राज्य को नेतृत्व देने में अक्षम रहे हैं राष्ट्रीय दल
- मुजीब नैथानी, अध्यक्ष, उ.वि.पा.
उत्तराखण्ड की भौगोलिक, सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीति की गहरी समझ रखने वाले युवा तुर्क उत्तराखण्ड विकास पार्टी के अध्यक्ष मुजीब नैथानी क्षेत्रीय राजनीतिक शक्तियों को मजबूत करने के पक्षधर हैं। उनका मानना है कि दोनां राष्ट्रीय दल उत्तराखण्ड जैसे प्राकृतिक रूप से समृद्ध राज्य को नेतृत्व प्रदान करने में अक्षम साबित हुए हैं। नेतृत्व अक्षमता के कारण ही स्थायी राजधानी का मसला हो या उत्तर प्रदेश से परिसम्पत्तियों का मामला हो या राज्य विकास या जनहित के मसलें हों, हर मसले पर राज्य का नेतृत्व बुरी तरह फेल साबित हुआ है। पिछले 20 सालों में राज्य में ऐसा कोई भी कार्य नहीं हो पाया है जो कि, राज्य की मूल अवधारणा के अनुरूप हो। प्रस्तुत है मुजीब नैथानी से एक्सक्लूसिव बातचीत के संक्षिप्त अंश -प्रश्न- पिछले 20 सालों में उत्तराखण्ड का विकास राज्यवासियों के अनुरूप नहीं हो पाया है, इसका आप मुख्य कारण क्या मानते हैं ?
मुजीब नैथानी- अक्षम नेतृत्व। वास्तव में दोनों राष्ट्रीय दल कांग्रेस हो चाहे भाजपा राज्य को सशक्त नेतृत्व देने में अक्षम साबित हुए हैं। यही कारण रहा है कि पिछले 20 सालों में राज्य का विकास जन अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतर पाया है। स्थायी राजधानी का मसला हो या उत्तर प्रदेश से परिसम्पत्तियों के बंटंवारा या वनों में स्थानीय लोगों के हक-हकूक हों या जनहित के मुद्दे रहे हों, प्रत्येक मोर्चे पर उत्तराखण्ड में अब तक गठित सरकारें बुरी तरह फेल साबित हुई हैं। भले ही पार्टी तथा सत्ताधारी दलों के नेताओं के निजी कोष में वृद्धि हुई हो परन्तु राज्य का आमजन त्रस्त है। एक छोटे से उदाहरण से इसे समझा जा सकता है कि, राज्य में किस प्रकार कुशासन तथा भ्रष्टाचार व्याप्त है, राज्य सरकार ने 20 हजार करोड़ रूपये बिना विधानसभा के अनुमोदन के ही खर्च कर दिये जबकि राज्य की आर्थिक स्थिति डांवाडोल है। राज्य सरकार बाजार से कर्ज लेकर राज्य कर्मचारियें को वेतन-भत्ते दे रही है। ब्याज चुकाने के लिए भी कर्ज लिया जा रहा है। कर्ज का मर्ज बढ़ता ही जा रहा है। राज्य सरकार के पास अब तक विकास का कोई मॉडल ही नहीं है। वर्ष 2008-09 में केन्द्र सरकार द्वारा राज्य में बागवानी विकास के लिए 90 करोड़ रूपये स्वीकृत किये थे, परन्तु राज्य सरकारों का निकम्मापन देखिए वर्ष 2013-14 तक राज्य सरकार सिर्फ 9 करोड़ ही खर्च कर पायी तथा 21 करोड़ रूपये लेप्स हो गये। जबकि इस दौरान राज्य में क्रमशः भाजपा और कांग्रेस की सरकारें रही हैं, जबकि राज्य में निरन्तर कृषि का रकबा घटता जा रहा है। यह इस राज्य की विडम्बना ही कही जायेगी कि, राज्य के वर्तमान कृषि मंत्री को अपने ही विभाग द्वारा संचालित योजनाओं की जानकारी तक नहीं है। राज्य में कृषि विकास तो बहुत बड़ी बात है।
प्रश्न- मुख्यमंत्री द्वारा गैरसैंण को राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित किया गया है। क्या आप इसका समर्थन करते हैं ?
