्त्तव्य के प्रति दृढ़ इच्छा शक्ति, निर्भयता, सदाचारिता, त्याग, सच्चाई, निष्ठा, लगन, समदर्शिता और निःस्वार्थ सेवा भाव ही सच्ची सामाजिकता, देश तथा समाज के प्रति सच्ची नागरिकता के लक्षण हैं। यह सभी गुण आप में मौजूद हैं। सन् 1974 में पहाडों में समृद्धि को लेकर जो मिशन आपने शुरू किया दिल्ली में रहते हुए आपने पहाड़ी समाज को जोड़ना शुरू किया तथा पलायन को लेकर चर्चाओं का दौर शुरू हो गया। इन चर्चाओं में आप प्रमुख भूमिका निभा रहे थे। 1975 में सर्वप्रथम दिल्ली में अखिल भारतीय गढ़वाल प्रगतिशील संगठन के तत्वावधान में पर्वतीय क्षेत्रों में चकबन्दी को लेकर एक बैठक का आयोजन किया गया संगठन ने तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार से पर्वतीय क्षेत्रों में चकबन्दी करने की मांग की। गणेश सिंह गरीब ने चकबन्दी को पर्वतीय क्षेत्रों में विकास का मूल मंत्र मानते हुए चकबन्दी को ही जीवन का मिशन बनाया। सन् 1977 में अखिल भारतीय प्रगतिशील संगठन ने उत्तर प्रदेश सरकार से पर्वतीय क्षेत्रों में हिमाचल की तर्ज पर पुनः चकबन्दी की मांग की। संगठन ने चकबन्दी की सम्भावनाओं का पता लगाने के लिए पर्वतीय क्षेत्रों का भ्रमण भी किया तथा चकबन्दी के लिए माहौल तैयार करने के लिए कई गांवों में बैठकों का आयोजन भी किया परन्तु पर्वतीय क्षेत्रों में कोई प्रायौगिक मॉडल न हो पाने के कारण केवल संवाद के माध्यम से क्षेत्रीय किसानों को समझाने में संगठन को सफलता नहीं मिल पायी। क्षेत्र में एक ऐसा मॉडल तैयार करने की आवश्यकता महसूस हो रही थी जिससे की क्षेत्रीय किसानों को चकबन्दी के बारे में समझाया जा सके। ऐसे में गणेश सिंह गरीब आगे आये और उन्होंने क्षेत्र में चकबन्दी का मॉडल तैयार करने के लिए दिल्ली की सुख-सुविधाओं को त्याग कर वापस अपने गांव आना स्वीकार किया। 

स्वावलंबी समाज की स्थापना के लिए आप 26 जनवरी 1981 को जबकि पूरा राष्ट्र गणतंत्र दिवस मना रहा था तो आप दिल्ली की सुख-सुविधाओं को छोड़कर वापस गांव चले आये। गांव में बहुत प्रयासों के उपरांत आपने 18 नाली बंजर भूमि का चक चंदन वाटिका के नाम स्थापित किया। भले ही इस चक को तैयार करने के लिए आपको अपने कई उपजाऊ खेतों को छोड़ना पड़ा परन्तु आपने हिम्मत नहीं हारी और क्षेत्र में चकबंदी का मॉडल तैयार करने के लिए बेकार पड़ी बंजर भूमि को भी स्वीकार किया। सन् 1981 में आपने चन्दन वाटिका के नाम से क्षेत्र में चकबंदी का प्रथम मॉडल तैयार किया। आपके सद्प्रयासों से ही क्षेत्र में मोती बाग जैसे अनेक चकबन्दी के सफल मॉडल तैयार हुए तथा पलायन को स्थायी समाधान के साथ ही क्षेत्र में आर्थिक समृद्धि भी लौटी है। वर्त्तमान में क्षेत्र का युवा आप को मॉडल मान कर विभिन्न प्रकार की उद्यमशीलता से न सिर्फ आत्मनिर्भर हो रहा है बल्कि पलायन को भी मात देने में सक्षम है।   

चकबंदी के लिए प्रयास

भारत की 77 प्रतिशत आबादी गांवो में निवास करती है। कृषि तथा कृषिजन्य रोजगार ही उनकी आजीविका के प्रमुख साधन हैं परन्तु मीलों, फर्लांगों तक बिखरे खेतों में खेती करना ना तो तकनीकी दृष्टि से सही है और ना ही आर्थिक दृष्टि से लाभप्रद।

