मुफ्त सेवा की राजनीति आखिर कब तक ?
अभी हाल में दिल्ली में हुए विधानसभा चुनाव में केजरीवाल की पार्टी “आप “ ने जिस तरह से अप्रत्याशित जीत हासिल की आने वाले समय में क्या अन्य पार्टियां भी “मुफ्त“ वाली राजनीति कर पाएंगे या नहीं ? क्या अन्य राज्यों की स्थिति भी सभी लोगों को फ्री की सेवा देने की स्थिति में है या नहीं ? यह सब यक्ष प्रश्न है । विकास के नाम पर दिल्ली में स्कूलों की स्थिति बेहतर हुई । नए स्कूल तो बने नहीं मगर पुराने स्कूलों का आधुनिकरण किया गया । साथ ही निजी स्कूलों में शिक्षा का अधिकार का कड़ाई से पालन करवाया गया। साथ ही निजी विद्यालयों में फीस की मनमानी पर भी काफी नियंत्रण किया गया जो काबिले तारीफ है ।लेकिन इसके आगे अब केजरीवाल को चुनौती होगी कि क्या वह इन विद्यालयों की स्थिति बरकरार रख पाएंगे ? लाखों अध्यापकों के लिए समय पर वेतन एवं अन्य खर्च उपलब्ध करा पाएंगे ? दूसरी बात यह है कि दिल्ली में स्वास्थ्य को भी मुफ्त सेवा में रखा गया है । एक ओर प्रधानमंत्री द्वारा आयुष्मान भारत योजना के अंतर्गत लोगों को इसका भरपूर लाभ मिल रहा है दूसरी ओर केजरीवाल सरकार ने स्वास्थ्य को फ्री कर दिया गया है । स्वास्थ्य कार्ड में अमीर गरीब सभी शामिल हैं। जो लोग अपने स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए पैसा इत्यादि दे सकते थे उन्हें भी केजरीवाल ने फ्री कर दिया । इसका दुष्प्रभाव सीधे जनता पर पड़ता है । स्वास्थ्य विभाग का बड़ा महकमा है जिसमें दिनो दिन नई तकनीकी होती है । इसके लिए भारी-भरकम पैसे की आवश्यकता होती है उसकी व्यवस्था कैसी होगी यह भी देखने वाली बात होगी ।साथ ही इसका दूसरा दुष्प्रभाव यह पड़ा कि लोगों ने स्वास्थ्य बीमा करवाना कम कर दिया है इससे स्वास्थ्य बीमा कंपनियों को भी बड़ा धक्का लगा है । बिजली की व्यवस्था भी फ्री होगी । विद्युत विभाग में भी समय-समय पर अधिक आधुनिकरण होता है इस भारी-भरकम विभाग में कर्मचारियों अधिकारियों एवं रखरखाव के लिए बजट की व्यवस्था कैसी होगी ? साथ ही दूसरे राज्यों से बिजली खरीदने के लिए पैसा कहां से आएगा ? इसका उत्तर तो केजरीवाल का अर्थशास्त्र ही दे पाएगा । पानी भी मुफ्त । विद्युत विभाग की भांति जल बोर्ड भी भारी-भरकम विभाग है इसके लिए बजट की व्यवस्था भी बड़ी चुनौती है । पानी भी फ्री में दिल्लीवासियों को मिलेगा जब बिजली और पानी फ्री हो गया है , तो लोग भी ’राष्ट्रहित में बिजली बचाएं’ और ’पानी की एक-एक बूंद मूल्यवान ’ की हंसी में उड़ाएंगे और उड़ा रहे हैं । बिजली जलती है तो जलने दो पानी बहता है तो बहने दो । अब तो कहावत “ फ्री का चंदन घिस मेरे नंदन “ दिल्ली में देखने को मिलेगी । अगली फ्री सेवा बस सेवा है महिलाएं डीटीसी की बसों में फ्री में सफर करेंगे और कर भी रही हैं । आज के इस आधुनिक युग में महिलाओं की एक बहुत बड़ी संख्या नौकरी पेशा करने वाली है । लाखों की संख्या में प्रतिदिन महिलाएं बसों से इधर-उधर जाती हैं वह सब फ्री में जाएंगी और जा रही थी। इस कार्यकाल में बिजली , पानी , बस यात्रा और स्वास्थ्य को आप सरकार ने लोगों को भरोसा दिलाया अथवा बताने की चेष्ठा की है कि अन्य राज्यों की सरकारें महंगी दरों पर बिजली पानी एवं बस यात्रा जैसी मूलभूत सुविधाएं देकर जनता के साथ छलावा करती हैं । परंतु वास्तविकता बहुत भिन्न है और चिंताजनक भी । दिल्ली में पिछले 5 वर्षों में न तो एक भी नया कॉलेज खुला और नहीं डीटीसी की एक भी बस खरीदी गई । लाखों करोड़ों के घाटे में चल रही डीटीसी की सेवा की स्थिति यह हो गई कि अब महिला बस स्टॉप पर बस वाले बस नहीं रुक रहे हैं । पुरुषों ने अपने लिए अलग सा बस स्टॉप बना लिया है । विद्युत वितरण करने वाली कंपनियों डिस्कॉम पहले से ही ₹3000 करोड़ के घाटे में चल रही है । अब उसके दिन और बुरे आने वाले हैं । दिल्ली को सोलर पावर सिटी बनाने का वादा और ख्वाब भी अभी तक फाइलों में दबा है । ऐसी में स्थिति पैदा होती है कि क्या केजरीवाल सरकार 24 घंटे दिल्लीवासियों को फ्री में बिजली दे पाएंगे ? पाँच साल पहले मुनाफे में चल रही जल बोर्ड की भी दिन-प्रतिदिन पतली होती जा रही है । दिल्ली , उत्तर भारत की सबसे बड़ी व्यापार और आर्थिक मंडी होने के कारण इसका राजस्व लाखों करोड़ों में है , परंतु इतना नहीं है कि, एक दो क्षेत्रों से ज्यादा क्षेत्रों में वह मुफ्त की सेवा दे सके । विश्व बैंक की “ ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग “ यानी व्यापार सुगमता सूची में दिल्ली , 15 वें स्थान से खिसक कर 23वें स्थान पर पहुंच गई है । आज विकास की नई परिभाषा नेता दे रहे हैं । नेता जब विकास के मॉडल की बात करते हैं तो उनका आशय केवल अपनी पार्टी के विकास से होता है यानी विकास वह हुआ , जो चुनाव में जीत जाएगा , जैसे कि अभी दिल्ली में हुआ । 15 साल लगातार दिल्ली का विकास करके शीला दीक्षित आखिर में हार गई । 5 साल मुफ्त के अर्थशास्त्र में अरविंद केजरीवाल जीत गए । नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री मिल्टन फ्रीडमैन की एक किताब जिसका नाम है , “ देयर इज नो सच थिंग इज फ्री लंच “ है इसमें उन्होंने साफ लिखा है कि मुफ्त में कुछ भी नहीं मिलता । इसका भुगतान आज नहीं तो कल और कल नहीं तो परसों देना ही पड़ता है । मुफ्त कही जाने वाली चीजों का भुगतान भी जनता के टैक्स के पैसे से ही करना पड़ता है। टैक्स केवल अमीर ही नहीं बल्कि गरीब भी देते हैं । मुफ्त की राजनीति की आर्थिक और सियासी कीमत भविष्य में चुकानी ही पड़ती है । आपको याद होगा कि कभी राज्य सरकारों में किसानों को मुफ्त बिजली देने की होड़ सी लगी थी , नतीजा क्या हुआ ? राज्यों के बिजली बोर्ड दिवालिया घोषित हो गए । न बिजली रह पाई और नहीं खरीदने के लिए पैसा । इसलिए जिनको यह लगता है कि उन्हें चुनाव जीतने का एक फार्मूला मिल गया है फ्री सेवा तो , या फिर वह जनता जो यह सोच रही है कि उसी को जिताएंगे जो यह सब फ्री कर दे , यह उनकी बहुत बड़ी गलती होगी । अभी आने वाले समय में केजरीवाल सरकार की दशा देख सकते हैं । मुफ्त की बिजली पानी इत्यादि केवल गरीबों को ही नहीं बल्कि अमीरों को भी मिल रहा है , इससे सरकार का अवशेष कोष घट रहा है । हमें यह देखना है कि कि पिछले 5 सालों में केजरीवाल सरकार ने इंफ्रास्ट्रक्चर शब्द का कहीं भी कोई इस्तेमाल नहीं किया , क्योंकि केजरीवाल सरकार 2013 के बाद शीला दीक्षित के बनवाए इंफ्रास्ट्रक्चर पर ही चल रही है । इस बीच न तो नए स्कूल या कॉलेज खुले न कोई अस्पताल । केजरीवाल सरकार ने तो न कोई फ्लाईओवर बनाया और न कोई सड़क और यहां तक कि एक भी डीटीसी की बस नहीं खरीदी । जीवन के हर क्षेत्र में संतुलन बनाना बहुत जरूरी होता है , मुफ्त का अर्थशास्त्र एक तरह से दो धारी तलवार है । यदि यह समाज के गरीब तबके को मिले तो उसका उस वर्ग को ही नहीं पूरे समाज सामाजिक वातावरण पर असर पड़ता है । खैर दिल्ली की बात करें तो शीला दीक्षित ने 15 साल में जो इंफ्रास्ट्रक्चर बनाया वह सिर्फ आने वाले चुनाव को ध्यान में रखकर नहीं बल्कि , भविष्य के बारे में सोच कर बनाया था ।वह भी अब मरमत और इजाफा मांग रहा है । आप सरकार के लिए अगले पाँच साल , बीते पाँच साल से ज्यादा मुश्किल भरे होंगे । जो दल दिल्ली चुनाव के नतीजों के बाद खुश हो रहे हैं और यह मान रहे हैं कि जीत का फार्मूला मिल गया है , तो थोड़ा इंतजार कीजिए जरा दूध को ठंडा तो होने दीजिए उबाल अभी आया है । चुनाव किसी एक योजना से नहीं जीते जाते । मुफ्त के लैपटॉप , समाजवादी पेंशन जैसी सौगातें बांटने वाले अखिलेश यादव का काम भी नहीं बोल पाया था ।
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