मुजीब नैथानी- गैरसैंण को राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित करना राज्य सरकार की नौटंकी से ज्यादा कुछ नहीं है। हम मांग करते हैं कि, गैरसैंण को राज्य की स्थायी राजधानी घोषित किया जाए। गैरसैंण तथा आसपास के क्षेत्रों को राजधानी के रूप में विकसित किया जाए। गैरसैंण राज्य आन्दोलनकारियों तथा जन-भावनाओं से जुड़ा हुआ मुद्दा है। इस अहम मुद्दे पर दोनों राष्ट्रीय दलों ने जन-भावनाओं से खिलवाड़ किया है। अतः जन भावनाओं का सम्मान करते हुए राज्य सरकार गैरसैंण को अविलम्ब राज्य की स्थायी राजधानी घोषित करे।
प्रश्न- राज्य में क्षेत्रीय दल एकीकृत राजनीतिक शक्ति के बजाय विघटित हुई है। क्षेत्रीय दलों के विघटन का मुख्य कारण क्या मानते हैं ?
मुजीब नैथानी- अनुभवहीनता, आत्मविश्वास की कमी तथा कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण क्षेत्रीय राजनीतिक शक्ति एकीकृत नहीं हो पायी हैं। कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण क्षेत्रीय नेता अपना विजन राज्य के जन-जन तक पहुंचाने में असमर्थ रहे हैं। इसका लाभ राष्ट्रीय दलों को मिला है। उत्तराखण्ड में नेतृत्व की प्रतिभाओं का हृस हुआ है। यदि देखा जाए तो उत्तराखण्ड राज्य प्राप्ति का आन्दोलन स्वःस्फूर्त जनान्दोलन था। उत्तराखण्ड के गाँधी कहे जाने वाले इन्द्रमणी बडोनी सच्चे अर्थों में आन्दोलन के नेता थे, परन्तु राष्ट्रीय दलों ने क्षेत्रीय नेतृत्व को अपमानित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। 1994 में सार्वजनिक मंच से उन्हें अपमानित किया गया उनके साथ अभद्रता की गयी। उत्तराखण्ड के गाँधी को अपमानित करने वाले राष्ट्रीय दलों के लोग थे। उत्तराखण्ड में क्षेत्रीय नेतृत्व सशक्त न हो पाये इसके लिए राष्ट्रीय दल प्रपंच रचते रहते हैं। राज्य में अभी तक क्षेत्रीय नेतृत्व सशक्त न हो पाने के कारण ही राष्ट्रीय दल बारी-बारी से सत्तासीन होते रहे हैं। राष्ट्रीय दलों ने राज्य नेतृत्व के रूप में बुत खड़े किये हैं। यही बुत आज उत्तराखण्ड के कर्ता-धर्ता हैं। जबकि वास्तविकता यह है कि, राष्ट्रीय दल राज्य को नेतृत्व देने में अक्षम रहे हैं। परन्तु अब राज्य का आमजन भी राष्ट्रीय दलों की चालाकियों को समझने लगा है। समय बदल रहा है, राज्य में युवा नेतृत्व उभरकर सामने आ रहा है। राष्ट्रीय दलों द्वारा राज्य के आमजन को भ्रमित किया जा रहा है। शीघ्र ही राज्य में सशक्त क्षेत्रीय नेतृत्व उभरकर सामने आयेगा। क्षेत्रीय दलों के नेता भी अपनी कमजोरियों को महसूस करने लगे हैं। सन 2022 के चुनावों में आपको क्षेत्रीय राजनीतिक शक्ति बढ़ते क्रम में दिखायी देगी। जिसका असर आने वाले समय में राज्य की राजनीति में परिवर्तन लायेगा तथा क्षेत्रीय नेतृत्व सशक्त हो कर उभरेगा।
प्रश्न- राज्य में किस प्रकार का विकास मॉडल होना चाहिए ?
मुजीब नैथानी- उत्तराखण्ड राज्य प्राकृतिक रूप से समृद्ध राज्य है। अतः स्थानीय संसाधनों को विकसित कर ना सिर्फ राज्य के युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराया जा सकता है। बल्कि राज्य को आर्थिक रूप से समृद्ध भी किया जा सकता है। पहाड़ का विकास पहाड़ की भौगोलिक तथा सामाजिक संरचना के अनुरूप ही होना चाहिए। परम्परागत कृषि (जैविक खेती), कृषि आधारित उद्योग, बागवानी, सामाजिक वानिकी, धार्मिक तथा पारिस्थिकीय पर्यटन, लघु विद्युत परियोजनाएं जैसे विकास मॉडल राज्य में स्थापित किया जा सकता है। कोदा, झंगोरा, कोणी आदि जैसे पहाड़ी अनाजों की ब्रांडिंग की जा सकती है। उत्तरकाशी का विश्वस्तरीय सेब, राजमा तथा चमोली जिले के संतरे की अन्तर्राष्ट्रीय ब्रांडिंग की जा सकती है। वैसे उत्तराखण्ड के हर जिले की अपनी खास विशेषता रही है। उन विशेषताओं को दृष्टिगत रखते हुए तथा रोजगारोन्मुखी शिक्षा उपलब्ध कराकर राज्य में आर्थिक समृद्धि के द्वार खोले जा सकते हैं। राज्य में कृषि आधारित लघु एवं कुटीर उद्योगों को स्थापित किया जा सकता है। औद्योगनिकी, वानिकी तथा परम्परागत कृषि इस प्रदेश की रीढ़ साबित हो सकती है। प्रदेश का नेतृत्व बाहरी निवेश के सहारे हैं जबकि हिमालयी राज्य उत्तराखण्ड जो कि प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर है इस राज्य को बाहरी निवेश की आवश्यकता ही नहीं है। मध्य हिमालयी राज्य उत्तराखण्ड प्राकृतिक दृष्टि से बहुत ही समृद्ध है। बस इसे सजाने तथा संवारने के लिए कुशल प्रबन्धन के साथ नीति बनाने की आवश्यकता है।
राष्ट्रीय दलों के पास ना तो राज्य की सांस्कृतिक, सामाजिक तथा परम्परागत विरासत को सहेजने के लिए कोई ठोस नीति है और ना ही राज्य को आर्थिक दृष्टि से समृद्ध करने के लिए कुशल प्रबन्धन। राज्य के संसाधनों को गिरवी रखकर प्रदेश को कर्जदार बनाया जा रहा है। राज्य कर्ज के दलदल में फंसता जा रहा है।
स्थानीय संसाधनों के बेहतर उपयोग तथा राज्य को आर्थिक रूप से समृद्ध बनाने के लिए क्षेत्रीय राजनैतिक शक्ति का मजबूत होना राज्य हित में आवश्यक है। क्षेत्रीय राजनीतिक शक्ति ही इस प्रदेश के भौगालिक, सांस्कृतिक, सामाजिक तथा आर्थिक संरचना की बेहतर समझ रखती है। अतः देश तथा प्रदेश हित मेंं क्षेत्रीय राजनैतिक शक्ति का मजबूत होना परमावश्यक है।
प्रश्न- क्या आप प्रदेश की आबकारी नीति का समर्थन करते हैं ?
मुजीब नैथानी- बिल्कुल नहीं। वास्तव में प्रदेश की आबकारी नीति स्थानीय संसाधनों का बेहतर उपयोग के लिए होनी चाहिए। जब वे लोग वोदका की बात करते हैं तो हम कोदका की बात क्यों नहीं कर सकते ? फ्रांस जैसा देश अंगूर की वाइन का अन्तर्राष्ट्रीय ब्रांडिंग कर सकता है तो हम कोदे से बने कोदका की ब्रांडिंग क्यों नहीं कर सकते ?
प्रश्न- क्या आप सामान्य - ओ0बी0सी0 कर्मचारियों की हड़ताल का समर्थन करते हैं ?
मुजीब नैथानी- माननीय सर्वोच्च न्यायालय अपना निर्णय दे चुका है। राज्य सरकार को सर्वोच्च न्यायलाय के निर्णय को राज्य में तुरन्त लागू करना चाहिए था। इसके लिए कर्मचारियों को हड़ताल करने की आवश्यकता क्यों पड़ी ? हम मांग करते हैं कि, राज्य सरकार माननीय सर्वोच्च न्यायलाय के निर्णय का पालन करना सुनिश्चित करे तथा राज्य हित में मामले को लम्बा न खींचे।
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