स्वाभिमान, स्वावलंबन के साथ जीवनयापन करने के लिए स्वरोजगार ही एक प्रभावशाली विकल्प है। यहीं से सम्पन्नता का मार्ग खुल सकता है। स्वयं के उद्यम में मन-मस्तिष्क के अनुरूप कार्य करने की स्वतंत्रता होती है लेकिन कृषि क्षेत्र में उच्च तकनीकी का प्रयोग करने के लिए तथा बेहतर उत्पादन लेने के लिए आवश्यक है कि, खेती का एक चक हो जिस पर मन मुताबिक कृषि कार्य किया जा सके। छोटी जोत होने तथा बिखरे हुए खेतों के कारण पर्वतीय क्षेत्रों में तकनीकी का प्रयोग कर बेहतर उत्पादन लेना एक सपने जैसा है। पर्वतीय क्षेत्रों सरकारी संस्थान हों चाहे गैर सरकारी संस्थान कृषि पर किसानों को कितना ही ज्ञान न बांट लें बिना चकबंदी के कृषि क्षेत्र में सुधार नहीं किया जा सकता है। पर्वतीय क्षेत्रों में चहुंमुखी विकास के लिए भूमि सुधार तथा चकबंदी ही एकमात्र विकल्प है। अपने इसी मूल उद्देश्य को दृष्टिगत रखते हुए आपने सैकड़ों गावों की पदयात्राएं की तथा विचार गोष्ठियों का आयोजन कर चकबंदी के लाभों के बारे में आमजन को समझाया। जनजागृति के लिए जन सम्पर्क किया तथा पोस्टर, बैनर बनवाये, चकबंदी जनजागरण के लिए पर्वतीय क्षेत्रों में घर-घर पर्चे में बंटवाये ताकि आमजन चकबंदी के प्रति जागरूक हो सके। चकबंदी अभियान को व्यापक करते हुए आपने विकास खण्ड स्तर, जिला स्तर, राज्य स्तर तथा प्रवासी समाज के बीच चकबंदी सम्मेलनों का आयोजन किया। 

प्रकाशन

अब तक आप की तीन पुस्तकों का प्रकाशन हो चुका है -

1. पुस्तिका - उज्जवल भविष्य और हमारा दायित्व 1978

2. स्मारिका - गागर में सागर 1987

3. पुस्तक - पर्वतीय विकास और चकबन्दी 1990

चकबन्दी का प्रयोग

सन् 1981 में 18 नाली भूमि पर ’चन्दन वाटिका’  के नाम से आपने स्वयं का चक बनाकर राज्य में सर्वप्रथम चकबन्दी का सफल प्रयोग किया। आप के प्रयासों से 1985 में ग्राम- हुलाकीखाल, विकासखण्ड-खिर्सू, जिला- पौड़ी गढ़वाल में कीर्तिबाग  के नाम से चक की स्थापना की गयी। सन् 1988 में आपके प्रयासों से ग्राम-तछवाड़, विकासखण्ड- एकेश्वर, जिला- पौड़ी गढ़वाल में प्रेम विहार चक की स्थापना की गयी।

चकबन्दी के लिए किये गये अन्य प्रयास

उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों में चकबन्दी करने के लिए आपने प्रधानमंत्री, तत्कालीन उत्तर प्रदेश के मुख्यमत्रियों, केन्द्रीय मन्त्रियों, सांसद, विधायकों, योजना आयोग के उच्चाधिकारियों, स्थानीय जन-प्रतिनिधियों, सामाजिक कार्यकताओं, बुद्धिजीवियों, मीडिया के सम्मानित पत्रकारों आदि से निरन्तर सम्पर्क किया तथा समय-समय पर पत्राचार के माध्यम से पर्वतीय क्षेत्रों में चकबन्दी कराये जाने का अनुरोध किया। आप से प्रेरणा पाकर तथा आपके द्वारा निरन्तर किये जा रहे प्रयासों के कारण ही आज उत्तराखण्ड  के कई युवा स्वरोजगार की ओर उन्मुख हुए है, यह आने वाले भविष्य के लिए शुभ संकेत है।


84 वर्ष की आयु पूर्ण करने के उपरान्त आज भी आप पूर्णरूप से स्वस्थ हैं तथा पहाड़ों में समृद्धि के लिए चकबन्दी कराये जाने के लिए निरन्तर प्रयासरत हैं। आपकी सक्रियता तथा निस्वार्थ भाव से की गयी जनसेवा को देखते हुए उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाले समय में यह क्षेत्र पुनः आर्थिक समृद्धि की राह का चुनाव करेगा और एक भारत, श्रेष्ठ भारत का फिर से सिरमौर साबित होगा।  


चकबन्दी आन्दोलन का प्रभाव

पर्वतीय क्षेत्रों में चकबन्दी के प्रति आपकी मुखरता को देखते हुए तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने 27 सितम्बर 1989 को पर्वतीय क्षेत्रों में चकबन्दी करने का निर्णय लिया। 

सन् 1990 मे चकबन्दी आयुक्त द्वारा पर्वतीय क्षेत्रों में सर्वक्षण दल भेजा।

सन् 1991 में पौड़ी और अल्मोड़ा में चकबन्दी कार्यालयों की स्थापना की गयी।

आप के द्वारा प्रेषित पत्रों का संज्ञान लेते हुए 24 मार्च 1993 में तत्कालीन लोकसभा सदस्य मेजर जनरल (अवकाश प्राप्त) भुवन चन्द्र खण्डूरी ने लोकसभा में प्रश्न काल के दौरान पर्वतीय क्षेत्रों में चकबन्दी का मामाला उठाया। ठीक इसी प्रकार 1997 में तत्कालीन राज्यसभा सदस्य मनोहर कान्त ध्यानी ने भी राज्यसभा में पर्वतीय क्षेत्रों में चकबन्दी का प्रश्न उठाया।

नवसृजित राज्य उत्तराखण्ड में वर्ष 2001 गठित अन्तरिम सरकार ने राज्य में चकबन्दी करने का संकल्प पारित किया। ठीक इसी प्रकार सन् 2002 में राज्य में निर्वाचित प्रथम सरकार ने भी राज्य में चकबन्दी करने का संकल्प लिया तथा तत्कालीन राज्यपाल सुरजीत सिंह बरनाला ने 15 अगस्त 2002 के राज्यपाल के अभिभाषण में पर्वतीय क्षेत्रों में चकबन्दी करने का उल्लेख किया।

वर्ष 2003 में राज्य सरकार द्वारा डॉ हरक सिंह रावत की अध्यक्षता में चकबन्दी परामर्श समिति का गठन किया गया।

वर्ष 2004 में स्वैच्छिक चकबन्दी का राग अलापा गया तथा पूरन सिंह डंगवाल की अध्यक्षता में भूमि सुधार परिषद का गठन किया गया।

वर्ष 2009 में तत्कालीन कृषि मंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत की अध्यक्षता में चकबन्दी परामर्श समिति का गठन किया गया।

वर्ष 2012 में तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा द्वारा चकबन्दी किये जाने की प्रतिबद्धता को दोहराया।

वर्ष 2013 में पुनः डॉ हरक सिंह रावत की अध्यक्षता में राज्य में चकबन्दी कराये जाने के लिए मंत्री परिषद की तीन सदस्यीय चकबन्दी परामर्श समिति का गठन किया गया।

वर्ष 2014 में प्रदेश सरकार द्वारा चकबन्दी पर्वतीय निदेशालय का गठन हुआ।

जनवरी 2015 में तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने केदार सिंह रावत की अध्यक्षता पर्वतीय चकबन्दी समिति को गठन किया। इसी वर्ष अक्टूबर माह में पर्वतीय चकबन्दी समिति ने चकबन्दी का प्रारूप तथा ड्राफ्ट तैयार कर सरकार को सौंपा।

जुलाई 2016 में जोत चकबन्दी एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम - 2016 को विधान सभा में पास किया गया।

नवम्बर 2017 में तत्कालीन सरकार द्वारा घोषणा की गयी कि, प्रदेश में चकबन्दी की शुरूआत उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ तथा उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत के गांव से की जायेगी।

मई 2020 में उत्तराखण्ड पर्वतीय जोत चकबन्दी और भूमि व्यवस्था नियमावली - 2020 को मन्त्रीमण्डल द्वारा मन्जूरी प्रदान की गयी।  

मनोनयन

निम्नलिखित हैं - 

राज्य सरकार की चकबन्दी परामर्श समिति में नामित सदस्य 2003

राज्य सरकार द्वारा गठित भूमि सुधार परिषद का सदस्य 2004

राज्य सरकार द्वारा गठित उच्च स्तरीय चकबन्दी समिति में नामित सदस्य 2009

मुख्य बिन्दु

पलायन को रोकने, आत्मनिर्भर भारत, वोकल फॉर लोकल, आर्थिक समृद्धि के लिए भूमि सुधार एवं चकबन्दी को जीवन का मिशन बनाया 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें